[PDF] सम्पूर्ण मूल शांति पूजन विधि ,मंत्र और पूजन सामग्री लिस्ट | मूल शांति करने की विधि pdf : Mool shanti karne ki vidhi pdf

मूल शांति करने की विधि pdf | Mool shanti karne ki vidhi pdf : हेलो दोस्तो नमस्कार स्वागत है आपका हमारे इस नए लेख में आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से मूल शांति करने की विधि pdf के बारे में बताने वाले हैं दोस्तों क्या आप लोग जानते हैं कि अगर जातक का जन्म गण्डान्त में होता है.

तब यह नक्षत्र 28 दिन बाद पुन: आते है तब 2800 मंत्रो का जाप और दशांश हवन किया जाता है और मूल शांति की विधि भी की जाती है उसके बाद ही जातक के ऊपर से गण्ड-मूलका दोष दूर होता है और उसी को हम लोग मूल शांति पूजा विधि कहते हैं.

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मूल शांति पूजा के लिए आपको कुछ सामग्री की आवश्यकता होती है वह सामग्री भी हम आप लोगों को इस लेख में बताने वाले हैं आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से मूल शांति करने की विधि pdf इसके बारे में बताएंगे और मूल शांति पूजा सामग्री कौन सी है.

इसके बारे में भी बताएंगे तथा मूल नक्षत्र कौन से हैं और मूल नक्षत्र से जुड़ी कुछ और भी अन्य जानकारी देने वाले हैं अगर आप हमारे इस लेख को अच्छे से पढ़ते हैं तो आपको इन सारे विषयों की संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाएगी तो आप हमारे इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

मूल नक्षत्र की शांति कैसे करें ? | Mool nakshatra ki shanti kaise karen ?

अगर कोई व्यक्ति मूल नक्षत्र की शांति करना चाहता है या फिर किसी बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ हैं तो आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि आज हम आप लोगों को मूल नक्षत्र शांत करने के कुछ ऐसे उपाय बताएंगे जिनके द्वारा आप मूल नक्षत्र की शांति कर सकते हैं और आपके बच्चे पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा।

  1. जिस भी बच्चे ने गंडमूल नक्षत्र में जन्म लिया है वह बच्चे अपने मां बाप के लिए कष्ट प्रदान करने वाले होते हैं ऐसा कहा जाता है कि जिस भी बच्चे ने गंडमूल नक्षत्र में जन्म लिया है उनके पिता को बच्चे का मुंह नहीं देखना चाहिए और उस बच्चे के पिता की जेब में एक फिटकरी का टुकड़ा डाल देना चाहिए।
  2. उसके बाद 22 दिन तक बच्चे के पिता को बच्चे का मुंह नहीं देखना चाहिए और 27 दिन तक उस बच्चे के सर के ऊपर से मूली के पत्ते घुमाकर दूसरे दिन बहते पानी में प्रवाह कर देनी चाहिए 27 दिन तक यह प्रक्रिया नियमित रूप से करनी चाहिए उसके बाद 28 दिन पिता बच्चे का मुंह देख सकता है।
  3. जो भी बच्चा मूल नक्षत्र में पैदा होता है उस बच्चे का स्वास्थ्य कमजोर रहता है इसीलिए उनके मां-बाप को पूर्णिमा का उपवास करने की सलाह भी दी जाती है।
  4. अगर किसी बच्चे की राशि सिंह है और नक्षत्र मघा है तो उस बच्चे के मां-बाप को सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए।
  5. अगर किसी बच्चे की राशि मेष है और उसका नक्षत्र अश्विनी है तो उस बच्चे के मां-बाप को हनुमानजी की उपासना करनी चाहिए।
  6. किसी बच्चे की राशि धनु है और उसका नक्षत्र मूल है तो उनके मां-बाप को गुरु और गायत्री उपवास करना चाहिए।
  7. अगर किसी बच्चे की राशि कर्क है और नक्षत्र आश्लेषा है तो उसे भगवान शिव की उपासना करनी चाहिए।
  8. अगर किसी बच्चे की राशि वृश्चिक है और नक्षत्र ज्येष्ठा है तो बच्चे से हनुमानजी की उपासना करानी चाहिए।
  9. अगर किसी बच्चे की राशि मीन है और नक्षत्र रेवती है तो उस बच्चे से गणेश जी की उपासना करानी चाहिए।
  10. अश्विनी, मघा और मूल नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे को बुध ग्रह की उपासना और आराधना करनी चाहिए अथवा बुधवार के दिन बच्चे के हाथ से हरी वस्तुओं का दान भी करना चाहिए।
  11. आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में पैदा होने वाले बच्चे को बुध ग्रह की उपासना और आराधना करनी चाहिए तथा बुधवार के दिन उस बच्चे के हाथ से हरी वस्तुओं का दान भी कराना चाहिए।

मूल शांति पूजन सामग्री लिस्ट | Mool shanti puja samagri list

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अगर आप लोग मूल शांति की पूजा करने जा रहे हैं तो आपको उसकी कुछ सामग्री लिस्ट होनी आवश्यक है तो आज हम आप लोगों को मूल शांति पूजा सामग्री लिस्ट निम्न प्रकार से देने वाले हैं जो हमने आपको नीचे दे दी है इस लिस्ट के माध्यम से आप मूल शांति पूजा करवा सकते हैं।

 क्रमांक संख्या मूल शांति पूजा सामग्री लिस्ट
1.  दूध 250 ml
2.  दही 250 ml
3. घी 250 ml
4. शहद 100 ग्राम
5. शक्कर 250 ग्राम
6. गुड 250 ग्राम
7. गंगाजल
8. गुलाबजल 1 नंग
9. मौलीधागा 1 नंग
10. जनेऊ 5 नंग
11.  चंदन
12. गुलाल
13.  कुमकुम
14.  हल्दी 15 नंग
15. सुपाड़ी 15 नंग
16.  लाल कपडा
17.  पंचमेवा
18.  पान (कपुरी) 15 नंग
19.  अगरबत्ती
20.  नारियल 4 नंग
21. लौंग
22.  इलायची
23. कपूर
24. रुई
25. बतासा
26. कांस की कटोरी 1
27. हवन लकड़ी 1 kg
28. काला तिल
29. नवग्रहसमिधा 1 नंग
30. सर्वोषधी 1 नंग
31. गमछा 2 नंग
32. हवनमाली 1 नंग
33. चंदनचुरा
34. उडददाल
35. नारियल गिरी
36. भोजपत्र
37. जटामासी
38. कमलगट्टा
39. शतावर
40. पीसी हल्दी
41. तिल का तेल 250 ml
42. जल 27 जगह का
43. पत्ती 27 पेड़ की
44. मिट्टी का घड़ा 27 छेदवाला
45. सप्तमृतिका 7 जगह की मिट्टी
46. पंचरत्न
47. पंचगव्य
48. सप्तधान्य 7 प्रकार के अन्न
50.  बांसपत्र 1 नंग
51. मिट्टी का पात्र 4 नंग
52. नक्षत्र प्रतिमा 1 नंग
53. फुलदूबी आमपत्ता

मूल शांति पूजा में इस सामग्री का होना बहुत ही आवश्यक है।

मूल शांति करने की विधि pdf download

इस लिंक के जरिए आप आसानी से मूल शांति करने की विधि पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

मूल शांति करने की विधि पीडीएफ Download pdf 

मूल शांति करने की विधि pdf | Mool shanti karne ki vidhi pdf

मूल शांति पूजा विधि करने के लिए आपको सबसे पहले आपको अपने पूजा स्थल पर एक चौक बनानी है उसके बाद उस चौक के ऊपर एक सुंदर सी चौकी को सजा कर रख देना है उसके बाद पीला चावल , पुष्प , धूप , कलश आदि पूजा सामग्री रख लेना है.

