संपूर्ण संतान सप्तमी व्रत कथा एवं महत्व व्रत-नियम और संपूर्ण पूजा विधि | santan saptami vrat katha

संतान सप्तमी व्रत कथा | santan saptami vrat katha : हेलो दोस्तों नमस्कार स्वागत है आपका हमारे आज के इस नए लेख में आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से santan saptami vrat katha के बारे में बताने वाले हैं शायद ही आप लोगों ने इस व्रत के बारे में सुना होगा अगर नहीं सुना है तो आज आपको इस लेख को पढ़ने के बाद इस व्रत के बारे में भी जानकारी मिल जाएगी.

संतान सप्तमी व्रत 3 सितंबर दिन शुक्रवार को किया जाता है संतान सप्तमी व्रत हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रखा जाता है यह व्रत माता पिता अपनी संतान के लिए करते हैं। वैसे तो आप सभी लोग जानते होंगे कि माता-पिता अपने बच्चों को कितना प्यार करते हैं और उनकी प्रवाह करते हैं उसी प्रकार सभी माता-पिता अपने बच्चों के कुशल जीवन के लिए संतान सप्तमी का व्रत रखते हैं और विधि विधान पूर्वक इस व्रत को करते हैं.

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संतान सप्तमी का व्रत संतान के सुख के लिए और उसके स्वस्थ जीवन के लिए रखा जाता है यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित किया गया है व्रत के दौरान माता पार्वती और शिव से अपने बच्चों की रक्षा खुशहाली एवं उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की जाती है अगर आप में से कोई भी व्यक्ति अपनी संतान के सुखी जीवन के लिए इस व्रत को करना चाहता है.

तो वह इस लेख को अवश्य पढ़ें ताकि आप संतान सप्तमी का व्रत विधि-विधान पूर्वक कर सकें क्योंकि आज हम आपको इस लेख के माध्यम से santan saptami vrat katha , के बारे में बताने वाले हैं इसके अलावा संतान सप्तमी का व्रत कैसे किया जाता है इसके बारे में भी जानकारी देंगे और इस व्रत को करने से कौन से लाभ मिलते हैं.

उसके बारे में भी जानकारी मिलेगी अगर आप संतान सप्तमी व्रत के बारे में संपूर्ण जानकारी चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें ताकि आप लोगों को इस लेख के माध्यम से संतान सप्तमी व्रत के बारे में जानकारी प्राप्त हो सके।

संतान सप्तमी व्रत क्या है ? | Santan saptami vrat kya hai ?

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा गया है कि संतान सप्तमी व्रत अब आप अपने बच्चों के सही जीवन एवं खुशहाली के लिए करते हैं संतान सप्तमी का व्रत भाद्रपद मास के सप्तमी तिथि को शुक्ल पक्ष में चंद्रमा ग्रह के समय किया जाता है संतान सप्तमी व्रत में सभी माता पिता अपने पुत्र की जीवन कामना को लेकर भगवान शिव और पार्वती माता की पूजा करते हैं और अपने बच्चों के लिए शिव और पार्वती से आशीर्वाद मांगते हैं इसीलिए संतान सप्तमी का व्रत किया जाता है।

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जो भी माता पिता अपने पुत्र की सलामती के लिए क्या व्रत रखते हैं उन्हें इस व्रत की संपूर्ण विधि अवश्य पता होनी चाहिए और इस व्रत में भगवान शिव और पार्वती के लिए कौन सी कथा की जाती है इसके बारे में भी जानकारी अवश्य होनी चाहिए तो चलिए आज हम आप लोगों को इस लेख में संतान सप्तमी व्रत कथा एवं पूजा विधि के बारे में संपूर्ण जानकारी देते है।

संतान सप्तमी का महत्व | Santan Saptami Mahatv

संतान सप्तमी का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है संतान सप्तमी का व्रत हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण है हालांकि व्रत हर एक धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह अपने संतान की सलामती के लिए रखा जाता है लेकिन हमारे हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा गया है कि इस व्रत को भगवान शिव एवं पार्वती की पूजा के साथ किया जाता है और उसमें यह भी कहा जाता है कि जिन महिलाओं की संतान नहीं होती है.

उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए वह महिलाएं इस व्रत को करेंगी तो उन्हें शिव और पार्वती का आशीर्वाद मिलेगा जिसके द्वारा उन्हें संतान सुख का वरदान भी प्राप्त होगा। वैसे तो आप में से कुछ व्यक्ति भगवान शिव और पार्वती के परिवार के बारे में जानते ही होंगे शिव पार्वती के 2 पुत्र हैं जिन्हें कार्तिकेय और गणेश जी के नाम से जाना जाता है माता पार्वती की यह दोनों संतान बहुत ही तेजस्वी है.

वैसे तो आप लोगों ने गणेश भगवान के बारे में सुना होगा क्योंकि इन्हें सभी देवताओं से पहले पूजनीय माना गया है ऐसा कहा जाता है कि किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले गणेश भगवान की पूजा की जाती है। कहा गया है कि संतान सप्तमी का व्रत करने से महिलाओं को संतान की प्राप्ति भी होती है और इसके अलावा उन्हें संतान की लंबी आयु का वरदान भी मिलता है।

संतान सप्तमी व्रत के लिए नियम | Santan Saptami Vrat ke liye Niyam

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  1. संतान सप्तमी का व्रत सभी माता पिता अपने पुत्र की कामना के लिए करते हैं लेकिन इस व्रत को करने के कुछ ऐसे नियम बताए गए हैं जिनका पालन करना हर एक माता-पिता के लिए आवश्यक है।
  2. संतान सप्तमी का व्रत दोपहर के समय तक ही किया जाता है।
  3. डांस सप्तमी के व्रत में शिव पार्वती की मूर्ति को चौकी पर रखकर उनकी पूजा करनी होती है।
  4. पूजा में नारियल सुपारी धूप दीप आदि चीजों की आवश्यकता होती है।
  5. संतान सप्तमी का व्रत संतान की लंबी आयु एवं उनकी रक्षा के लिए किया जाता है इसीलिए भगवान शिव से प्रार्थना करते समय कलावा अवश्य लपेटना चाहिए।
  6. व्रत का समापन होने के बाद कलावे को संतान की कलाई पर अवश्य लपेटना चाहिए।

संतान सप्तमी पूजन सामग्री | Santan Saptami Puja samagri

संतान सप्तमी पूजा को करने के लिए इन चीजों की आवश्यकता होती है पूजा में यह सारी सामग्री होना आवश्यक है।

  1. शिव और पार्वती की प्रतिमा
  2. लकड़ी की चौकी
  3. अक्षत
  4. रोली
  5. मौली
  6. केले का पत्ता
  7. फल
  8. फूल
  9. आम के पत्ते
  10. कलश
  11. भोग के लिए सात प्रकार के पकवान
  12. मीठी पूड़ी
  13. दूध
  14. दही
  15. कपूर
  16. नारियल
  17. गंगाजल
  18. लाल कपड़ा
  19. लौंग
  20. सुपारी
  21. सुहाग का सामान
  22. चांदी का कड़ा या रेशम का धागा

