बृहस्पति व्रत कथा : बृहस्पति भगवान की आरती और बृहस्पति पूजा का उद्यापन | Brihaspati vrat katha : brihaspati bhagwan ki arti

Brihaspati bhagwan ki puja kaise kare? हेलो दोस्तों नमस्कार आज हम आप लोगों को बृहस्पति व्रत कथा आरती के बारे में बताएंगे जिससे आप लोगों को कभी भी बृहस्पति व्रत कथा आरती करने में कोई दिक्कत ना आए गुरुवार के दिन भगवान बृहस्पति की पूजा का विधि विधान है बृहस्पति देवता को बुद्धि और शिक्षा का देवता माना जाता है गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विधा , पुत्र तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. परिवार में सुख व शांति रहती है.

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बृहस्पति पूजा जल्दी विवाह करवाने के लिए किया जाता है लेकिन गुरुवार की पूजा वाले दिन ध्यान रखें की पूजा विधि विधान से ही होनी चाहिए सुबह प्रातः 4 बजे उठकर स्नान आदि से निश्चिंत होकर बृहस्पति देव का पूजन करना चाहिए चली इसके बारे में आप लोगों को विस्तार से बताएंगे कि बृहस्पति पूजा कैसे की जाती है बृहस्पति पूजा विधि क्या है और Brihaspati vrat katha aarti कौन सी है और आरती कौन सी है इन सारे विषयों पर चर्चा करेंगे और आपको बताएंगे कि इन चीजों को करने से क्या होता है।

बृहस्पति पूजा कैसे करें ? | Brihaspati vrat katha aarti

आज की व्यस्त जीवन शैली में हमारे पास समय की कमी होती है काफी लंबी पूजा विधि के लिए समय नहीं निकल पाते है ऐसे में बृहस्पतिवार को विष्णु भगवान और बृहस्पति देव की पूजा की जाती है साथ ही अगर केला का पेड़ घर के अगल-बगल या घर में उपलब्ध है तो आप केले के पेड़ की पूजा कर सकते हैं इसकी पूजा करना सर्वोत्तम माना जाता है बृहस्पतिवार के व्रत से घर में सुख समृद्धि बनी रहती है.

कुंवारी लड़कियां इस व्रत को इस लिए रखती हैं ताकि उनके विवाह में रुकावट ना आए ऐसा कहा जाता है अगर आप 1 साल तक गुरुवार का व्रत रखते हैं तो आपके घर में पैसों की कमी नहीं होगी बृहस्पति गुरू उनका हमारे जीवन में बहुत ही ज्यादा प्रभाव होता है सुख समृद्धि व्यवहारिक जीवन परिवार शांति विद्या पुत्र इन सबके दाता वह भगवान बृहस्पति देव की पूजा करने से हमें समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है.

भगवान बृहस्पति जी को भगवान विष्णु का अंस माना जाता है और भगवान विष्णु का वास केले के पेड़ पर होता है इसीलिए हमें गुरुवार के दिन भगवान विष्णु गुरु बृहस्पति और केले का पूजन करना चाहिए आपको 1 वर्ष में 16 गुरुवार के व्रत रखने चाहिए 16 गुरुवार व्रत रखने से आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और 17 गुरुवार को आपको इसका उद्यापन करना चाहिए.

आप इस व्रत को माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से आप इस व्रत को शुरू कर सकते हैं शुक्ल पक्ष बहुत ही शुभ समय माना जाता है और किसी भी नए काम को शुक्ल पक्ष में ही शुरू करना चाहिए।

बृहस्पति पूजा विधि | बृहस्पति व्रत कथा आरती

बृहस्पतिवार की पूजा विधि बहुत ही सरल है साथ ही हमें जिन चीजों की जरूरत होती है वह हमारे घर में बहुत आसानी से उपलब्ध हैं चने की दाल, गुड , हल्दी , केला , उपला हवन करने के लिए और भगवान विष्णु की फोटो अगर केले का पेड़ उपलब्ध है तो बहुत अच्छा हैं व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठ जाएं स्नान आदि से निश्चिंत हो जाए साफ-सुथरे कपड़े पहने और जहां आपको पूजा करनी है.

उसको भी साफ कर ले वहां भगवान विष्णु की फोटो रख लीजिए अगर आपको केले के पेड़ के नीचे पूजा करनी है तो वहां साफ कर ले वहां पर भगवान विष्णु की फोटो रख लीजिए अब हाथ में चावल और एक पीला फल लीजिए 16 गुरुवार व्रत करने का संकल्प भगवान के सामने दोहराई साथ ही अगर आप किसी मनोकामना के लिए पूजा कर रहे हैं तो मनोकामना को दोहराई और कहिए 16 गुरुवार व्रत अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए कर रहे हैं.

चावल और फूल भगवान की तस्वीर के सामने चढ़ा दीजिए साथ ही एक छोटा पीला कपड़ा भगवान के फोटो पर अर्पित कर दीजिए एक छोटे से लोटे में जल रख लीजिए उसमें थोड़ी सी हल्दी डाल दीजिए इस हल्दी वाले जल से भगवान विष्णु को स्नान कराइए अब उस लोटे में गुड़ और चने की दाल डालकर रख लीजिए इस गुड और चने को फोटो पर चाहिए.