उसके बाद आपको एक पत्तल में गौरी गणेश और नवग्रह बनाए और कलश स्थापित करें उसके बाद उस चौकी पर सोने की मूल नक्षत्र की मूर्ति या फिर गोपाल जी की मूर्ति रख दें और चौकी के चारों कोनों में मिट्टी के कलश बनाकर रख दे.

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उस पर दीपक जलाएं उसके बाद 27 छिद्रवली कलश लेकर उसमें 7 प्रकार के अनाज रखने हैं उसके बाद आपको सात जगह की मिट्टी और शतावर , पंचरत्न , और 27 जगह का जल , गोबर , गोमूत्र , दही , दूध , धी और 27 वृक्ष की पत्तियां डालें.

उसके बाद उस जातक को कंपनी की पूजा स्थल से अलग किसी स्थान पर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना दे उसके बाद जिस भी बच्चे को वह दोष लगा हो उसे किसी मोटे कपड़े में बांधकर माता की गोद में बिठा दे.

उसके बाद एक बाल्टी लेकर उस बाल्टी में गंगाजल , गुलाब जल और 27 जगह का जल , पंचगव्य मिला दे उसके बाद एक बांस के पत्ते को लेकर जातक दंपत्ति बच्चे सहित के सिर के ऊपर से 27 छिद्रवली मिट्टी की पात्र रखे उसके बाद बाल्टी के जल से स्नान करवाएं और स्नान कराते समय नीचे दिए गए मंत्रों का जाप करें।

मूल शांति मंत्र | mul shanti Mantra

ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्यम् ।

सरस्वत्यै वाचो यन्तुर्यन्त्रिये दधामि बृहस्पतेष्टवा साम्राज्येनाभिषिञ्चाम्यसौ ।

ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् ।

सरस्वत्यै वाचो यन्तुर्यन्त्रेणाग्नेः साम्राज्येनाभिषिञ्चामि ॥

ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् ।

अश्विनोर्भैषज्येन तेजसे ब्रह्मवर्चसायाभि षिञ्चामि सरस्वत्यै भैषज्येन वीर्यायान्नाद्यायाभि षिञ्चामीन्द्रस्येन्द्रियेण बलाय श्रियै यशसेऽभि षिञ्चामि ॥

शिरो मे श्रीर्यशो मुखं त्विषिः केशाश्च श्मश्रूणि ।
राजा मे प्राणो अमृतं ँ सम्राट् चक्षुर्विराट् श्रोत्रं ॥
जिह्वा मे भद्रं वाङ् महो मनो मन्युः स्वराड् भामः ।
मोदाः प्रमोदा अङ्गुलीरङ्गानि मित्रं मे सहः ॥
बाहू मे बलं इन्द्रियं ँ हस्तौ मे कर्म वीर्यम् ।
आत्मा क्षत्रमुरो मम ॥
पृष्टीर्मे राष्ट्रम् उदरं ँ सौ ग्रीवाश्च श्रोण्यौ ।
ऊरू अरत्नी जानुनी विशो मेऽङ्गानि सर्वतः ॥
नाभिर्मे चित्तं विज्ञानं पायुर्मेऽपचितिर्भसत् ।
आनन्दनन्दा आण्डौ मे भगः सौभाग्यं पसः ॥

जङ्घाभ्यां पद्भ्यां धीरोऽस्मि विशि राजा प्रतिष्ठितः ।
प्रति ब्रह्मन् प्रतितिष्ठामि क्षत्रे प्रत्यश्वेषु प्रतितिष्ठामि गोषु ॥
प्रति प्रजायां प्रतितिष्ठामि पृष्ठे, प्रति प्राणेषु प्रतितिष्ठाम्यात्मन् , द्यावापृथिव्योः प्रतितिष्ठामि यज्ञे ॥

त्रया देवा एकादश त्रयस्त्रि ँशाः सुराधसः ।
बृहस्पतिपुरोहिता देवस्य सवितुः सवे देवा देवैरवन्तु त्वा ॥
प्रथमास्त्वा द्वितीयैर्भिषिञ्चन्तु, द्वितीयास्त्वा तृतीयै, स्तृतीयास्त्वा सत्येन, सत्यं त्वा ब्रह्मणा, ब्रह्म त्वा यजुर्भिर्यजू ँ षि त्वा सामभिः, सामानि त्वा ऋग्भि , र्ऋचस्त्वा पुरोऽनुवाक्याभिः, पुरोऽनुवाक्यास्त्वा याज्याभिर्याज्यास्त्वा वषट्कारैर्वषट्कारा स्त्वाहुतिभिरभिषिञ्चन्तु , आहुतयस्ते कामान्त्समर्द्धयन्त्व, सा अश्विनोस्त्वा तेजसा ब्रह्मवर्चसायाभिषिञ्चामि, सरस्वत्यास्त्वा वीर्येण यशसेऽन्नाद्यायाभिषिञ्चामि , इन्द्रस्य त्वेन्द्रियेणौजसे बलायाभिषिञ्चामि, भूः स्वाहा ॥

पुनन्तु मा पितरः सोम्यासः पुनन्तु मा पितामहाः ।
पवित्रेण शतायुषा विश्वमायुर् व्यश्नवै ॥
पुनन्तु मा पितामहाः पुनन्तु प्रपितामहाः ।
पवित्रेण शतायुषा सर्वमायुर् व्यश्नवै ॥
अग्ना आयूंषि पवसे ॥
पवमानः स्वर्जनः पवित्रेण विचर्षणिः ।
यः पोता स पुनातु मा ॥
पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनवो धिया ।
पुनन्तु विश्वा भूता मा जातवेदः पुनाहि मा ॥
पवमानः पुनातु मा क्रत्वे दक्षाय जीवसे ।
ज्योक् च सूर्यं दृशे ॥
उभाभ्यां देव सवितः पवित्रेण सवेन च ।
मां पुनाहि विश्वतः ॥
पवित्रेण पुनाहि मा शुक्रेण देव दीद्यत् ।
अग्ने क्रत्वा क्रतूंरनु ॥
यत्ते पवित्रं अर्चिष्यग्ने विततमन्तरा ।
ब्रह्म तेन पुनीमहे ॥
वैश्वदेवी पुनती देव्यागाद् यस्या बह्व्यस्तन्वो वीतपृष्ठाः ।
तया मदन्तः सधमाद्येषु वयं स्याम पतयो रयीणां ॥
वैश्वानरो रश्मिभिर्मा पुनातु वातः प्राणेनेषिरो मयोभूः ।
द्यावापृथिवी पयसा पयोभिर् ऋतावरी यज्ञिये मा पुनीताम् ॥
बृहद्भिः सवितस्त्रिभिर्वर्षिष्ठैर्देव मन्मभिः ।
अग्ने दक्षैः पुनीमहे ॥
ये समानाः समनसः पितरो यमराज्ये ।
तेषां लोकः स्वधा नमो यज्ञो देवेषु कल्पताम् ॥
ये समानाः समनसो जीवा जीवेषु मामकाः ।
तेषां श्रीर्मयि कल्पतामस्मिंल्लोके शतं समाः ॥
द्वे स्रुती ॥
इदं हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीरं सर्वगणं स्वस्तये ।
आत्मसनि प्रजासनि क्षेत्रसनि पशुसनि लोकसनि अभयसनि ॥
अग्निः प्रजां बहुलां मे कृणोत्वन्नं पयो रेतो अस्मासु धेहि ॥
यद्देवा देवहेडनं देवासश्चकृमा वयम् ।
अग्निर्मा तस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चत्वंहसः ॥
यदि स्वपन् यदि जाग्रदेनांसि चकृमा वयम् ।
वायुर्मा तस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चत्वंहसः ॥
यदि दिवा यदि नक्तमेनांसि चकृमा वयम् ।
सूर्यो मा तस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चत्वंहसः ॥
धाम्नो धाम्नो ॥
यद् ग्रामे ॥
पवित्रमसि यज्ञस्य पवित्रं यजमानस्य ।
तन्मा पुनातु सर्वतो विश्वस्माद्देवकिल्बिषात् सर्वस्माद्देवकिल्ब्इषात् ॥
द्रुपदादिवेन् मुमुचानः स्विन्नः स्नात्वी मलादिव ।
पूतं पवित्रेणेवाज्यं विश्वे मुञ्चन्तु मैनसः ॥
समावृतत्पृथिवी समुषाः समु सूर्यः ।
वैश्वानरज्योतिर् भूयासं विभुं कामं व्यशीय भूः स्वाहा ॥
द्योः शान्तिरन्तरिक्ष ँ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।

वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ँ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥

यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु ।

शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः ॥

सुशान्तिर्भवतु ॥

मूल शांति पूजन विधि प्रथम | Mool shaanti poojan vidhi

पूजा कब नहीं करनी चाहिए पीपल की पूजा कब नहीं करनी चाहिए तुलसी की पूजा कब नहीं करनी चाहिए भगवान की पूजा कब नहीं करनी चाहिए पीपल के पेड़ की पूजा कब नहीं करनी चाहिए तुलसी माता की पूजा कब नहीं करनी चाहिए तुलसी जी की पूजा कब नहीं करनी चाहिए pooja kab nahi karni chahiye pooja kab karni chahiye puja karni chahie ya nahin puja karni chahie puja kab karni chahie puja karna chahie ki nahin pooja karne ka tarika in hindi pooja karne ka tarika pooja karne ka right time pooja karne ka samay kya hai pooja karne ka sahi time pooja karne ka time pipal ki puja kab nahi karni chahiye pipal ki puja kab karni chahie pipal ki puja kis din nahi karni chahiye pipal ki puja kis din nahin karni chahie pipal ki puja kab karni chahiye pipal ki puja roj karni chahiye tulsi ki puja kab nahi karni chahiye tulsi ji ki puja kab nahi karni chahie tulsi ki puja kab karni chahiye tulsi ki puja kab karni chahie tulsi ki puja kis din nahi karni chahiye tulsi ji ki puja kis din nahi karni chahiye

उसके बाद दोनों दंपत्ति को घर भी देना है और उनसे कहना है कि स्वच्छ वस्त्र पहन कर पूजा स्थल पर दोबारा वापस आ जाएं स्नान करते समय अपने दोनों लोगों के पुराने वस्त्र नाई को बुलाकर बाहर फेंक दें उसके बाद यजमान के वाम भाग में उनकी पत्नी का गठबंधन कराकर उत्तर दिशा या फिर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठा दें उसके बाद पूजा प्रारंभ करें.

उसके बाद यजमान दंपत्ति दोनों लोग अपनी पूजा सामग्री कर जल छिड़कना है.

ॐ अपवित्रः पवित्रो व सर्वावास्थांग गतोपिऽवा ।

य: स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं सबाह्याभ्यंतर: शुचिः ॥

ॐ नारायणाय नमः ।

ॐ केशवाय नमः ।

ॐ माधवाय नमः ।

ॐ गोविंदाय नमः ।

इन मंत्रों का उच्चारण करने के बाद अपने हाथ धो लेने है.

उसके बाद अक्षत फूल दूध लेकर सभी देवताओं का ध्यान करने के लिए पहना है.

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्योऽअरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥

पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः ।

अग्निर्जिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवाऽअवसागमन्निह ॥

भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।

स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ँ सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥

शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम् ।

पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥

अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः ।

विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ॥

दीर्घायुत्वाय बलाय वर्चसे सुप्रजास्त्वाय सहसा।

शरद: शतम्॥

द्योः शान्तिरन्तरिक्ष ँ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।

वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ँ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥

यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु ।

शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः ॥

सुशान्तिर्भवतु ॥

श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।

लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः।

उमामहेश्वराभ्यां नमः।

वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः ।

शचीपुरन्दराभ्यां नमः ।

मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः।

इष्टदेवताभ्यो नमः ।

कुलदेवताभ्यो नमः ।

ग्रामदेवताभ्यो नमः ।

वास्तुदेवताभ्यो नमः ।

स्थानदेवताभ्यो नमः ।

सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः ।

सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।

ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।

उसके बाद अपने हाथ में लिए हुए अक्षत, पुष्प सभी देवताओं के सामने छोड़ दे.

उसके बाद फिर से यजमान दंपत्ति के हाथों में अक्षत जल लेकर संकल्प लेने के लिए कहे संकल्प लेते समय आपको इस मंत्र का जाप करना है.

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्री मद्भग्वतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्राह्मणोऽहि द्वितीयप्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवश्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे (अमुक) प्रदेशे (अमुक) मासे (अमुक) पक्षे (अमुक) तिथौ (अमुक) (अपना नाम) नामनाहम् (अमुक) (अपना गोत्र) गोत्रस्य मम अस्या: जातकस्य (पुत्र या पुत्री कहें) (अमुक) (नक्षत्र का नाम लें) नक्षत्र गण्ड-मूल जनित दोषोपशांत्यर्थम् गौरी-गणेश, नवग्रह, वरुण कलश, ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इन्द्र व (अमुक) नक्षत्र पूजन पश्चात नक्षत्र व सर्वतोभद्रहवन कर्म,छाया पात्र दान,शान्ति कर्माऽहं करिष्ये।

उसके बाद अपने हाथों में लिए हुए अक्षर जन धरती पर छोड़ दें.

अब फिर से यजमान दंपत्ति के हाथों में अक्षत फूल दूध लेकर माता गौरी गणेश का ध्यान करें.

सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः ।

लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः॥

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजाननः ।

द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्भूफलचारुभक्षणम् ।

उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥

ॐ गणानां त्वा गणपति ँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिँ हवामहे निधीनां त्वा

निधिपतिँ हवामहे वसो मम ।

आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ॥

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥

हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शङ्करप्रियाम् ।

लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ श्री गौरी-गणपतये नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च ।

अब फिर से आपने जो भी अपने हाथ में अक्षत , पुष्प को लिए थे वह गौरी गणेश के सामने अर्पित कर देना है.

उसके बाद फिर से अपने हाथों में अक्षत पुष्प लेकर निम्न मंत्र का जाप करते हुए नवग्रह वेदी एवं नौ ग्रहों का ध्यान करते हुए उस पर चढ़ाते जाएं.

ॐ सूर्याय नमः ।

ॐ चंद्राय नमः ।

ॐ मंगलाय नमः।

ॐ बुधाय नमः ।

ॐ बृहस्पत्ये नमः ।

ॐ शुक्राय नमः ।

ॐ शनिश्चराय नमः ।

ॐ राहवे नमः ।

ॐ केतवे नमः ।

उसके बाद फिर से अपने हाथों में अक्षत पुष्प लेकर नवग्रह मंडल देवताओं का आवाहन करें.

ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।

गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु ॥

सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मङ्गलं मङ्गलः।

सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्रः सुखं शं शनिः ।

राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्योन्नतिं।

नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहाः ॥

अस्मिन नवग्रह मण्डल देवताभ्यो नमः, आवाहयामि, स्थापयामि पूजयामि च ।

उसके बाद नवग्रह मंडल पर अक्षत और फूल छोड़ दे.

उसके बाद फिर से यजमान दंपत्ति के हाथों में अक्षत पुष्प लेकर निम्न मंत्र के द्वारा कलश में वरुण आदि देवताओं का आवाहन करना है.

कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुदः समाश्रितः ।

मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥

कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा ।

ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥

अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः ।

अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा ॥

आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारकाः ।

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।

नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥

सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः ।

आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारकाः ॥

ॐ श्री वरुण आदि आवाहित देवताभ्यो नमः,

आवाहयामि, स्थापयामि पूजयामि च ।

उसके बाद हाथ में लिए पुष्प अक्षत कलश के सामने अर्पित कर देना.

अगर आपके सामने तोरण रखा है तो उस तोरण की पूजा अक्षत पुष्प से इस प्रकार करें.

ॐ तोरण मातृकाभ्यो नमः, आवाहयामि, स्थापयामि ।

मूल शांति पूजन विधि | Mool shaanti poojan vidhi

havan mantra

अब फिर से अपने हाथों में अक्षत पुष्प लेकर यजमान दंपत्ति के द्वारा निम्न मंत्र एवं देवी-देवताओं की प्रतिष्ठा करें

प्रतिष्ठा- ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँसमिमं दधातु ।

विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ प्रतिष्ठ ॥

अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।

अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥

ॐ सर्व आवाहितदेवेभ्यो ! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम् ॥

इस मंत्र का उच्चारण करते हुए अक्षत पुष्प वेदी के सामने समर्पित कर दें.

उसके बाद फिर से यजमान से वेदी स्थिति गौरी गणेश सहित पंचोपचार या षोडशोपचारपूजन करावे

उसके बाद फिर से यजमान दंपत्ति के हाथों में पुष्प लेकर सभी देवताओं को श्रद्धांजलि अर्पित करें

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ॥

सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तु ते ।।

ॐ सर्व आवाहित देवताभ्यो नमः, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि क्षमाप्रार्थना पूर्वकम् नमस्कारान् समर्पयामि॥

मूल शांति करने की कलश विधि | Mool shanti karne ki kalash poojan vidhi

उसके बाद चारों ध्यान कलश का पूजन करवाएं.

1. प्रथम कलश

सर्वप्रथम यजमान दंपत्ति को अक्षत,पुष्प,दुबी पकड़ाकर प्रथम धान्य कलश में ब्रह्माजी का आवाहन करें-

ॐ ब्रह्माणं शिरसा नित्यमष्टनेत्रम् चतुर्मुखम्।

गायत्री सहितं देवं ब्रह्माणं आवाहयाम्यहम्॥

अब ब्रह्माजी का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करवायेँ और हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-

ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचोव्वेनऽआवः ।

स बुध्न्याऽउपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः ॥

2. द्वितीय कलश

पुनःयजमान दंपत्ति को अक्षत,पुष्प,दुबी पकड़ाकर द्वितीय धान्य कलश में विष्णु भगवान का आवाहन करें-

देवदेवं जगन्नाथं भक्तानुग्रहकारकम् ।

चतुर्भुजं रमानाथं लक्ष्मी सहितं देवं विष्णोमावाहयाम्यहम् ॥

अब विष्णुजी का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करवायेँ और हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-

ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः श्नप्त्रे स्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्ध्रुवोऽसि ।

वैष्णवमसि विष्णवे त्वा ॥

3. तृतीय कलश

पुनःयजमान दंपत्ति को अक्षत,पुष्प,दुबी पकड़ाकर तृतीय धान्य कलश में शिवजी का आवाहन करें-

ॐ शिवं शंकरमीशानं द्वादशार्द्ध त्रिलोचनम्।

उमा सहितं देवं शिवमावाहयाम्यहम् ॥

अब शिवजी का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करवायेँ और हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-

ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ॥

4. चतुर्थ कलश

पुनःयजमान दंपत्ति को अक्षत,पुष्प,दुबी पकड़ाकर चतुर्थ धान्य कलश में इन्द्रदेव का आवाहन करें-

ॐ ऐरावतगजारूढं सहस्त्राक्षं शचीपतिम् ।

वज्रहस्तं सुराधीशम् इन्द्राणी सहितं देवं इन्द्र मावाहयाम्यहम् ॥

अब इन्द्रदेव का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करवायेँ और हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-

ॐ इन्द्र आसां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः ।

देवसेनानामभिभञ्जतीनां जयन्तीनां मरुतो यन्त्वग्रम् ॥

मूल शांति नक्षत्र पूजन विधि

1. नक्षत्र पूजन प्रारम्भ

प्राण प्रतिष्ठा- सर्वप्रथम चौंकी(पाटा या पीढ़ा) में रखे मूल-नक्षत्र की सोने की मूर्ति पर यजमान अपनी हथेली इस प्रकार रखें की मूर्ति दिखाई न दे। आचार्य के १६(सोलह)आवृत्ति मंत्र पढ़ते तक मूर्ति को वैसे ही ढके रहे-

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या (अमुक)नक्षत्र मूर्तय: प्राणा इह प्राणाः ।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या (अमुक)नक्षत्र मूर्तय: जीव इह स्थितः ।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या (अमुक)नक्षत्र मूर्तय: सर्वेन्द्रियाणि वाङ्मन्स्त्वक्चक्षुः श्रोत्राजिह्वाघ्राणपाणिपादपायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ।

आपको यजमान दंपत्ति की हथेली हटाकर हाथ में पशुओं को लेकर निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए मूर्ति के सामने अर्पित कर देना है.

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँसमिमं दधातु ।

विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ प्रतिष्ठ ॥

एष वै प्रतिष्ठानाम यज्ञो यत्रौतेन यज्ञेन यजन्ते सर्व मे प्रतिष्ठितम्भवति ।।

उसके बाद फिर से यजमान को अक्षत पुष्प देखकर नक्षत्र की शांति के लिए पूजा का ध्यान करवाना है.

