निर्विकार मन क्या है ? निर्विकार मन की विधियाँ | nirvikar man kya hai ?

निर्विकार का मतलब मन में किसी भी प्रकार का किसी के प्रति कोई द्वेष भावना या फिर किसी भी प्रकार की इच्छा ना होना है। अर्थात मन ही एक ऐसी चीज है जिसके माध्यम से हम सभी कार्य करते हैं परंतु उसके बीच में कुछ ना कुछ स्वार्थ छिपा होता है । परंतु जब हम स्वार्थ रहित निष्काम भावना से कोई भी कार्य किसी के प्रति करते हैं तो वह मन हमारा निर्विकार मन हो जाता है।

पर मन कैसे लागे राजा man ko kaise jeete मन को कैसे बस में करें मन को कैसे बस करें

मानव शरीर में दो प्रकार के मन होते हैं एक वाह मन होता है जो जीवन के क्रियाकलाप करता रहता है तथा दूसरा आंतरिक मन जो की बहुत ही तेजी से चलता रहता है। मनुष्य आंतरिक मन से ही सामान्य से उठकर अलौकिक सिद्धियां प्राप्त करता है और आंतरिक मन को ही सबसे अधिक महत्व देता है। मानव का मन हमेशा सक्रिय बना रहता है| वह कभी भी स्थिर  नहीं रहता परंतु मन को विचार शून्य बनाने के लिए यदि प्रयत्न किया जाए |

तो उसे हम विचार सुने बनाकर आराम दे सकते हैं मानव जब विचार और मन पर पूर्ण केंद्रित हो जाता है तो उसका प्रभाव बढ़ जाता है साथ ही वह वेगवान हो जाता है।! यह पोस्ट आप OSir.in वेबसाइट पर पढ़ रहे है !नियंत्रित और निर्विकार बनाने के लिए कुछ साधनाएं होती हैं जिनके माध्यम से हम अपने मन पर काबू कर सकते हैं और जीवन में असाध्य कार्यों को भी सफल बना सकते हैं। आइए हम जानते हैं –

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मन को साधने के कुछ तरीके कौन-कौन से हैं ? | What are some ways to cultivate the mind?

चलिए अब हम आप को बताते है कि मन को साधने के तरीके कौन से है , और इन विधियों का प्रयोग कैसे करेंगे :

1. पहला विधि – 

unblemished mind

अपने मन को निर्विकार बनाने के लिए सबसे पहले अपने दोनों हाथों को सामने की ओर फैला दें दोनों हाथों की हथेलियां जमीन की ओर पूरी तरह से हाथों को तने हुए रखें उसके बाद धीरे-धीरे सांस अंदर और बाहर करें। यह करते वक्त आपको पूर्ण रूप से ध्यान लगाने की स्थिति में रहना है जिससे आपका मन शांत हो जाएगा और आपके अंदरआत्मीय अनुभूति होगी।

2. दूसरा विधि – 

अपने मन को निर्विकार बनाने के लिए अपने दोनों हाथों को सीधे सामने फैलाकर कुछ समय तक खड़े रहिए और बाद में धीरे-धीरे हाथों को सिर की ओर ले जाकर और ऊपर की तरफ तान दे फिर धीरे-धीरे सांस लें और जितनी ज्यादा हो सके| ! यह पोस्ट आप OSir.in वेबसाइट पर पढ़ रहे है !

उतनी सांस अंदर रखकर फिर धीरे से पूरी शक्ति के साथ बाहर निकाल दें यह ध्यान रखना है कि सांस निकालते समय शरीर की पूरी ताकत लगाना है और फिर अंदर धीरे-धीरे सांस लेना है।

3. तीसरा विधि – 

अपने दोनों हाथों को सामने की ओर फैलाकर हथेलियों को आमने सामने रखी और उंगलियों को पूरी तरह से खोल दें तथा सांस तेजी से अंदर और धीरे  धीरे बाहर निकाले।

4. चौथा विधि – 

unblemished mind

दोनों हाथों की उंगलियों को आमने सामने रखते हुए सीने के सामने रखी और दोनों हाथों की उंगलियों को एक दूसरे में फंसा कर जितनी ताकत से हो सके उतनी ताकत से सांस अंदर लें और फिर बाहर उतनी ही ताकत से सांस को निकाल ले |

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5. पांचवी विधि –

  • दोनों हाथों की उंगलियों को एक दूसरे में फंसाकर आकाश की ओर जितना ऊंचाई की ओर उठा सकें उठाते रहे और गहरी सांस लेकर धीरे-धीरे सांस को छोड़िए।! यह पोस्ट आप OSir.in वेबसाइट पर पढ़ रहे है !
  • यह सभी विधियां जब आप रोज करते हैं तो आपको विधियां सामान्य जरूर लगती हैं परंतु निर्विकार मन बनाने के लिए बहुत बड़ा महत्व है |
  • इससे श्वास क्रिया नियमित होती है और अपने समाज पर नियंत्रण भी होता है जिससे निर्विकार मन बनाने में आसानी हो जाती हैं।