अब तिलक कीजिए हल्दी चंदन लगाइए पीला चावल चढ़ाएं धूप दीप दिखाएं प्रसाद चढ़ाएं केले को प्रसाद के रूप में अर्पित करें अब इसके बाद आपको कथा पढ़नी होती है कथा के बाद उपले का हवन करें उपले को गर्म करके उसमें भी डालिए और जैसे ही अग्नि प्रज्ज्वलित हो जाए उस में हवन सामग्री के साथ गुड़ और चने की दाल की आहुति देनी चाहिए और हमें आप आहुति 5-7 बार ही देनी चाहिए और हमें आहुति देते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए ऊं बृं बृहस्पतये नम:। स्वाहा उसके बाद आपको भगवान विष्णु जी की आरती करनी चाहिए और अंत में आपको क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए

बृहस्पति पूजा के दिन क्या खाना चाहिए और क्या करना चाहिए ?

  1. पति पूजा के दिन गलती से भी केला ना खाएं आप प्रसाद को बांट सकते हैं और उसके बाद चने और गुड़ जरूर खाएं इससे आपको बहुत ही पुण्य प्राप्त होगा।
  2. इस दिन बालों में तेल नहीं लगाना चाहिए खासकर सरसों का तेल बिल्कुल नहीं लगाना चाहिए बालों को नहीं धोना चाहिए बाल नहीं काटने चाहिए।
  3. घर में पोछा नहीं लगाना चाहिए और यह सारे काम बृहस्पतिवार को किसी को नहीं करना चाहिए ।
  4. नमक नहीं खाना चाहिए खट्टा नहीं खाना चाहिए पीली चीज खा सकते हैं मीठा खा सकते हैं चने की दाल की पूठी पराठा खा सकते हैं।
  5. और आप अन्य को एक ही टाइम खा सकते हैं दिन में आप फलहार कर सकते हैं लेकिन नमक नहीं खाना है।

बृहस्पति पूजा की कथा | Brihaspati vrat katha

1 दिन इंद्र बड़े अहंकार से अपने सिंहासन पर बैठे थे और बहुत से देवता ऋषि , गन्धर्व, किन्नर आदि सभा में उपस्थित थे जिस समय बृहस्पति जी वहां आए तो सब उनके सम्मान के लिए खड़े हो गए परंतु इंद्र गर्व के मारे खड़ा ना हुआ यद्यपि वह सदैव उनका आदर किया करता था.

बृहस्पति जी अपना अनादर समझते हुए वहां से उठकर चले गए तब इंद्र को बड़ा शोक हुआ कि देखो मैंने गुरुजी का अनादर किया मुझसे बड़ी भारी भूल हो गई गुरु जी के आशीर्वाद से ही वैभव मिला है उनके क्रोध से सब नष्ट हो जाएगा इसलिए उनके पास जाकर उनसे क्षमा मांगनी चाहिए.

जिससे उनका क्रोध शांत हो जाए और मेरा कल्याण हो गए ऐसा विचार कर इंद्र उनके स्थान पर गए बृहस्पति जी ने अपने योग्य बल से पहचान लिया कि इंद्र क्षमा मांगने के लिए यहां आ रहा है तब क्रोध वर्ष उनसे भेंट करना उचित ना समझ कर अंतर्ध्यान हो गए जब इंद्र ने बृहस्पति को घर पर ना देखा तब निराश होकर लौट आए.

जब दैत्य के राजा विश्वकर्मा को यह समाचार विदित हुआ तो उसने गुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से इंद्रपुरी को चारों तरफ से घेर लिया गुरु की कृपा ना होने के कारण देवता हारने व मार खाने लगे तब उन्होंने ब्रह्मा जी को विनय पूर्वक सब वृतांत सुनाया और कहा कि महाराज दैत्यों से इसी प्रकार बचाएं तब ब्रह्माजी कहने लगे कि तुमने बड़ा अपराध किया है.

जो गुरुदेव को क्रोधित किया अब तुम्हारा कल्याण उसी से हो सकता है कि त्वष्टा ब्राह्मण का पुत्र विश्वरूपा बड़ा तपस्वी और ज्ञानी है उसे अपना पुरोहित बनाओ तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है या वचन सुनते ही इंद्र त्वष्टा से कहने लगे कि आप हमारे पुरोहित बनिए जिससे हमारा कल्याण हो तब त्वष्टा ने उत्तर दिया पुरोहित बनने से ततोबल घट जाता है.

परंतु तुम बहुत विनती करते हो इसलिए मेरा पुत्र विश्वरूपा पुरोहित बनकर तुम्हारी रक्षा करेगा विश्वरूपा ने पिता की आज्ञा से पुरोहित बन कर ऐसा किया कि हरि इच्छा से इंद्र विश्वकर्मा को युद्ध में जीता कर अपने इंद्रासन पर स्थापित हुआ विश्वरूप के तीन मुख्य थे एक से वह सोमपल्ली लता का रस निकालकर पीते थे दूसरे मुख से वह मदिरा पीते और तीसरे मुख से अन्य आदि भोजन करते थे.