2. अश्विनी नक्षत्र ध्यान मंत्र

ॐ अश्विनी भैषज्येन तेजसे ब्रह्मावर्चसा या भिषिंचामि सरस्वत्यै भैषज्येन वीर्या यान्नाद्याया भिषिंचामीन्द्रियस्येद्रियेण बलाय श्रियै यशसे भिषिंचामि नमः॥

3. अश्लेषा नक्षत्र ध्यान मंत्र

ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो येके च पृथ्विमनु: ये अन्तरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम:॥

4. मघा नक्षत्र ध्यान मंत्र

ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्यः स्वधानम: पितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम:
प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधानम: अक्षन्नपितरोमीमदन्त:
पितरोऽतितृप्यन्त पितर:शुन्धद्धाम् ॥

5. ज्येष्ठा नक्षत्र ध्यान मंत्र

ॐ सजोषाइन्द्रसगणोमरुभ्दि: सोमावपिव वृत्रहाशुरविद्वान् जहि शत्रूँ रपसुधोनुहस्वाहा भयं कृणुहिविश्वतीनः॥

6. मूल नक्षत्र ध्यान मंत्र

ॐ अपाधम किल्वि षमयकृत्या मनायोग्य: अपामार्ग वमपस्मदपयु: स्वप्न ँ सुव॥

7. रेवती नक्षत्र ध्यान मंत्र

ॐ पूषन्ततवव्रते वयन्नरिष्येम कदाचन स्तोतारस्त इह स्मसि नमः॥

मूल शांति करने की स्नान से प्रार्थना तक की विधि | Mool shanti snaan poojan vidhi

havan mantra

अब यजमान दंपत्ति से नक्षत्र मूर्ति का पूजन करावें-

1. दुग्धस्नान

ॐ पयः पृथ्वियां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।

पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥

कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परमं ।

पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः पयः स्नानं समर्पयामि ।

(दूध से स्नान कराये) ।

2. दधिस्नान

ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः ।

सुरभि नो मुखाकरत्प्राण आयू ँ षि तारिषत् ॥

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् ।

दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः दधिस्नानं समर्पयामि ।

(दधि से स्नान कराये) ।

3. घृतस्नान –

ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम ।

अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम् ॥

नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् ।

घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः घृत स्नानं समर्पयामि ।

(घृत से स्नान कराये) ।

4. मधु स्नान

ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः ।

माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥

मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ँ रजः ।

मधु द्यौरस्तु नः पिता ।

पुष्परेणुसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।

तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, मधुस्नानं समर्पयामि ।

(मधु से स्नान कराये )।

5. शर्करा स्नान

ॐ अपा ँ रसमुद्वयस ँ सूर्यै सन्त ँ समाहितम् ।

अपा ँ रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥

इक्षुरससमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम् ।

मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः शर्करास्नानं समर्पयामि ।

(शर्करा से स्नान कराये ) ।

6. पंचामृत स्नान

ॐ पञ्चनद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः ।

सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेभवत्सरित् ॥

पञ्चामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु ।

शर्करया समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।

(पंचामृत से स्नान कराये) ।

7. गन्धोदक स्नान

ॐ अ ँ शुना ते अ ँ शुः पृच्यतां परुषा परुः ।

गन्धस्ते सोमामवतु मदाय रसो अच्युतः ॥

मलयाचलसम्भूतचन्दनेन विनिःसृतम् ।

इदं गन्धोदकस्नानं कुङ्कुम्युक्तं च गृह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः,गन्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(गन्धोदक से स्नान कराये ।)

8. शुद्धोदक स्नान –

ॐ शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो मणिवालस्त आश्विनाः ।

श्येतः श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णा यामा अवलिप्ता रौद्रा नभोरूपाः पार्जन्याः ॥

गङ्गा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती ।

नर्मदा सिन्धु कावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

आचमन – शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(आचमन के लिये जल दे।)

9. वस्त्र –

ॐ युवा सुवासाः परिवीत आगात् स उ श्रेयान् भवति जायमानः ।

तं धीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो३मनसा देवयन्तः ।

शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम् ।

देहालङ्करणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः वस्त्रं समर्पयामि ।

(वस्त्र समर्पित करे)

आचमन – वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(आचमन के लिये जल दे ।)

10. उपवस्त्र –

ॐ सुजातो ज्योतिषा सहशर्म वरूथमाऽसदत्स्वः।

वासो अग्ने विश्वरूपथ ँ सं व्ययस्व विभावसो ॥

यस्याभावेन शास्त्रोक्तं कर्म किञ्चिन्न सिध्यति ।

उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मोपकारकम ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, उपवस्त्रं (उपवस्त्राभावे रक्तसूत्रम् समर्पयामि ।)

(उपवस्त्र समर्पित करे ।)

आचमन – उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(आचमन के लिये जल दे ।)

11. यज्ञोपवीत

ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।

आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।

यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि ।

नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् ।

यज्ञोपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।

(यज्ञोपवीत समर्पित करें ।)

आचमन – यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि

(आचमन के लिये जल दे ।)

12. चंदन

ॐ त्वां गन्धर्वा अखनॅंस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः।

त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत् ॥

श्रीखण्डं चंदनं दिव्यं गन्धढ्यं सुमनोहरम् ।

विलेपनं सुरश्रेष्ठं! चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः चन्दनानुलेपनं समर्पयामि ।

(चंदन अर्पित करे ।)

13. अक्षत

ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत ।

अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजान्विन्द्र ते हरी ॥

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुम्‌युक्ताः सुशोभिताः ।

मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, अक्षतान् समर्पयामि ।

(अक्षत चढ़ाये ।)

14. पुष्पमाला

ॐ औषधीः प्रति मोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः ।

अश्वा इव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्णवः ॥

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो ।

मयाह्रतानि पुष्पाणि पूजार्थ प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, पुष्पमालां समर्पयामि ।

(पुष्पमाला समर्पित करे ।)

15. दूर्वा

ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि ।

एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्रेण शतेन च ॥

दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान् ।

आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि ।

(दूर्वाङ्कुर चढाये ।)

16. सिन्दूर

ॐ सिन्धोरिव प्राध्वेन शूघनासो वातप्रमियः पतयन्ति यह्वाः ।

घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ।

सुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः सिन्दूरं समर्पयामि ।

(सिन्दुर अर्पित करे ।)

17. अबीर गुलाल आदि नाना परिमल द्रव्य –

ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः ।

हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा ँ सं परिपातु विश्वतः ॥

अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम् ।

नाना परिमलं द्रव्यं गृहाण परमेश्वर ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।

(अबीर आदि चढ़ाये ।)

सुगन्धिद्रव्य

ॐ अहिरिव ……………………………………………………… विश्वतः ॥

दिव्यगन्धसमायुक्तं महापरिमलाद्भुतम् ।

गन्धद्रव्यमिदं भक्त्या दत्तं वै परिगह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, सुगन्धिद्रव्यं समर्पयामि ।

(सुगन्धित द्रव्य अर्पण करे ।) धूप-

ॐ धूरसि धूर्व धूर्वन्तं धूर्व तं योऽस्मान् धूर्वति तं धूर्व यं वयं धूर्वामः ।

देवानामसि वह्नितम ँ ‌सस्नितमं पप्रितं जुष्टतमं देवहूतमम् ॥

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः ।

आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ।

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, धूपमाघ्रापयामि । (धूप दिखाये ।)

18. दीप –

ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा ।

अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा ॥

ज्योति सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ॥

साज्यं चं वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया ।

दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥

भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने ।

त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, दीपं दर्शयामि ।(दीप दिखाये ।)

हस्तप्रक्षालन – ॐ ह्रषिकेशाय नमः’ कहकर हाथ धो ले ।

नैवेद्य ॐनाभ्या आसीदन्तरिक्ष ँ शीर्ष्णो द्यौःसमवर्तत।

पद्भयां भूमिर्दिशःश्रोत्रात्तथो लोकाँ२अकल्पयन् ॥

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।

ॐ प्राणाय स्वाहा ।

ॐ अपानाय स्वाहा ।

ॐ समानाय स्वाहा ।

ॐ उदानाय स्वाहा ।

ॐ व्यानाय स्वाहा ।

ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।

आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, नैवेद्यं निवेदयामि ।

(नैवेद्य निवेदित करे ।)

‘नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि’ ।

(जल समर्पित करे ।)