संतान सप्तमी पूजन विधि | Santan Saptami Puja Vidhi

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  1. सप्तमी का व्रत करने के लिए आपको भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को करना चाहिए।
  2. इस व्रत को करने के लिए सतमी वाले दिन स्नानादि से निवृत्त होने के पश्चात माता पार्वती और शिव के सामने संकल्प लेना है।
  3. तो इस व्रत को करने के लिए सबसे पहले आपको शिव और पार्वती की तस्वीर स्थापित करने के लिए एक चौकी सजाना है उसके पश्चात उस चौकी पर शिव और पार्वती की मूर्ति को स्थापित करना है।
  4. उसके बाद नारियल का पत्ता लेना है और उस नारियल के पत्ते पर कलश स्थापना करनी है।
  5. संतान सप्तमी का यह व्रत निर्जला रखा जाता है और व्रत वाले दिन बहुत ही शुद्धता के साथ इस पूजा को किया जाता है।
  6. इस व्रत को करने के लिए आपको दोपहर का समय दिया जाता है दोपहर में इस व्रत की पूजा करनी है।
  7. इस पूजा करने के लिए सबसे पहले पूजा की सामग्री को एकत्रित करना है सामग्री के लिए इन चीजों की आवश्यकता होगी जैसे कि हल्दी, कुमकुम, चावल, कपूर, फूल, कलावा आदि चीजों को एकत्रित करें।
  8. उसके बाद पूजा के लिए शिव और पार्वती के समक्ष बैठ जाएं सबसे पहले भगवान शिव और पार्वती को स्नान कराएं।
  9. उसके पश्चात धूप – दीप जलाकर उनकी आरती करें।
  10. उसके बाद केले के पत्ते पर सात मीठी पुड़िया पूजा के स्थान पर रखें।
  11. संपूर्ण पूजा करने के पश्चात संतान की रक्षा के लिए और उत्पत्ति के लिए भगवान शिव और पार्वती के समक्ष प्रार्थना करें और कलावा को उनके सामने अर्पित करें।
  12. हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा गया है कि संतान सप्तमी के व्रत पूजन में सूती डोर या फिर चांदी की चूड़ी संतान को अवश्य पहनाने चाहिए।
  13. उसके पश्चात भगवान शिव के सामने धूप – दीप आदि जलाकर संतान सप्तमी की कथा को शुरू करें।
  14. वैसे तो हमने आपको संतान सप्तमी की कथा लिखित में इस लेख में दी है इसके अलावा हमने आपको संतान सप्तमी कथा की वीडियो भी दे दी है तो आप उस वीडियो को भी देख सकते हैं।
  15. कथा समाप्त होने के पश्चात भगवान को भोग लगाएं और व्रत को खोल दें।

संतान सप्तमी व्रत कथा | Santan saptami vrat katha

संतान सप्तमी व्रत पुत्र के सुख के लिए किया जाता है यह व्रत माता पिता अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए करते हैं इस व्रत के पीछे एक कहानी बहुत ही प्रचलित है कहा गया है कि भगवान श्री कृष्ण ने एक बार पांडव पुत्र युधिष्ठिर को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के महत्व को बताते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था कि इस दिन का व्रत करने से सूर्य देव एवं नारायण की पूजा करने पर पुत्र की प्राप्ति भी होती है.

भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसा बताया था कि माता देवकी के पुत्र को कंस से जन्म लेते ही मार देता था तभी लोमश ऋषि मैं माता देवकी को संतान सप्तमी व्रत के बारे में सलाह दी थी और फिर उन्हीं के कहने पर माता देवकी ने इस व्रत को किया था माता देवकी ने इस व्रत के सभी नियमों का पालन करते हो इस व्रत को संपूर्ण किया है तभी देवकी ने एक पुत्र को जन्म दिया था और कंस के अत्याचार से धरती पूरी तरह से मुक्त हो गई थी.

ऐसा कहा जाता है कि संतान सप्तमी का व्रत राजा ने उसकी पत्नी ने भी किया था इसके पीछे एक कथा बहुत ही प्रचलित है कहा जाता है कि एक समय की बात है अयोध्या नामक गांव में सबसे बड़े राजा प्रतापी नहुष नमक राजा राज करते थे राजा नहुष की पत्नी चंद्रमुखी थे.

उसकी पत्नी चंद्रमुखी की एक बहुत ही प्रिय सहेली थी जिसका नाम रूप मति था एक बार राजा नहुष की पत्नी चंद्रमुखी अपनी सहेली के साथ सरयू तट पर स्नान करने के लिए गई थी उसी सरयू नदी पर उन्होंने बहुत ही महिलाओं को संतान सप्तमी व्रत का पूजन करते हुए देखा था.

तभी चंद्रमुखी अपनी सहेली के साथ बैठकर वहां पर संतान सप्तमी का व्रत पूजन देखने लगी थी और चंद्रमुखी को भी संतान नहीं थी इसकी वजह से उन्होंने तभी निश्चय किया कि संतान प्राप्ति के लिए मैं भी यह व्रत करूंगी लेकिन कुछ समय बीतने के बाद राजा नहुष की पत्नी चंद्रमुखी इस व्रत को करना भूल गई उसी प्रकार समय का चक्र चलता रहा कुछ समय बाद उनकी सहेली का देहांत हो गया.