इंद्र ने कुछ दिनों उपरांत कहा कि मैं आपकी कृपा से यज्ञ कराना चाहता हूं जब विश्वरूपा की अनुराग यज्ञ प्रारंभ हो गया तब एक दैत्य ने विश्वकर्मा से कहा कि तुम्हारी माता दैत्य की कन्या है इस कारण हमारे कल्याण के निमित्य 1 यदुपति देवों के नाम पर भी दे दीजिए तो अति उत्तम होगा.

विश्वरूपा उस दैत्य का कहना मान कर यदुपति देते समय दायित्व का नाम भी धीरे से लेने लगे इसी कारण यज्ञ करने से देवताओं का तेज नहीं बड़ा इंद्र ने यज्ञ वृतांत जानते ही क्रोधित होकर विश्वरूपा के तीनों सिर अलग कर डाले मधपान करने से भंवरा सोमपल्ली पीने से कबूतर और अन्य खाने से मुख में तीतर बना रूपा के मरते ही इंद्र का स्वरूप हत्या के प्रभाव से बदल गया.

देवताओं के 1 वर्ष पश्चाताप करने पर भी हत्या का वह पाप न छूटा तो सब देवताओं के प्रार्थना करने पर ब्रह्मा जी बृहस्पति जी के सहित वहां गए ब्रज हत्या के 4 वाक्य उनमें से एक भाग पृथ्वी को दिया उसी कारण कहीं-कहीं पृथ्वी ऊंची नीची और बीज बोने के लायक भी नहीं होती साथ ही ब्रह्मा जी यह वरदान दिया यहां पृथ्वी में गड्ढा होगा कुछ समय पाकर स्वयं भर जाएगा दूसरा वृक्षो को दिया सेवन में गोंद बनकर बहता है.

वृक्षों को या वरदान दीया की ऊपर से सूख जाने पर जड़ फिर से फूट जाती है तीसरा भाग स्त्रियों को दिया इस कारण स्त्रियां हर महीने रजस्वला होकर पहले दिन चांडालनी दूसरे दिन राम बृहतिनी तीसरे दिन गोविंद के समान रहकर चौथे दिन शुद्ध होती हैं और संतान प्राप्ति का उनको वरदान प्रप्ति क्या चौथा भाग जल को दिया जिससे फेन और सिवाल डीजल के ऊपर आ जाते हैं.

जल को यह वरदान मिला कि जिस चीज में डाला जाएगा वह बोझ मे बढ़ जाएगी इस प्रकार को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त किया जो मनुष्य इस कथा को दया सुनता है उसके सब पाप बृहस्पति महाराज की कृपा से नष्ट होते हैं.

बृहस्पति भगवान की पूजा का उद्यापन कैसे करें ?

उद्यापन के 1 दिन पहले यह पांच चीजें ला कर रखें चने की दाल गुड हल्दी पपीता पीला कपड़ा केला और 16 गुरुवार का पूरा होने के बाद सत्र में गुरुवार को आपको यह सब करना है आप जैसे व्रत रखते पूजा करते हैं उसी प्रकार से आपको उसका उद्यापन करना चाहिए गुरुवार दिन व्रत रखिए और अपने संकल्प को दोहराया और यह सारी सामग्री भगवान को चढ़ा दें और दूसरे दिन यह सारी चीजें किसी ब्राह्मण को दे दे।

बृहस्पति भगवान की आरती | Brihaspati vrat katha aarti

ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥

FAQ: बृहस्पति व्रत कथा आरती

Q. बृहस्पति पूजा कैसे किया जाता है?

Ans. बृहस्पति पूजा के लिए कौन सी सामग्री के साथ पूजा करनी चाहिए चने की दाल, गुड , हल्दी , केला , उपला हवन करने के लिए और भगवान विष्णु की फोटो अगर केले का पेड़ उपलब्ध है तो बहुत अच्छा हैं ऐसा करके आप बृहस्पति पूजा को कर सकते हैं और इसका फल आपको प्राप्त हो सकता है।

Q. बृहस्पति भगवान की पूजा करने से क्या फल मिलता है?

Ans. बृहस्पतिवार को पूजा करने से बृहस्पति देवता प्रसन्न होते हैं बृहस्पति भगवान को धन, बुद्धि और शिक्षा का देवता माना जाता है बृहस्पति की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है बृहस्पति पूजा व्रत विवाह के लिए किया जाता है और घर के सुख शांति के लिए भी किया जाता है।

Q. गुरु का बीज मंत्र क्या है?

Ans. ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः।

निष्कर्ष

दोस्तों जैसा कि आज हमने आप लोगों को बताया कि बृहस्पति व्रत कथा आरती बताइए तो आप लोगों को यह लेख पढ़ने के बाद समझ में आ गया होगा कि बृहस्पति व्रत कथा आरती कौन सी है जब भी आप बृहस्पति पूजा करें और व्रत करें तो इस व्रत कथा को जरूर पढ़ें और आरती भी जरूर पढ़ें।