आख़िर कुरान सूरा 33 की आयत 37 और 50 में ऐसा क्या लिखा है ? | kuran sura 33 ki aayat 37 aur 50 me kya likha hai

कुरान सूरा 33 की आयत 37 और 50 में ऐसा क्या लिखा है : आज हम आप लोगों को इस आर्टिकल में बताएंगे कि कुरान की 37 और 25 आए में ऐसा क्या लिखा है मैंने आप लोगों को बताया कि कुरान शरीफ की सूरह नंबर 33 की आयत शायद इसमें क्या लिखा है.

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अगर आप लोगों को इसकी जानकारी नहीं है तो आप हमारे आर्टिकल को पढ़ लें ताकि इसमें आप लोगों को जानकारी हासिल हो सके और आप अच्छे से समझ सके कि कुरान शरीफ में क्या लिखा है, तो आइए जानते हैं हर मुसलमान को यह जानना जरूरी होता है कि कुरान में क्या लिखा है और उसका मतलब क्या होता है.

बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनको सिर्फ कुरान पढ़ना तो आता है लेकिन कभी वो उनके बारे में पता करने की कोशिश नहीं करते हैं कि इसका मतलब क्या होता है. अगर आपको इसका मतलब नहीं पता था आप हमारे आर्टिकल को थोड़ा पढ़ लीजिए.

हम आपको ऐसी और जानकारी देते रहेंगे जो कि हर मुसलमान के लिए जानना जरूरी होता है तो अगर आप एक मुसलमान है तो आपको यह जानकारी जरूर लेनी चाहिए और आपको हमारे आर्टिकल को आगे तक पढ़ना चाहिए तभी आप लोगों को यह सारी जानकारी हासिल हो पाएगी।

कुरान सूरा 33 की आयत 37 और 50 में ऐसा क्या लिखा है ? | kuran sura 33 ki aayat 37 aur 50 me kya likha hai

आयत – 36

وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ وَلَا مُؤْمِنَةٍ إِذَا قَضَى اللَّهُ وَرَسُولُهُ أَمْرًا أَن يَكُونَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ مِنْ أَمْرِهِمْ ۗ وَمَن يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا مُّبِينًا

न किसी ईमानवाले पुरुष और न किसी ईमानवाली स्त्री को यह अधिकार है कि जब अल्लाह और उसका रसूल किसी मामले का फ़ैसला कर दें, तो फिर उन्हें अपने मामले में कोई अधिकार शेष रहे। जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करे तो वह खुली गुमराही में पड़ गया।

आयत – 37

وَإِذْ تَقُولُ لِلَّذِي أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِ وَأَنْعَمْتَ عَلَيْهِ أَمْسِكْ عَلَيْكَ زَوْجَكَ وَاتَّقِ اللَّهَ وَتُخْفِي فِي نَفْسِكَ مَا اللَّهُ مُبْدِيهِ وَتَخْشَى النَّاسَ وَاللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخْشَاهُ ۖ فَلَمَّا قَضَىٰ زَيْدٌ مِّنْهَا وَطَرًا زَوَّجْنَاكَهَا لِكَيْ لَا يَكُونَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ حَرَجٌ فِي أَزْوَاجِ أَدْعِيَائِهِمْ إِذَا قَضَوْا مِنْهُنَّ وَطَرًا ۚ وَكَانَ أَمْرُ اللَّهِ مَفْعُولًا

याद करो (ऐ नबी), जबकि तुम उस व्यक्ति से कह रहे थे जिसपर अल्लाह ने अनुकम्पा की, और तुमने भी जिसपर अनुकम्पा की, कि “अपनी पत्नी को अपने पास रोक रखो और अल्लाह का डर रखो.

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और तुम अपने जी में उस बात को छिपा रहे हो जिसको अल्लाह प्रकट करने वाला है। तुम लोगों से डरते हो, जबकि अल्लाह इसका ज़्यादा हक़ रखता है कि तुम उससे डरो।” अतः जब ज़ैद उससे अपनी ज़रूरत पूरी कर चुका तो हमने उसका तुमसे विवाह कर दिया,

ताकि ईमानवालों पर अपने मुँह बोले बेटों की पत्नियों के मामले में कोई तंगी न रहे जबकि वे उनसे अपनी ज़रूरत पूरी कर लें। अल्लाह का फ़ैसला तो पूरा होकर ही रहता है।