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राजा नहुष की पत्नी चंद्रमुखी की सहेली ने पुनर्जन्म में पशु योनि का जन्म लिया था लेकिन रूपमती ने कुछ अच्छे कर्म किए थे जिसकी वजह से उन्हें मनुष्य शरीर प्राप्त हुआ.

तब तक चंद्रमुखी को ईश्वरी नामक राजकन्या हुई थी चंद्रमुखी की सहेली ने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया था लेकिन रूपमती को अपना पुनर्जन्म पूरी तरह से याद था इसीलिए उसने संतान सप्तमी का व्रत किया जिससे उसे 8 संतान की प्राप्ति हुई.

राजा नहुष की बीवी ने संतान सप्तमी का व्रत का संकल्प तो लिया था लेकिन इस व्रत को किया नहीं था जिसकी वजह से उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई थी जिससे वह इस जन्म में भी निसंतान थी जैसे ही चंद्रमुखी ने अपनी सहेली रूपमती के आज बंदरों को देखा तो उन्हें जलन होने लगी थी और उन्हें कई बार मारने का प्रयास भी किया था लेकिन चंद्रमुखी असफल रही बाद में उसने अपनी गलती मान ली थी और रूपमती से क्षमा भी प्राप्त की थी.

रूपमती का स्वभाव बहुत ही अच्छा था जिसके कारण उन्होंने अपनी सहेली चंद्रमुखी को क्षमा कर दिया था और फिर से उन्हें संतान सप्तमी का व्रत याद दिलाया कि आप जब सरयू तट पर स्नान करने के लिए गई थी तो आप वहां पर संतान सप्तमी का व्रत देखा था और आपने इस बात का संकल्प लिया था कि मैं भी इस ग्रुप को करूंगी लेकिन आप इस वक्त को भूल गई और आपने यह व्रत नहीं किया था मैंने इस व्रत को किया है तभी मुझे 8 पुत्र प्राप्त हुए हैं.

यह व्रत हर एक महिला के लिए बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इस व्रत के द्वारा अपने संतान की रक्षा की जाती है और जिस भी महिला को संतान नहीं होती है तो वह महिला इशरत के द्वारा संतान की प्राप्ति बहुत ही आसानी से कर सकती है.

FAQ : santan saptami vrat katha

संतान सप्तमी की पूजा में क्या क्या लगता है ?

संतान सप्तमी की पूजा में विभिन्न प्रकार की सामग्री की आवश्यकता होती है जैसे की माता पार्वती एवं शिव की मूर्ति और नारियल के पत्ते कलश एवं पूजा की थाल में संपूर्ण सामग्री। और उसके साथ संतान की रक्षा एवं उत्पत्ति की प्रार्थना के लिए भगवान शिव को कलावा अवश्य अर्पित करें।

संतान सप्तमी की पूजा कितने बजे करनी चाहिए ?

संतान सप्तमी की पूजा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा गया है कि इस पूजा को सुबह 7:00 बजे से लेकर सुबह 9:00 बजे तक की जा सकती है इसके अलावा दोपहर में भी इसकी पूजा की जाती है लेकिन शाम के समय आप इस पूजा को नहीं कर सकते।

संतान सप्तमी का व्रत कब खुलता है ?

अपने से कोई भी व्यक्ति यह जानना चाहता है कि संतान सप्तमी का व्रत कब खोलना चाहिए तो हम आपको बता दें कि इस व्रत को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन किया जाता है इस व्रत को उसी दिन दोपहर के समय खोल दिया जाता है।

निष्कर्ष

दोस्तों जैसा कि आज हमने आप लोगों को इस लेख के माध्यम से santan saptami vrat katha के बारे में बताया है सप्तमी की व्रत कथा बहुत ही सरल है अगर आप इस कथा को अच्छी तरह से पढ़ते हैं या फिर सही तरीके से करते हैं तो आप इस पूजा को अवश्य सफल कर ले जाएंगे और अपने पुत्र को हर प्रकार की खुशियां दे सकेंगे.

अगर आपने हमारे इस लेख को अच्छे से पढ़ा है तो आपको संतान सप्तमी व्रत कथा पूजा विधि एवं पूजा का महत्व क्या है इन सभी विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी मिल गई होगी उम्मीद करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित हुई होगी।

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