Bhojan Mantra kitne prakar ke hote hai ? भारतीय संस्कृत का एक अहम हिस्सा मंत्र होते हैं किसी भी प्रकार के कार्य करने से पहले हम उससे संबंधित मंत्र का जाप किया जाता है अथवा पढ़ा जाता है. हमारे धर्म शास्त्रों में विभिन्न प्रकार के संस्कारों से संबंधित अनेकों मंत्रों का वर्णन किया गया है जिन्हें संस्कार समापन से पूर्व और समापन के बाद पढ़ कर समाप्त कर दिया जाता है।
जन्मदिन से लेकर मृत्यु के दिन तक दिन प्रतिदिन किसी न किसी मंत्र के साथ ही कार्य किया जाता है यह अलग बात है कि मंत्रों का उच्चारण कार्य करने से पहले बहुत कम लोग करते हैं परंतु कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बिना मंत्रोचार करें कोई कार्य नहीं करते हैं
जिस प्रकार से अन्य मांगलिक कार्यों में मंत्रों का बहुत बड़ा महत्व है उसी प्रकार से भोजन मंत्र का भी एक अपना अलग महत्व है क्योंकि जिस भोजन से हमारा शरीर निर्मित होता है और समृद्ध होता है उसी भोजन के प्रति हम सदैव कृतज्ञ रहे यह हमारी सनातन संस्कृति का हिस्सा है।
भारतीय सनातन संस्कृति में भोजन को देवता माना जाता है इसीलिए भोजन करने से पहले भोजन मंत्र पढ़े जाते हैं भोजन हमारे शरीर को तृप्त करता है इसलिए भोजन के प्रति सम्मान का भाव जरूरी है
भोजन मंत्र कौन-कौन से हैं ? | Bhojan Mantra
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हमारी भारतीय सनातन संस्कृति में भोजन के लिए कई प्रकार के मंत्रों का वर्णन है जिसमें से कुछ प्रमुख मंत्र हम अपने लेख के माध्यम से दे रहे हैं। इन मंत्रों को भोजन करने से पूर्व मंत्रोचार करना जरूरी होता है
1. गीता का भोजन मंत्र
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना।१।ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:
मंत्र का अर्थ
यह मंत्र गीता के चौथे अध्याय का 24 वां श्लोक हैं इस मंत्र का अर्थ यह है कि जिस यज्ञ में अर्पण अर्थात स्रुवा आदि भी ब्रह्म है, और हवन किये जाने योग्य द्रव्य भी ब्रह्म है,
और ब्रह्म रूप कर्ता के द्वारा ब्रह्म रूप अग्नि में आहुति देना रूप क्रिया भी ब्रह्म ही है। उस ब्रह्म कर्म में स्थित रहने वाला योगी द्वारा प्राप्त किये जाने योग्य फल भी ब्रह्म ही है।
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2. यजुर्वेद का भोजन मंत्र
अन्न॑प॒तेन्न॑स्य नो देह्यनमी॒वस्य॑ शु॒ष्मिणः॑ ।
प्रप्र॑ दा॒तार॑न्तारिष॒ऽऊर्ज॑न्नो धेहि द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:
मंत्र का अर्थ
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उपरोक्त मंत्र यजुर्वेद के ग्यारहवें अध्याय का 83वां इस लोक है इस मंत्र का अर्थ कहता है कि हे परमपिता परमेश्वर विभिन्न प्रकार के अन्य दाता हनी सभी अन्नों को प्रदान करें हमें रोग रही तो आप पोस्ट कारक अन्य प्रदान करके ओजस्वी बनाए हे अन्नदाता मंगल करता प्रभु ऐसा विभाग करो जिसमें प्राणी मात्र को भोजन प्राप्त हो और सही से शांति से भोजन प्राप्त करें
3. कठोपनिषद का भोजन मंत्र
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु।सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु।मा विद्विषावहै॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:।३।
मंत्र का अर्थ
यह मंत्र कठोपनिषद से लिया गया है जिसका अर्थ है कि है सर्व रक्षक परमेश्वर हम गुरु और शिष्य की साथ साथ रक्षा करो साथ-साथ पालन करो साथ साथ शक्ति प्राप्त करें और हमारी शिक्षा ओजस्वी हो हम परस्पर प्रेम से रहें तभी द्वेष ना करें।
त्रिविध तापों की शाति हो।।
4. भोजन की समाप्ति के बाद का मंत्र
यह भोजन मंत्र हिंदी भाषा में लिखा है इस भोजन मंत्र को भोजन करने से पूर्व मंत्रोचार करना चाहिए
अन्न ग्रहण करने से पहले
विचार मन मे करना है।
किस हेतु से इस शरीर का
रक्षण पोषण करना है।
हे परमेश्वर एक प्रार्थना
नित्य तुम्हारे चरणों में,
लग जाये तन मन धन मेरा
विश्व धर्म की सेवा में ॥
भोजन करने के बाद का मंत्र क्या है ?
उपरोक्त मंत्र भोजन करने से पहले मंत्रोचार किया जाता है परंतु भोजन की समाप्ति के बाद इस मंत्र को पढ़ना चाहिए
मंत्र इस प्रकार है
अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः।।
भोजन मंत्र का क्या महत्व है ? | Bhojan Mantra
सनातन धर्म संस्कृति और विज्ञान के अनुसार भोजन मंत्रों का जाप करने से यह सिद्ध होता है कि भोजन जिस माहौल में किया जाता है उसी अनुसार हमारे शरीर से भोजन के लिए रसायन बनते हैं.
यदि आप भोजन करते समय विरोध करते हैं तो आपके अंदर हानिकारक रसायन बनते हैं और अगर शांति से भोजन करते हैं तो शरीर में लाभदायक रसायनों का उत्पादन होता है जिससे किया गया भोजन हमारे शरीर के लिए उसी अनुरूप कार्य करता है
भारतीय सनातन संस्कृति में भोजन करने से पहले और बाद में मंत्रोचार करने से मन शांत रहता है आत्मा को सुकून मिलता है और शरीर स्वस्थ रहता है। भोजन करने से पहले यदि मंत्रोचार करते हैं तो हमारा मन भोजन के प्रति सम्मान से भर जाता है और भोजन का वास्तविक आनंद प्राप्त होता है साथ ही शरीर के लिए हानिकारक रसायनों का निर्माण नहीं होता जिससे शरीर निरोगी रहता है।
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