Ganpati atharvashirsha Hindi : संपूर्ण गणपति अथर्वशीर्ष और पाठ विधि,शुभ समय और लाभ

Ganpati atharvashirsha | गणपति अथर्वशीर्ष : नमस्कार प्रिय मित्रों आज मैं इस लेख में आप लोगों को गणपति अथर्वशीर्ष टॉपिक से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करूंगी.

गणपति अथर्वशीर्ष

जिसमें मैं आप लोगों को संपूर्ण गणपति अथर्वशीर्ष पाठ की जानकारी के साथ-साथ इस पाठ को करने की संपूर्ण उचित विधि, नियम और इसको पाठ करने से प्राप्त होने वाले सभी प्रकार के लाभों के विषय में भी बताएंगे, ताकि जिन लोगों को गणपति अथर्वशीर्ष पाठ के विषय में कुछ भी नहीं मालूम है, तो वह लोग इस लेख से गणपति अथर्वशीर्ष पाठ की महत्वपूर्ण जानकारी को विधिवत रूप से प्राप्त कर सकें.

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ पार्वती पुत्र गणेश को समर्पित एक वैदिक प्रार्थना है. जिसमे गणेश भगवान को परम् ब्रहा के रूप में दर्शाया गया हैं मान्यता है कि प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष पाठ का विधिवत रूप से पाठ करने से अशुभ कार्य भी शुभ कार्यों में परिवर्तित हो जाते हैं और साथ ही साथ सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं.

ऐसा इसलिए क्योंकि गणेश भगवान को सभी देवताओं में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है इसलिए हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य या पूजा पाठ या फिर कोई मांगलिक कार्य की शुरुआत करने पर सबसे पहले गणेश भगवान की पूजा की जाती है.

उसके बाद उस कार्य की शुरुआत की जाती है क्योंकि मान्यता है कि कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणेश भगवान की पूजा करने से वह कार्य निर्विघ्न संपन्न होता है यानी कि उस कार्य में किसी प्रकार की रुकावट या बाधा नहीं आती है इसीलिए गणेश भगवान को विघ्नहर्ता भी कहा जाता हैं.

इसी के साथ में गणेश जी को बुद्धि व विवेक प्रदान करने का देवता माना जाता है अगर कोई भी व्यक्ति गणेश भगवान की पूजा-अर्चना करता है तो उस व्यक्ति को बुद्धि ज्ञान और सहनशीलता प्राप्ति होती है .

गणेश भगवान की इस महिमा को देखते हुए आज हम इस लेख में गणेश भगवान को प्रसन्न करने के लिए गणपति अथर्वशीर्ष पाठ के विषय में विधिवत जानकारी देंगे. जिसे शुभ दिन, शुभ समय ,उचित विधि और नियम के साथ पाठ करने से गणेश भगवान अति प्रसन्न होते हैं.

ऐसे में जो लोग गणपति अथर्वशीर्ष पाठ के विषय में विधिवत जानकारी पाना चाहते हैं, तो कृपया करके वह लोग इस लेख को शुरू से अंत तक अवश्य पढ़ें.

गणपति अथर्वशीर्ष | Ganpati atharvashirsha

यहां पर सम्पूर्ण गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को एक विस्तार से बताया जा रहा हैं.

 

ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्माऽसि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम।।1।।
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि 2

अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्‍चातात्। अव पुरस्तात्।
अवोत्तरात्तात्। अव दक्षिणात्तातत्।
अवचोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मॉं पाहि-पाहि समंतात।।3।।

त्वं वाङ्‌मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माऽसि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारि वाक्पदानि।5।।

त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
त्वं रुद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम।।6।।

गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्‍चान्त्यरूपं। बिन्दुरुत्तररूपं।
नाद: संधानं। स हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।

एकदंताय विद्‌महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात्।।8।।

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृते पुरुषात्परम।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।

नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।

एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।। स: ब्रह्मभूयाय कल्पते।।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते स सर्वत: सुख मेधते।। 11।।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।।
सायं प्रात: प्रयुंजानो पापोद्‍भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।।
धर्मार्थ काममोक्षं च विदंति।।12।।

दमथर्वशीर्षम शिष्यायन देयम।।
यो यदि मोहाददास्यति स पापीयान भवति।।
सहस्त्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत।।13