आयत : 50

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ إِنَّا أَحْلَلْنَا لَكَ أَزْوَاجَكَ اللَّاتِي آتَيْتَ أُجُورَهُنَّ وَمَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ مِمَّا أَفَاءَ اللَّهُ عَلَيْكَ وَبَنَاتِ عَمِّكَ وَبَنَاتِ عَمَّاتِكَ وَبَنَاتِ خَالِكَ وَبَنَاتِ خَالَاتِكَ اللَّاتِي هَاجَرْنَ مَعَكَ وَامْرَأَةً مُّؤْمِنَةً إِن وَهَبَتْ نَفْسَهَا لِلنَّبِيِّ إِنْ أَرَادَ النَّبِيُّ أَن يَسْتَنكِحَهَا خَالِصَةً لَّكَ مِن دُونِ الْمُؤْمِنِينَ ۗ قَدْ عَلِمْنَا مَا فَرَضْنَا عَلَيْهِمْ فِي أَزْوَاجِهِمْ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ لِكَيْلَا يَكُونَ عَلَيْكَ حَرَجٌ ۗ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا

ऐ नबी! हमने तुम्हारे लिए तुम्हारी वे पत्नियाँ वैध कर दी हैं जिनके मह्र तुम दे चुके हो, और उन स्त्रियों को भी जो तुम्हारी मिल्कियत में आईं, जिन्हें अल्लाह ने ग़नीमत के रूप में तुम्हें दी और तुम्हारी चचा की बेटियाँ और तुम्हारी फूफियों की बेटियाँ और तुम्हारे मामुओं की बेटियाँ और तुम्हारी ख़ालाओं की बेटियाँ जिन्होंने तुम्हारे साथ हिजरत की है,

और वह ईमानवाली स्त्री जो अपने आपको नबी के लिए दे दे, यदि नबी उससे विवाह करना चाहे। ईमानवालों से हटकर यह केवल तुम्हारे ही लिए है, हमें मालूम है जो कुछ हमने उनकी पत्ऩियों और उनकी लौंडियों के बारे में उनपर अनिवार्य किया है – ताकि तुमपर कोई तंगी न रहे। अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है।

आयत: 33:53

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَدْخُلُوا بُيُوتَ النَّبِيِّ إِلَّا أَن يُؤْذَنَ لَكُمْ إِلَىٰ طَعَامٍ غَيْرَ نَاظِرِينَ إِنَاهُ وَلَٰكِنْ إِذَا دُعِيتُمْ فَادْخُلُوا فَإِذَا طَعِمْتُمْ فَانتَشِرُوا وَلَا مُسْتَأْنِسِينَ لِحَدِيثٍ ۚ إِنَّ ذَٰلِكُمْ كَانَ يُؤْذِي النَّبِيَّ فَيَسْتَحْيِي👈 مِنكُمْ ۖ وَاللَّهُ لَا يَسْتَحْيِي مِنَ الْحَقِّ ۚ وَإِذَا سَأَلْتُمُوهُنَّ مَتَاعًا فَاسْأَلُوهُنَّ مِن وَرَاءِ حِجَابٍ ۚ ذَٰلِكُمْ أَطْهَرُ لِقُلُوبِكُمْ وَقُلُوبِهِنَّ ۚ وَمَا كَانَ لَكُمْ أَن تُؤْذُوا رَسُولَ اللَّهِ وَلَا أَن تَنكِحُوا أَزْوَاجَهُ مِن بَعْدِهِ أَبَدًا ۚ إِنَّ ذَٰلِكُمْ كَانَ عِندَ اللَّهِ عَظِيمًا

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ऐ ईमान लानेवालो! जब तक खाने की घरों में अनुमति न दी जाए तब तक घर में प्रवेश ना करो  इस तरह कि उसकी (खाना पकने की) तैयारी की प्रतीक्षा में न रहो। अलबत्ता जब तुम्हें बुलाया जाए तो अन्दर जाओ, और जब तुम खा चुको तो उठकर चले जाओ, बातों में लगे न रहो।

निश्चय ही तुम्हारी यह हरकत नबी को तकलीफ़ देती है। किन्तु उन्हें तुमसे लज्जा आती है। किन्तु अल्लाह सच्ची बात कहने से लज्जा नहीं करता। और जब तुम उनसे कुछ माँगो तो उनसे परदे के पीछे से माँगो।

यह अधिक शुद्धता की बात होता है तुम्हारे दिलों के लिए और उनके दिलों के लिए भी। तुम्हारे लिए वैध नहीं कि तुम अल्लाह के रसूल को तकलीफ़ पहुँचाओ और न यह कि उसके बाद कभी उसकी पत्नियों से विवाह करो। निश्चय ही अल्लाह की दृष्टि में यह बड़ी गम्भीर बात है।

निष्कर्ष

दोस्तों इस आर्टिकल में हमने आप लोगों को जो भी जानकारी दी है वो जानकारी हर मुसलमान को होनी जरूरी है इसलिए आप लोगों को यह जानकारी लेना बहुत ही जरूरी था हमें पूरी उम्मीद है कि अगर आप लोगों ने इस आर्टिकल को पढ़ा होगा तो आप लोगों को यह जानकारी हासिल हो गई होगी।