19. ऋतुफल

ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी ।

बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ँहसः ॥

इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव ।

तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, ऋतुफलानि समर्पयामि ।

(ऋतुफल अर्पित करे ।)

‘फलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(आचमनीय जल अर्पित करे।)

20. करोद्वर्तनः

ॐ अ ँशुना ते अ ँशुः पृच्यतां परुषा परुः ।

गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो अच्युतः ॥

चन्दनं मलयोद्भूतम् कस्तूर्यादिसमन्वितम् ।

करोद्वर्तनकं देव गृहाण परमेश्वर ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, करोद्वर्तन चन्दनं समर्पयामि ।

(मलयचन्दन समर्पित करे ।)

21. ताम्बूल

ॐ यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।

वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥

पुंगीफल महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् ।

एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, मुखवासार्थम् एलालवंगपुंगीफलसहितं ताम्बूलं समर्पयामि ।

( इलायची, लौंग-सुपारी के साथ ताम्बूल (पान) अर्पित करे ।)

दक्षिणा ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।

स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।

अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, कृतायाः पूजायाः साद्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि ।

(द्रव्य दक्षिणा समर्पित करे।)

22. आरती

ॐ इदं ँहविः प्रजननं मे अस्तु दशवीर ँ सर्वगण ँस्वस्तये ।

आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि ।

अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं पयो रेतो असमासु धत्त्‌ ।

ॐ आ रात्रि पार्थिव ँ रजः पितुरप्रायि धामभिः ।

दिवः सदा ँ सि बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः ।

कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् ।

आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, आरार्तिकं समर्पयामि ।

23. प्रार्थना

आरती करने के बाद आपको यजमान दंपति के हाथ में अक्षत पुष्प धूप पकड़ा कर नक्षत्र देवता को प्रार्थना करवाना है.

मूल शांति करने की नक्षत्र पूजन विधि

havan

1. अश्विनी नक्षत्र

ॐ अश्विनी तेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वती वीर्यम् वाचेन्द्रो
बलेन्द्राय दधुरिन्द्रियम् ।

ॐ अश्विनी कुमाराभ्यो नम: ।

2. अश्लेषा नक्षत्र

ॐ सर्पोरक्त स्त्रिनेत्रश्च फलकासिकरद्वयः
आश्लेषा देवता पितांबरधृग्वरदो स्तुमे ।

ॐ सर्पेभ्यो नमः।

3. मघा नक्षत्र

पितरः पिण्डह्स्ताश्च कृशाधूम्रा पवित्रिणः
कुशलं द्घुरस्माकं मघा नक्षत्र देवताः।

ॐ पितृभ्यो नमः।

4. ज्येष्ठा नक्षत्र

ॐ त्राताभिंद्रमबितारमिंद्र गवं हवेसुहव गवं शूरमिंद्रम वहयामि शक्रं
पुरुहूतभिंद्र गवं स्वास्ति नो मधवा धात्विन्द्र: ।

ॐ इन्द्राय नम: ।

5. मूल नक्षत्र

ॐ मातेवपुत्रम पृथिवी पुरीष्यमग्नि गवं स्वयोनावभारुषा तां
विश्वेदैवॠतुभि: संविदान: प्रजापति विश्वकर्मा विमुञ्च्त ।

ॐ निॠतये नम: ।

6. रेवती नक्षत्र

ॐ पूषा रेवत्यन्वेति पंथाम् पुष्टिपती पशुपा वाजबस्त्यौ इमानि हव्या प्रयता जुषाणा।

सुगैर्नो यानैरुपयातां यज्ञम् क्षुद्रान् पशून् रक्षतु रेवती नः गावो नो अश्वा ँ अन्वेतु पूषा अन्न ँ रक्षंतौ बहुदाविरूपम् वाज ँ सनुतां यजमानाय यज्ञम्।

ॐ पूषा नम: ।

मूल शांति पूजन विधि हवन प्रारम्भ | Mool shanti poojan vidhi havan prarambh

उसके बाद हवन की संपूर्ण सामग्री (जंवा,तील आदि) लेकर शाँकल्य बनावें,हवन कुंड में हल्दी-कुमकुम से ॥ॐ रं॥ (अग्नि बीज मंत्र)लिख देवें। हवन माली में अग्नि मंगाकर हवन कुंड में में डलवाऐं तथा यजमान दंपत्ति को अक्षत,फूल,दुबि देकर अग्निदेव का प्रार्थना करवायें-

ॐ मुखं य: सर्व देवानां खाण्डवोद्यान दाहकम्।

पूजितं सर्व यज्ञेषु अग्निमावाहयाम्यहम्॥

          ॐ अग्नये नमः॥

उसके बाद हवन कुंड में लकड़ी डालें और पंचोपचार से अग्नि देवता की पूजा करें उसके बाद यजमान दंपत्ति के हाथों में श्रुवा में घीं लेकर पहले निम्न मंत्रों से आहुति देवें

ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम ।

ॐ इन्द्राय स्वाहा, इदमिन्द्राय सूर्याय न मम ।

ॐ अग्नये स्वाहा, इदमग्नये न मम ।

उसके बाद सबसे पहले गणेश अंबिका और नवग्रह को घीं व वासे आहुति देवें-

ॐ गणानां त्वा गणपति ँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिँ हवामहे निधीनां त्वा

निधिपतिँ हवामहे वसो मम ।

आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् स्वाहा ॥

ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन ।

ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् स्वाहा ॥

ॐ सूर्याय नमः स्वाहा ॥

ॐ चंद्राय नमः स्वाहा ॥

ॐ मंगलाय नमः स्वाहा ॥

ॐ बुधाय नमः स्वाहा ॥

ॐ बृहस्पत्ये नमः स्वाहा ॥

ॐ शुक्राय नमः स्वाहा ॥

ॐ शनिश्चराय नमः स्वाहा ॥

ॐ राहवे नमः स्वाहा ॥

ॐ केतवे नमः स्वाहा ॥

अब उसके बाद नक्षत्र का शांत कर रहे हो तो ऊपर दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए स्वाहा कहकर 108 बार इस मंत्र का जाप करेंॐ (अमुक)नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥ 

पुनः इसके बाद नक्षत्र सूक्त(नक्षत्रसूक्तम् पढ़े)मंत्र से या निम्न लघु मंत्रों की आहुति डालें-

ॐ अश्विनी नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ भरणी नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ कृत्तिका नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ रोहणी नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ मृगशिरा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ आर्द्रा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ पुनर्वसु नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ पुष्य नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ अश्लेषा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ मघा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ हस्त नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ चित्रा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ स्वाती नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ विशाखा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ अनुराधा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ ज्येष्ठा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ मुल नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ पुर्वाषाढ़ा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ उत्तराषाढ़ा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ अभिजीत नमःस्वाहा॥

ॐ श्रवण नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ धनिष्ठा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ शतभिषा नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ पूर्वभाद्रपद नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ उत्तरभाद्रपद नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

ॐ रेवती नक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा॥

अब सर्वतोभद्र मण्डल के मंत्रों से (इन मंत्रों के लिए श्री गणेशचतुर्थी पूजन पढ़ें) आहुति दे ।

मूल शांति करते समय दान पूजन विधि | Mool shanti poojan vidhi

havan

1. बलिदान

अब आचार्य उड़द,दही व बंदन को मिलाकर आमपत्ता आदि में यजमान दंपत्ति को पकड़वाये और निम्न दिशाओं में रखवाते जायें, दीप जलवायें व जल डलवाते जायें। आचार्य मंत्र पढ़े-