अनेन गणपतिमभिषिं‍चति स वाग्मी भ‍वति।।
चतुर्थत्यां मनश्रन्न जपति स विद्यावान् भवति।।
इत्यर्थर्वण वाक्यं।। ब्रह्माद्यारवरणं विद्यात् न विभेती
कदाचनेति।।14।।

यो दूर्वां कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति।। स: मेधावान भवति।।
यो मोदक सहस्त्रैण यजति।
स वांञ्छित फलम् वाप्नोति।।
य: साज्य समिभ्दर्भयजति, स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।

ष्टो ब्राह्मणानां सम्यग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति।।
सूर्य गृहे महानद्यां प्रतिभासंनिधौ वा जपत्वा सिद्ध मंत्रोन् भवति।।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।। महादोषात्प्रमुच्यते।। महापापात् प्रमुच्यते।स सर्व विद्भवति स सर्वविद्भवति। य एवं वेद इत्युपनिषद।।16।।

।। अर्थर्ववैदिय गणपत्युनिषदं समाप्त:।।

यहां पर हमने संपूर्ण गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को एक विस्तार से प्रस्तुत किया है अब हम आप लोगों को बताएंगे कि गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को कब और किस विधि के द्वारा पाठ किया जाता है .

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ करने का शुभ दिन और शुभ समय | Ganpati atharvashirsha path karne ka shubh din aur shubh samay

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को बुधवार के दिन पाठ करना सबसे शुभ माना जाता है क्योंकि बुधवार का दिन गणपति भगवान को समर्पित है, इसीलिए इस दिन गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करना आपके लिए फलदाई साबित होगा.

Ganesh Lakshmi

बुधवार के अलावा गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को गणेश चतुर्थी या फिर गणेश भगवान के किसी महाउत्सव पर्व पर पाठ कर सकते हैं. अगर कोई जातक-जातिका प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने में सक्षम है तो उसके लिए गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करना शीघ्र फलदाई साबित होगा.

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को करने की संपूर्ण विधि | Ganpati atharvashirsha path ko  karne ki sampurn vidhi

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने की विधि बहुत ही सरल है लेकिन जिन लोगों ने कभी भी गणपति अथर्वशीर्ष पाठ का पाठ नहीं किया है तो इन लोगों के लिए इसे पाठ करने में कठिनाई महसूस हो सकती है इसीलिए हम यहां पर गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने की सबसे सरल और प्रभावी विधि को नीचे एक क्रम से बता रहे हैं.

1. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने के लिए सूर्य उदय से पहले उठकर अपने घर की अच्छे से साफ-सफाई करने के पश्चात स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.

2. स्नानादि से निवृत्त होने के पश्चात कुश का आसन लगाकर पूजा घर में पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके बैठ जाएं.

Satyanarayan

3. पूजा घर में पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके बैठने के पश्चात आपको प्राणायाम करना है और प्राणायाम करने के लिए नीचे बताए जा रहे हैं. मंत्र का जाप करके इस प्रक्रिया को पूरा करें.

मंत्र

ॐ गं ॐ ।।

4. प्राणायाम करने के बाद आत्म शुद्धि करने के लिए आचमन प्रक्रिया करनी है. आचमन करने के लिए अपने दाहिने हाथ में जल लेकर नीचे बताए जा रहे श्लोक को बोलकर आचमन ग्रहण करें

ॐ केशवाय नमः | ॐ नारायणाय नमः | ॐ माधवाय नमः |

5. तीन बार आचमन ग्रहण करने के पश्चात ॐ गोविन्दाय नमः मंत्र का उच्चारण करके अपने हाथों को स्वच्छ जल से धो लें.

6.आचमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब आपको अपने तन ,मन ,पूजा, स्थान पूजा सामग्री के पवित्रीकरण के लिए नीचे बताए जा रहे हैं. मंत्र का जाप करके पवित्रीकरण की प्रक्रिया पूरी करनी है .

मंत्र-

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।
ॐ पुंडरीकाक्ष: पुनातुः, ॐ पुंडरीकाक्ष: पुनातुः, ॐ पुंडरीकाक्ष: पुनातुः ।।

7. इस मंत्र का जाप करने के बाद आप अपने हाथ में लिए हुए जल को अपने ऊपर तथा पूजा घर और पूजा सामग्री पर छिड़कर पवित्रीकरण की प्रक्रिया पूरी करें.

