200 कबीर के दोहे PDF किताब डाऊनलोड : हिंदी अर्थ सहित | kabir ke dohe hindi pdf

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कबीर के दोहे इन हिंदी पीडीएफ | Kabir Ke Dohe in Hindi PDF : हेलो दोस्तो नमस्कार स्वागत है आपका हमारे आज के इस नए लेख में आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से कबीर के दोहे हिंदी पीडीएफ kabir ke dohe hindi pdf के बारे में बताने वाले हैं वैसे क्या आप जानते हैं.

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 कि कबीर दास के दोहे बहुत ही प्रसिद्ध है और इसके पीछे बहुत ही गहराई वाली बातें झूठी होती हैं अगर आप भी कबीर के सभी दोहे को पढ़ना चाहते हैं तो आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से kabir ke dohe hindi pdf कबीर दास के संपूर्ण दोहे बताएंगे इसके अलावा कबीरदास कौन थे और इनकी संपूर्ण जानकारी आपको इस लेख में देंगे.

अगर आप कबीरदास के बारे में जानना चाहते हैं और उनके दोहे पढ़ना चाहते हैं तो उसके लिए आपको हमारे लेख को अंत तक पढ़ना होगा तभी आप लोगों को इनके संपूर्ण दोहे और उनके जीवन के बारे में कुछ विशेष बातें जानने को मिलेंगी तो आइए जानते हैं कि कबीर दास की वह कौन से दोहे हैं जो बहुत ही प्रसिद्ध हैं।

PDF Nameकबीर के दोहे इन हिंदी पीडीएफ | Kabir Ke Dohe in Hindi PDF
पुस्तक के लेखककबीर दास
LanguageHindi
PDF CategoryGeneral
 FormatPdf
PDF Size0.27Mb

कबीर दास कौन थे ? | Kabir das kaun the ?

कबीर दास जी का जन्म 1440 ईस्वी में हुआ था कबीर एक बहुत बड़े आध्यात्मिक व्यक्ति थे जो कि एक साधु का जीवन व्यतीत करते थे कबीरदास के प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण उन्हें पूरी दुनिया की प्रसिद्धि हासिल हुई थी कबीर दास की मृत्यु 1518 बी में हुई थी।

पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय। 
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।

आज हम आप लोगों को एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने वाले हैं जिन्हें विराट छाया में खड़े जिनके नाम का अर्थ महान कहां जाता है वह पेशे से बुनकर थे यह एक कपड़ा बुनने का काम करते थे लेकिन उन्होंने अपने समाज के लिए ऐसी बातें बुनकर या कहकर चले गए कि  आज भी उनके बगैर भारत की कहानी अधूरी पड़ी हुई है।

आज के 600 साल पहले हुए उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि अगर आज वह होते तो ना जाने कितने मुकदमे उन पर हो गए होते उनका नाम कबीरदास है तो चलिए अब हम अपने अंदर कबीर को ढूंढते हैं कबीर में खुद को ढूंढते हैं।

हिंदू , मुसलमान, ब्राह्मण, धनी , निर्धन सबका वही एक प्रभु है इन सभी धर्मों की बनावट में एक जैसी हवा है खून पानी का प्रयोग हुआ है भूख ,प्यास ,सर्दी ,गर्मी ,नींद सभी की जरूरत एक जैसी है यह सभी सूरज प्रकाश और गर्मी देते हैं।

कबीर kabir

हवा सबके लिए आवश्यक होती है क्योंकि सभी एक ही आसमान के नीचे रहते हैं जब सभी व्यक्तियों को बनाने वाला ईश्वर एक ही है किसी के साथ भेदभाव नहीं करता है तो फिर मनुष्य के बीच ऊंच-नीच धनी – निर्धन छुआछूत आदि जैसे भेदभाव क्यों करते हैं।

ऐसे ही प्रश्न कबीरदास के मन में उठते रहते थे जिनके आधार पर उन्होंने मानव मात्र को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी थी और कबीर दास जी ने अपने उपदेशों के द्वारा समाज में फैली बुराई का विरोध किया था और उन्होंने एक आदर्श समाज की स्थापना भी की थी।

कबीर एक ज्ञानमार्गी शाखा के महान संत थे इनको एक समाज सुधारक और कवि के नाम से जाना जाता था और कबीर दास जी को संत संप्रदाय का प्रवर्तक भी माना जाता था।

कबीरदास के माता-पिता का क्या नाम है ? | Kabir das ke mata pita ka kya naam hai ?