2. पूर्व

ॐ पूर्वे इन्द्राय सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एतं सदीपं दधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि ।

भो इन्द्र ! दिशं रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता, क्षेमकर्ता, शान्तिकर्ता, तुष्टिकर्ता, पुष्टिकर्ता वरदोभव॥

3. आग्नेय

ॐ आग्नेय सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एतं सदीपं दधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि ।

   भो अग्ने ! दिशं रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता, क्षेमकर्ता, शान्तिकर्ता, तुष्टिकर्ता, पुष्टिकर्ता वरदोभव॥

4. दक्षिण

ॐ दक्षिणे यमाय सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एतं सदीपं दधिमाष भक्तबलिं समर्पयामि ।

भो यम ! दिशं रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता, क्षेमकर्ता, शान्तिकर्ता, तुष्टिकर्ता, पुष्टिकर्ता वरदोभव॥

5. नैर्ऋत्य

ॐ नैर्ऋत्ये सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एतं सदीपं दधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि ।

भो नैर्ऋत्ये ! दिशं रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता, क्षेमकर्ता, शान्तिकर्ता, तुष्टिकर्ता, पुष्टिकर्ता वरदोभव॥

6. पश्चिम

ॐ पश्चिमे वरुणाय सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एतं सदीपं दधिमाष भक्तबलिं समर्पयामि ।

भो वरुण ! दिशं रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता, क्षेमकर्ता, शान्तिकर्ता, तुष्टिकर्ता, पुष्टिकर्ता वरदोभव॥

 

7. वायव्य

ॐ वायवे सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एतं सदीपं दधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि ।

भो वायो ! दिशं रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता, क्षेमकर्ता, शान्तिकर्ता, तुष्टिकर्ता, पुष्टिकर्ता वरदोभव॥

8. उत्तर

ॐ पूर्वे उत्तरस्यां कुबेराय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एतं सदीपं दधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि ।

भो कुबेर ! दिशं रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता, क्षेमकर्ता, शान्तिकर्ता, तुष्टिकर्ता, पुष्टिकर्ता वरदोभव॥

9. ईशान

ॐ ईशानाय सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एतं सदीपं दधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि ।

भो ईशान ! दिशं रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता, क्षेमकर्ता, शान्तिकर्ता, तुष्टिकर्ता, पुष्टिकर्ता वरदोभव॥

10. ईशान पूर्व के मध्य

ॐ ईशानपूर्वयोर्मध्ये ब्राह्मणे सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एतं सदीपं दधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि ।

भो ब्राह्मन् ! दिशं रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता, क्षेमकर्ता, शान्तिकर्ता, तुष्टिकर्ता, पुष्टिकर्ता वरदोभव॥

11. नैर्ऋत्य पश्चिम के मध्य

ॐ नैर्ऋत्यपश्चिमयोर्मध्ये अनन्ताय सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एतं सदीपं दधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि ।

भो अनन्त ! दिशं रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता, क्षेमकर्ता, शान्तिकर्ता, तुष्टिकर्ता, पुष्टिकर्ता वरदोभव॥

मूल शांति करने की संपूर्ण पूजन विधि | Mool shanti poojan vidhi

फिर से मूल नक्षत्र वाले शिशु को लाल रंग के कपड़े से उसे ढक कर उसकी माता की गोद में दे देना है उसके बाद चौमुखी दीपक जलाकर किसी पात्र में उड़द दही काजल पूजा करवा दें और यजमान दंपत्ति शिशु सहित के ऊपर से उस दीपक को घुमा कर किसी एकांत चौराहे या फिर एक आम जगह पर रखवा दें यह कार्य आपको नाई से करवाना है.

ॐ क्षेत्रपालाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एतं सदीपं दधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि ।

भो क्षेत्रपाल ! इमां बलि गृह्वित अस्य यजमानस्य सकुटुंबस्य आयुःकर्ता,क्षेमकर्ता, शांतिकर्ता, तुष्टि कर्ता, पुष्टि कर्ता, निर्विघ्न कर्ता वरदो भव॥

संकल्प ले अब आपको यजमान दंपत्ति के हाथों में अक्षर लेकर पूर्णाहुति का संकल्प लेना है.

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्री मद्भग्वतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्राह्मणोऽहि द्वितीयप्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवश्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे (अमुक) प्रदेशे (अमुक) मासे (अमुक) पक्षे (अमुक) तिथौ (अमुक)(अपना नाम) नामनाहम् (अमुक) (अपना गोत्र) गोत्रस्य मम् नवजात शिशु: (अमुक) नक्षत्र गण्ड-मूल जनित दोषोपशांत्यर्थ पूजनं पूर्णाहुति कर्माहं करिष्ये ।

(यजमान अक्षत,जल लेकर यह मंत्र बोलते हुए पृथ्वी मे छोड़ दे)

पूर्णाहुति-अब यजमान दंपत्ति को घीं,शाँकल्य व नारियलगिरी (नारियलगिरी को लाल कपड़ा या मौलिधागा मेंलपेटकर)निम्न मंत्रों से हवन कुंड मे आहुति दिलवाएँ-

ॐ पूर्णा दर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत।

वस्नेव विक्र्कीणावहाऽइषमूर्ज ँ शतक्र्कतो नमः स्वाहा॥

1. भस्म धारण

॥ श्री सत्यनारायण पूजा पद्धति॥ अनुसार करें।

अब आपको गण्ड-मूल दोष की शांति हेतु आपको छाया दान करना है सबसे पहले आपको एक माली या थाली लेकर उसमें गिया तिल का तेल लेना है यजमान को उस तेल में मूल वाले शिशु का सर्वांग डलवाना है उसके बाद उसे यजमान दंपत्ति के पीछे रख देना है और निम्न मंत्र का जाप करना है.

ॐ आज्यस्त्वं सर्वदेवानां प्रिय: स्वस्तिकर: शुचि:।

त्वयि संक्रान्तबिम्बोयं बालो मूलर्क्षसंभव:॥

सर्वदोष परित्यक्तो जायतां निरुपद्रव:॥

अब आपको उस तेल का माली सहित दान कर देना है.

2. गोदान

उसके बाद आपको शिशु का जन्म गोमुख से हुआ है ध्यान करते हुए शिशु को पहले गाय के मुंह के पास ले जाना है और उसके बाद गाय के पेट पर पैर रखवाला है उसके बाद गाय की पूंछ को छुआ कर शिशु को पिता को दे देना है उसके बाद निम्न मंत्र का जाप करना है.

देवस्य त्वा सवितुः अश्विनौ भैषज्येन शिरो मे जिह्वा मे बाहू मे पृष्टीर्मेतुष्टिर्मेनाभिर्मे ।

गाव:कामप्रदातारो गावो लोकस्य मातर:।

गोमुखान्नि: सूतो बालो गोमुखश्वासमार्जित:॥

3. आरती

उसके बाद आपको शिवजी या फिर जगदीश्वर भगवान की आरती करनी है.

उसके बाद आपको पुष्पांजलि व प्रदक्षिणा देनी है.