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8. पवित्रीकरण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आप गणेश भगवान को गंगाजल से स्नान कराकर उन्हें उनके अनुकूल वस्त्र धारण करने के पश्चात चौकी पर श्वेत वस्त्र के ऊपर स्थापित करें, अगर आप गणेश भगवान का चित्र लगाना चाहते हैं तो उसमें स्नान वगैरह की प्रक्रिया ना करें. फोटो को ऐसे ही लगा दे.

9. गणेश भगवान की फोटो या प्रतिमा स्थापित होने के पश्चात अपने हाथों में कुछ पुष्प लेकर नीचे बताए जा रहे, श्लोक का उच्चारण करते हुए उसको गणेश भगवान के चरणों में अर्पित करे.

पुष्प अर्पित श्लोक

ॐ गणानां त्वा गणपति(गूँ) हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति(गूँ)
हवामहे निधीनां त्वा निधिपति(गूँ) हवामहे वसो मम ।
आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्‌ ।

10. अब आपको गणेश पूजन करना है गणेश पूजन करने के लिए सबसे पहले गणेश भगवान को लाल चंदन या सिंदूर से तिलक लगाएं उसके बाद इनके समक्ष फल-फूल, अक्षत और पूजा की जो भी सामग्री हो अर्पित करें खासकर के गणेश भगवान को दूर्वा जरूर अर्पित करें.

11. अब आप भगवान गणेश के समक्ष घी का दीपक जला कर इन्हें मोदक के लड्डू का भोग लगाकर स्वच्छ पीने के लिए साफ जल भी अर्पित करें.

12. इतनी प्रक्रिया करने के बाद आप अपनी श्रद्धा-भाव के अनुसार गणेश भगवान को छोटी इलाइची, लोंग, सुपारी और पान अर्पित करें .

13. पूजा में इतनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब आप अपने दाहिने हाथ में स्वच्छ गंगा जल लेकर गणेश भगवान के समक्ष गणपति अथर्वशीर्ष को एक निश्चित काल यानी की जितने समय में आप इस पाठ को पूर्ण करने में सक्षम है. उसी अनुसार गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पूर्ण करने का संकल्प लें.

14. संकल्प लेने के बाद आप सच्ची श्रद्धा भक्ति के साथ गणेश भगवान को याद करके गणपति अथर्वशीर्ष को पाठ करना प्रारंभ करें.

15. इस विधि के द्वारा आप अपने अनुसार लिए संकल्प के तहत गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को एक निश्चित समय में पूर्ण करके इनका आशीर्वाद प्राप्त करें.

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को करने के लाभ | Ganpati atharvashirsha path ko karne ke labh

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को विधिवत रूप से पाठ्य करने से बुद्धि, ज्ञान ,विवेक, सहनशीलता की प्राप्ति होती हैं और इसी के साथ में कई सारे अद्भुत लाभ भी प्राप्त होते हैं. जिनके विषय में नीचे बताया जा रहा है जैसे-

Ganesha

1. प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष पाठ करने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.

2. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ करने से अशुभ कार्य शुभ कार्यों में परिवर्तित हो जाते हैं.

3. प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने से स्वास्थ्य को कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं.

4. गणपति अथर्वशीर्ष को पाठ करने से कारोबार और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में तरक्की मिलती है.

5. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने से मन शुद्ध होता है .

6. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने से सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती हैं. जिससे हम सदैव अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित होते रहते हैं.

7. प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने से गणपति भगवान की कृपा का आभास होने लगता है.

8. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने से जीवन के अमंगल दूर होते है.

9. गणपति अथर्वशीर्ष का प्रतिदिन जाप करने से राहु-केतु और शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव से सुरक्षा प्राप्त होती हैं .

10. गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से आत्मविश्वास बढ़ता है.

11. सच्ची श्रद्धा भक्ति के साथ किया गया गणपति अथर्वशीर्ष पाठ जातक को मनोवांछित फल प्रदान करने में सक्षम है.

तो दोस्तों यह सभी लाभ गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने से प्राप्त होने वाले लाभ हैं लेकिन यह लाभ आप लोगों को तभी प्राप्त होंगे जब आप शास्त्रों में गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने के लिए बनाए गए नियमों का पालन करेंगे.