कबीर दास जी के माता पिता का असली नाम अज्ञात है लेकिन कबीर दास को नीरू और नीमा ने वाराणसी में एक तालाब के किनारे पड़ा पाया था।

कबीर के दोहे इन हिंदी पीडीएफ | Kabir Ke Dohe in Hindi PDF

आज हम आप लोगों को इस लेख में Kabir Ke Dohe in Hindi PDF देने वाले हैं कम से कम 100 दोहे मिलेंगे कबीर के यह सभी दोहे आपको जीवन की सच्चाई जानने में बहुत ही मदद करेंगे साथ ही इनको पढ़ने के बाद आप अपने जीवन और समाज के बारे में बहुत कुछ जान पाएंगे और कुछ सीख पाएंगे इसीलिए आपको इस नोट को डाउनलोड करके कबीर के यह दोहे अवश्य पढ़ने चाहिए।

कबीर के दोहे इन हिंदी पीडीएफ | Kabir Ke Dohe in Hindi PDFDownload PDF link 

कबीर किस प्रकार के संत थे ? | Kabir kis prakar ke sant the ?

क्या आप जानते हैं कि संत कबीर किस प्रकार के कवि थे संत कबीर को 15 वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत के रूप में माना जाता है इन्होंने हिंदू धर्म और इस्लाम को ना मानते हुए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और मानव सेवा के प्रति पूरा योगदान दिया था संत कबीर ने समाज में फैली बुराई और कुरीतियों कर्मकांड आत्मविश्वास और समाज की सभी बुराइयों को हटाने में अपनी पूरी मेहनत लगा दी थी।

कबीर के दोहे इन हिंदी पीडीएफ | Kabir ke dohe hindi pdf

कबीर kabir

गुरु के विषय में दोहे 

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
भावार्थ: कबीर दास जी ने कहा कि अगर आपके सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हो तो आप सबसे पहले किसके चरण स्पर्श करेंगे। उसके बाद गुरु ने अपने ज्ञान से ही भगवान से मिलने का रास्ता बताया था इसीलिए भगवान से ऊपर गुरु की महिमा होती है तो सबसे पहले हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, दुख कहे को होय ।।
भावार्थ : कबीर दास जी ने इस दोहे में कहा कि दुख में तो परमात्मा को भी याद किया जाता है लेकिन सुख में कोई याद नहीं करता अगर कोई व्यक्ति सुख में परमात्मा को याद करें तो फिर दुख ही क्यों आएगा।

तिनका कबहूँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय ।
कबहूँ उड़ आँखों मे पड़े, पीर घनेरी होय ।।
भावार्थ : कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि तिनके को भी छोटा नहीं समझना चाहिए फिर चाहे आपके पांव भले ही क्यों ना हो यदि उड़ कर आपकी आंखों में पड़ जाए तो बहुत तकलीफ होती है।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ।।
भावार्थ : कबीर दास जी ने इस दोहे में कहा कि माला फेरते फेरते युग बीत गए और अब भी मन का कपट दूर नहीं हुआ है और हे मनुष्य हाथ का मनका छोड़ दे और तू अपने मन रूपी मनके को फिर यानी कि मन का सुधार कर।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ॥
भावार्थ : कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि हे मन तू धीरे धीरे सब कुछ हो जाएगा माला सैकड़ों घड़े पानी पेड़ में देता है लेकिन फल तो तभी लगता है जब ऋतु आती है अर्थात अगर आप धायरी रखेंगे और सही समय आने पर ही काम पूरे होते हैं।

कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
भावार्थ : कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि वह मनुष्य नर आधे हैं जो गुरु को भगवान से छोटा मानते हैं क्योंकि जब आपका ईश्वर रूठ जाता है तो एक गुरु का सहारा होता है। लेकिन जब आपका गुरु रूठ जाता है तो उसके बाद कोई भी ठिकाना नहीं रहता है।

पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिनु, मुक्ति कैसे होय ॥
भावार्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि प्रतिदिन के आठ पहर होते हैं उसमें से पांच पहर तो काम धंधे में लग जाते हैं बाकी के तीन पहर में से तूने एक भी पहर हरि भजन के लिए नहीं रखा तो तुझे मोक्ष कैसे प्राप्त होगा।

गुरु सों ज्ञान जु लीजिये सीस दीजिए दान ।

बहुतक भोदूँ बहि गये, राखि जीव अभिमान ॥ 
गुरु को कीजै दण्डव कोटि-कोटि परनाम ।

कीट न जाने भृगं को, गुरु करले आप समान ॥
कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय ।

जनम जनम का मोरचा, पल में डारे धोय ॥
गुरु पारस को अन्तरो, जानत है सब सन्त ।

वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महन्त ॥

गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय ।

कहैं कबीर सो सन्त हैं, आवागमन नशाय ॥
जो गुरु बसै बनारसी, सीष समुन्दर तीर ।

एक पलक बिसरे नहीं, जो गुण होय शरीर ॥
गुरु समान दाता नहीं. याचक सीष समान ।

तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान ॥
गुरु कुम्हार सिष कुंभ है. गढ़ि-गढ़ि काढै खोट ।

अन्तर हाथ सहार दै. बाहर बाह्रै चोट ॥

शिष्य पुजै आपना, गुरु पूजै सब साध ।

कहैं कबीर गुरु शीष को, मत है अगम अगाध ॥
हिरदे ज्ञान न उपजै, मन परतीत न होय ।

ताके सद्गुरु कहा करें, घनघसि कुल्हरन होय ॥
ऐसा कोई न मिला, जासू कहूँ निसंक ।

जासो हिरदा की कहूँ, सो फिर मारे डंक ॥
शिष किरपिन गुरु स्वारथी, किले योग

यह आय कीच-कीच के दाग को, कैसे सके छुड़ाय ॥

स्वामी सेवक होय के, मनही में मिलि जाय ।

चतुराई रीझै नहीं. रहिये मन के माय ।।

गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि ।

बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि ॥
सत को खोजत मैं फिरूँ, सतिया न मिलै न कोय ।

जब सत को सतिया मिले, विष तजि अमृत होय ॥
देश-देशान्तर मैं फिरूँ, मानुष बड़ा सुकाल जा देखै सुख उपजै, वाका पड़ा दुकाल

देह धरे का गुन यही, देह देह कछु देह ।

बहुरि न देही पाइये, अकी देह सुदेह ॥
सह ही में सत बाटई, रोटी में ते टूक ।

कहैं कबीर ता दास को, कबहुँ न आवे चूक ॥
कहते तो कहि जान दे, गुरु की सीख तु लेय।

साकट जन औ श्वान को, फेरि जवाब न देय ॥
हस्ती चढ़िये ज्ञान की, सहज दुलीचा डार ।

श्वान रूप संसार है, भूकन दे झक मार ।।
या दुनिया दो रोज की, मत कर या सो हेत ।

गुरु चरनन चित लाइये, जो पूरन सुख हेत ॥
कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर ।

खाली हाथों वह गये, जिनके लाख करोर ।।
सरगुन की सेवा करो, निरगुन का करो ज्ञान ।

निरगुन सरगुन के परे, तहीं हमारा ध्यान ॥
घन गरजै, दामिनि दमकै, बूँदें बरसें, झर लाग गए।

हर तलाब में कमल खिले, तहाँ भानु परगट भये ॥
क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा।

जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा ॥

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय। 
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥ 

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर । 
कर का मन का डा‍रि दे, मन का मनका फेर॥ 

गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय। 
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय॥ 

साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय। 
मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥ 

कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और। 
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥ 

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। 
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥ 

उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनाई।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाई॥

तिनका कबहूँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय ।
कबहूँ उड़ आँखों मे पड़े, पीर घनेरी होय ।।

निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें ।

बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।

देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ।
जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप ।

जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ।
जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान ।

जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ।
ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।

प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।
तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।

सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।
प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए ।

राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ।
जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही ।

ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ।
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।

सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय।
जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश ।

जो है जा को भावना सो ताहि के पास ।
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय ।

जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ।

मन पंछी तब लग उड़ै, विषय वासना माहिं |
ज्ञान बाज के झपट में, तब लगि आवै नाहिं ||

मनवा तो फूला फिरै, कहै जो करूँ धरम |
कोटि करम सिर पै चढ़े, चेति न देखे मरम ||

मन की घाली हुँ गयी, मन की घालि जोऊँ ।
सँग जो परी कुसंग के, हटै हाट बिकाऊँ ।।

जाति न पूछो साधु की, पूंछ लिजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।

पोथी पढि पढि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़ें सो पंडित होय।

धीरे धीरे रे मन मना, धीरे सब कुछ होय।

माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आएं फल होय
जाति न पूछो साधु की, पूंछ लिजिए ज्ञान।

मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
बोलीं एक अमोल है,जो कोई बोलैं जान।

हिये तराजू तौल के,तब मुख बाहर आन।
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय।

बिन पानी साबुन बिना निर्मल देह सुभाय।
जब गुण को ग्राहक मिले,तब गुण लाख बिचाय।

जब गुण को ग्राहक नहीं,तब कौड़ी बदले जाय।
हाड़ जले ज्यों लकडी, केस जले ज्यों घास।

सब तन जलता देख कर,भया कबिरा उदास।
कबिर तन पंछी भया, जहां मन तहा उड़ जाय।

जो जैसी संगति करै सो तैसा ही फल पाय।
माया मरी न मन मरा,मरि मरि गया शरीर।

आशा तृष्णा न मरी, यो कह गए संत कबीर।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।

जो दिल खोजा आपने, मुझसे बुरा न कोय।

झूठे को झूठा मिले,दूना बढ़े स्नेह।
झूठे को सांचा मिलें,तो ही दूर नेह

FAQ : kabir ke dohe hindi pdf

कबीर ने कितने दोहे लिखे?

हम आप लोगों को बता दें कि कबीर दास जी ने बहुत से दोहे लिखे हैं जिनकी संख्या निश्चित नहीं है ।

संत कबीर भगवान है या नहीं?

वैसे सभी लोग जानना चाहते हैं कि कबीर दास भगवान है या नहीं तो हम आप लोगों को बता दें कि कबीरदास जी स्वयं भगवान नहीं अपितु वे जिस निराकार की भक्ति करते थे वह भगवान है।

कबीर संत के क्या लक्षण बताए हैं?

अगर आप लोग कबीर दास जी के सच्चे साधु के लक्षण जानना चाहते हैं तो हम आप लोगों को बता दें कि वास्तव में कबीर दास जी एक साधु है क्योंकि कबीरदास जी कुटिया या आश्रम के नाम पर ना तो महल खड़ा करते हैं और ना ही धनिया संपत्ति का संग्रह करते हैं क्योंकि इस दुनिया में एक सच्चा साधु कुत्रा भोजन लेता है जितने में उस साधु की भूख मिट पाए साधु भगवान पर अटूट विश्वास रखता हूं।

निष्कर्ष

दोस्तों जैसा कि आज हमने आप लोगों को इस लेख के माध्यम से kabir ke dohe hindi pdf के बारे में बताया इसके अलावा कबीरदास कौन थे और उनके माता-पिता कौन थे इसके बारे में भी जानकारी दी है अगर आपने हमारे इस लेख को अच्छे से पढ़ा है.

तो आपको कबीर दास जी के दोहे का पीडीएफ और उनके कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण दोहे हमने आपको दे दिया है उम्मीद करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित हुई होगी।

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