4. पुष्पांजलि

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।

ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥

नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च ।

पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, पुष्पाञ्जलि समर्पयामि ।

(पुष्पाञ्जलि अर्पित करे।

5. प्रदक्षिणा

ॐ ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः ।

तेषा ँ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ।

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणया पदे पदे ॥

ॐ नक्षत्र मूर्तये नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि ।

 

(प्रदक्षिणा करे ।)

अब यजमान दंपत्ति को अक्षत-जल देकर ब्राह्मण दक्षिणा, फिर भूयसी दक्षिणा लेवे-

6. ब्राह्मण दक्षिणा

ॐ विष्णु शान्ति कर्माऽहं पूजन सांगता सिद्धयर्थ ब्राह्मण दक्षिणा अहं ददातु ।

(यजमान अक्षत,जल,दक्षिणा सहित ब्राह्मण को देवे)

7. भूयसी दक्षिणा

ॐ विष्णु शान्ति कर्माऽहं पूजन न्यूनता दोष समनार्थ भूयसी दान–दक्षिणा कर्म अहं करिष्ये ।

(यजमान अक्षत,जल और जो भी दान – दक्षिणा हो,ब्राह्मण को देकर संतुष्ट करे)

अब उसके बाद आपको यजमान दंपत्ति के हाथों में रक्षा सूत्र बांधकर तिलक कर देना है.

8. रक्षासूत्र

ॐ यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्य ँ शतानीकाय सुमनस्य माना:।

तन्मऽआ बध्नामि शत शारदाया युष्माञज़रदष्टिर्यथासम्॥

तिलक-ॐ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः।

तिलकं ते प्रयच्छन्तु कामधर्मार्थ सिद्धये॥

9. विसर्जन

॥ श्री गणेश चतुर्थी पूजन ॥ के अनुसार करवायें।

अब आपको नक्षत्र प्रतिमा का दान ब्राह्मण को कर देना है.

ॐ विष्णु…………….. गण्ड-मूल दोष शान्ति: हेतवे नक्षत्र पीठदान अहं करिष्ये ।

अब सुपा(बाँसपात्र) को अनाज(धान्य)आदि से भरकर ऊपर धोती,गमछा या कोई नया वस्त्र बिछाकर नवजात शिशु को उसमे सुलादेवें। अब आचार्य चारों कलश से थोड़ा-थोड़ा जल लेकर शिशु के ऊपर मंत्र पढ़ते हुए जल छिड़कें-

ॐ सुरास्त्वामभिषिऽचन्तु ये च वृद्धा: पुरातन:।

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च संध्याश्च स मरुद्गण:।

आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा: सनातना: लोकपाला: प्रयच्छंतु मंगलानि श्रियंयश:।

अश्विनौ चाभिऽचन्तुदेवास्त्वदिति देवता: सिद्धि सरस्वती लक्ष्मी: कीर्तिर्मेधा धृति: प्रिया।

सिनीवली कुहूश्चैव कद्रुश्च विनता तथा।

नक्षत्राणि मुहूर्तानि अहोरात्राणि सिन्धव: संवत्सरा दिनेशाश्च कला: काष्ठा: क्षणालवा:।

सप्तैते ऋषयश्चैव सागरा: सुदृढव्रता:।

मरीचिरत्रिश्च्यवन: पुलस्त्य: क्रतुरंगिरा।

भृगु: सनत्कुमारश्च सनकश्च सनंदन:।

सनातनश्च दक्षश्च योगिब्रह्मार्षयोऽमला:।

जावाल: कश्यपो धौम्या विष्णुश्चैव सनातन:।

दुर्वासाश्च ऋषिश्रेष्ठ: कण्व: कात्यायनस्तथा।

मार्कन्डेयो दीर्घतम: शुन: शेफ: सुलोचन:।

वशिष्ठश्च महातेजा विश्वामित्र: पराशर:।

द्वैपायनो भृगुश्चैव देवराजो धनऽजय: एते चान्ये च ऋषयो देवव्रत परायणा:।

सशिष्यास्त्वाभिषिऽचन्तु सदारा: सुमहाव्रता।

पर्वतास्तरवोवल्य: पुण्यान्यायतनानि च।

ऐरावतादयोनागा: सप्त सप्तहया: शुभा:।

एते चान्येपि च वरा: सुरा: संपद्विवर्द्धना:।

योऽसौवज्रधरो देव: आदित्यानां प्रभुर्मत: सहस्त्रनयन: शक्रो मूलदोषं व्यपोहतु।

मुखं य: सर्वदेवानां सप्ताचिर्रमितद्युति:।

उक्तनक्षत्र संभूतमग्निदोषं व्यपोहतु।

य: साक्षी सर्वभूतानां महामहिषवाहन:।

उक्तनक्षत्र संभूतां यम: पीडां व्यपोहतु।

निर्ऋति: कौणपौ देवमलयानल सन्निभा:।

खंगव्यप्रग्रोतिभीमश्च ऋक्षदोषं व्यपोहतु।

प्राणरूपो हि लोकानां सदा कृष्णम्हगप्रिय:।

पवनो मूलसंभूतां पीडां सर्वां व्यपोहतु।

योऽसौ निधिपतिर्देव: खड्गशूलगदाप्रिय:।

उक्तनक्षत्र संभूतमग्निदोषं व्यपोहतु।

योऽसौ निधिपतिर्देव: खड्गशूलगदाप्रिय:।

उक्तनक्षत्रजां पीडां धनदोऽत्र व्यपोहतु।

वृषध्वज: शूलधरोभवानीपतिदेवता:।

बालनक्षत्रजां पीडां सनाशयतु शंकर:।

त्रैलोक्ये यानि भूतानि जंगमस्थावराणि च ब्रह्माविष्ण्वर्कयुक्तानि सर्वपापं हरन्तु वै॥

॥इति: डी॰पी॰दुबे कृत् गण्ड-मूल दोष शान्ति: विधान सम्पूर्ण:॥

FAQ : मूल शांति करने की विधि pdf

मूल शांति की पूजा कैसे की जाती है?

जो भी बच्चे आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में पैदा होते हैं उन बच्चों को बुध ग्रह की आराधना करनी चाहिए और बुधवार के दिन उन्हें हरी वस्तुओं का दान भी करना चाहिए इसके अलावा गंडमूल में जिन बच्चों ने जन्म लिया है उन बच्चों के जन्म लेने के ठीक 27 में दिन गंड मूल शांति पूजा करानी चाहिए और ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देनी चाहिए और उन्हें भोजन भी कराना चाहिए।  

मूल शांति कब करनी चाहिए?

मूल नक्षत्र शांत करने के लिए आपको बच्चे के जन्म के 27 में दिन आपको मूल शांति की पूजा कर आनी चाहिए उसके बाद जब तक बच्चे की उम्र 8 साल तक ना हो जाए तब तक उनके माता-पिता को ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए।  

मूल का स्वामी कौन है?

पैसे तो मूल नक्षत्र का स्वामी केतु को माना जाता है इसकी राशि गुरु होती है जब केतु , गुरु , धनु राशि में उच्च का होता है तो इसकी दशा 7 वर्ष की हो जाती है।

निष्कर्ष

दोस्तों जैसा कि आज हमने आप लोगों को इस लेख के माध्यम से मूल शांति करने की विधि pdf के बारे में बताया और उसके साथ ही अभी बताया कि मूल शांति पूजा सामग्री लिस्ट कौन सी है और 6 मूल नक्षत्र के बारे में भी बताया है या भी बताया है कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे की शांति कराने के लिए कौन से उपाय किए जाते हैं.

अगर आप के आस पास भी कोई बच्चा इस नक्षत्र में जन्म लेता है तो हमारे द्वारा बताए गए उपायों को जरूर अपनाएं और उसका लाभ उठाएं उम्मीद करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित हुई होगी।