लेकिन ऐसे बहुत से जातक-जातिका होगे जिन्हें अभी तक गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने के नियमों से भलीभांति अवगत नहीं होगे.

इसीलिए मैं यहां पर गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने के सभी नियमों को नीचे एक क्रम से प्रस्तुत कर रही हूं. जिन्हें पढ़कर आप लोग गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने के नियम से भलीभांति अवगत हो सकते हैं.

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को करने के नियम | Ganpati atharvashirsha path ko karne ke niyam

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने के सभी नियम नीचे एक क्रम से दर्शाए जा रहे हैं.

1. महिलाओं में महावारी की समस्या होने पर भूलकर भी वह महिलाएं गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ ना करें.

2. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करते समय किसी के अहित के विषय में ना सोचे.

3. गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करते समय अपने मन में क्रोध, कामना, वासना, छल, कपट जैसी भावना बिल्कुल भी ना आने दे.

4. गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करते समय प्रकृति के द्वारा बनाई गई सभी वस्तु के प्रति अपने मन में स्नेह की भावना रखें.

5. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ में गणेश भगवान की फोटो चित्र स्थापना के लिए शुभ दिशा का अवश्य ध्यान रखें.

6. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने के लिए कुश का आसन ग्रहण करें.

7. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने से पहले गणेश भगवान की विधिवत पूजा अर्चना अवश्य करें.

8. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करने के लिए धूम्रपान से परहेज करें.

9. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पाठ करते समय यह ना सोचे कि हमें इसे पाठ करने का तुरंत लाभ प्राप्त हो बल्कि श्रद्धा और भक्ति के साथ आप गणपति अथर्वशीर्ष पाठ को पूर्ण करें फल आपको आपकी भक्ति के अनुकूल प्राप्त हो जाएगा.

10. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ के दुगने लाभ के लिए गणेश भगवान के महाउत्सव या फिर इन्हें समर्पित दिन के अनुकूल इसे पाठ करें तो अद्भुत लाभ प्राप्त होंगे.

तो मित्रों यही कुछ नियम है, अगर आप लोग इन नियमों का पालन करके गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करते हैं तो आप लोग इस पाठ से प्राप्त होने वाले सभी लाभ हासिल करने में सक्षम हो सकते हैं.

FAQ: गणपति अथर्वशीर्ष

गणपति भगवान किसके पुत्र हैं ?

गणेश भगवान माता पार्वती और भगवान शिव के सबसे छोटे पुत्र हैं.

गणेश भगवान को विघ्नहर्ता क्यों कहा जाता है ? 

गणेश भगवान को विघ्नहर्ता इसलिए कहा जाता है क्योंकि कोई भी शुभ कार्य करने से पहले इनकी विधिवत पूजा-अर्चना से वह कार्य निर्विघ्न संपन्न होता है इसीलिए इन्हें निर्विघ्नं हरता कहा जाता है.

गणेश भगवान की पत्नी का क्या नाम है ?

गणेश भगवान की दो पत्नियां थी जिनके नाम रिद्धि और सिद्धि था.

निष्कर्ष

प्रिय मित्रों जैसा कि आज हमने इस आर्टिकल में गणपति अथर्वशीर्ष टॉपिक से संबंधित जानकारी प्रदान की है जिसमें मैंने आप लोगों को गणपति अथर्वशीर्ष का संपूर्ण पाठ बताने के साथ-साथ इसे कब, कैसे, किस विधि ,नियम के साथ पाठ करना है इसके विषय में भी बताया है ,साथ में इस पाठ को पाठ करने से प्राप्त होने वाले लाभ के विषय में भी बताया है .

अगर आप लोगों ने इस लेख को शुरू से अंत तक पढ़ा होगा तो आप लोगों को गणपति अथर्वशीर्ष टॉपिक से संबंधित संपूर्ण जानकारी सटीक एवं सरल शब्दों में प्राप्त हो गई होगी जिसे पढ़ने के पश्चात आप लोग गणपति अथर्वशीर्ष पाठ के विषय में काफी कुछ जान लिया होगा.

तो मित्रों हम उम्मीद करते हैं कि आप लोगों को हमारे द्वारा बताई गई जानकारी पसंद आई होगी साथ में उपयोगी भी साबित हुई होगी.

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