Satyanarayan bhagwan ki katha pdf download : हेलो दोस्तों नमस्कार आज हम आप लोगों को Satyanarayan bhagwan ki katha बारे में बताएंगे श्री सत्यनारायण भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए पूर्णिमा के दिन श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है और इन्हें सत्य का अवतार कहा जाता है.
पूर्णिमा के दिन श्री सत्यनारायण पूजा व कथा के दौरान श्री नारायण व श्री विष्णु की विशेष पूजा की जाती है इस पूजा के दिन श्रद्धालु लोग इस पूजा का उपवास करते हैं सांय काल की पूजा ज्यादा शुभ मानी जाती है पूजा के बाद श्रद्धालु लोग पूजा के बाद प्रसाद वितरण कर उपवास पूर्ण करते हैं।
कई बार ऐसा होता है कि पूर्णिमा तिथि सुबह के समय में ही समाप्त हो जाती है इसीलिए satyanarayan bhagwan ki katha और पूजा के दिन से सांय काल में करनी चाहिए.
तो चलिए आज हम आप लोगों को सत्यनारायण भगवान की कथा और उनकी आरती और उनकी पूजा विधि के बारे में बताएंगे इसे आप लोगों को भी पता चल सके कि सतनारायण भगवान की पूजा विधि क्या है और उनकी कथा कौन सी है।
- 1. सत्यनारायण भगवान की पूजा विधि
- 2. सत्यनारायण भगवान की पूजा
- 2.1. मंत्र
- 2.2. आसन
- 2.3. ग्रंथि बंधन
- 2.4. आचमन
- 3. सत्यनारायण भगवान की कथा पीडीऍफ़ डाउनलोड | Satyanarayan bhagwan ki katha pdf download
- 4. सत्यनारायण भगवान की कथा | Satyanarayan bhagwan ki katha
- 4.1. 1. प्रथम अध्याय
- 4.2. 2. दूसरा अध्याय
- 4.3. 3. तीसरा अध्याय
- 4.4. 4. चौथा अध्याय
- 4.5. 5. पांचवा अध्याय
- 5. श्री सत्यनारायणजी की आरती
- 6. FAQ: Satyanarayan bhagwan ki katha
- 6.1. लीलावती किसकी बेटी थी?
- 6.2. सत्यनारायण कथा का अर्थ क्या है?
- 6.3. लीलावती के पति का नाम क्या था ?
- 7. निष्कर्ष
सत्यनारायण भगवान की पूजा विधि
- सत्यनारायण भगवान की पूजा करने के लिए सबसे पहले पूजा के स्थान को और पूजा सामग्री को गंगाजल से शुद्ध कर ले।
- उसके बाद जिस जगह पर सत्यनारायण भगवान को स्थापित करेंगे उसी जगह पर अमीर कुमकुम हल्दी से रंगोली बनाएं।
- उसके बाद चौकी को स्थापित कर दें और चौकी के ऊपर पीला वस्त्र बिछा दें। उसके बाद चौकी के चारों कोनों पर केले के पत्ते देख खंभे बांध ले। और मौली से उसका मंडप तैयार कर ले।
- उसके बाद सत्यनारायण भगवान की मूर्ति को या फोटो को उसी चौकी पर स्थापित कर दें।
- मूर्ति के सामने चावल से चौकी पर स्वास्तिक बनाएं उसके बाद कलश ले सबसे पहले उस कलर्स पर मौली बांध दें उसमें जल भरकर रख दे। और उसमें गंगाजल , सुपारी , सिक्का , हल्दी , कुमकुम यह सारी चीजें डाल दें अब उसके बाद आम के पत्ते रखकर नारियल पर मौली बांध ले और उस नारियल को उस कलश के ऊपर रख दें।
- मूर्ति या तस्वीर के दाहिनी तरफ एक दीपक घी से भरा रख दें और उस दीपक को अभी नहीं जलाना है।
सत्यनारायण भगवान की पूजा
- सत्यनारायण भगवान की पूजा करने से पहले अपने आप को गंगाजल से शुद्ध कर ले ।
- उसके बाद सबसे पहले आसन को ग्रहण करें उसके बाद आचमन लें पहले बाएं हाथ से जल ले फिर उस जल को दाहिने हाथ में डालें और फिर अपने दोनों हाथों को शुद्ध करें। फिर अपने दाएं हाथ में जल ले और तीन बार ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः कहकर जल को पिये और फिर अपने परिवार वालों को भी जल पिलाएं
- उसके बाद रखे हुए घी के दीपक को जला दे और अपने माथे पर तिलक लगाएं और अपने परिवार वालों को भी तिलक लगाएं
- उसके बाद हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर संकल्प लें कि मैं शुद्ध कर्म और धर्म से आपकी पूजा करने जा रहा हूं पूजा का फल मुझे मेरी मनोकामना हो से मिले ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः बोलकर अक्षत और पुष्प को सत्यनारायण भगवान को समर्पित कर दें।
- अब तुलसी के पत्ते से श्री सत्यनारायण भगवान के चरणों में चंदा मृत को छोड़ें फिर हल्दी और कुमकुम को श्री सत्यनारायण भगवान के चरणों में छोड़े। छोड़ने के बाद कुमकुम का टीका श्री सत्यनारायण भगवान की मूर्ति पर लगाएं। और जनेऊ को चढ़ाएं।
- उसके बाद श्री सत्यनारायण भगवान को पीले पुष्प वाली माला पहनाई और उसके बाद 108 तुलसी के पत्ते एक-एक करके चढ़ाते हुए बोले ॐ विष्णवे नमः दीजिए आप जितनी भी पत्ती चढ़ाते हैं उतने बार आपको इस मंत्र का जाप करना है फिर उसके बाद इत्र को श्री सत्यनारायण भगवान के चरणों में छोड़ दे।
- अगरबत्ती को जलाकर उससे श्री सत्यनारायण भगवान की आरती उतारे और एक तेल का दीपक जलाकर भगवान की आरती उतारे और उसे नीचे चौकी के पास रख दें।
- अब आपने जो भी प्रसाद बनाया है उसे भगवान को चढ़ा दें प्रसाद में एक तुलसी का पत्ता विशेष रुप से रख दे एक चम्मच पानी लें और प्रसाद के चारों ओर घुमा कर जमीन पर छोड़ दें।
- फिर कुछ फल और दक्षिणा को फोटो के सामने चढ़ा दे।
- अब हाथ में पीले फूल और एक तुलसी की पत्ती लेकर भगवान से प्रार्थना करें कि हम से इस पूजा विधि में कोई गलती हो गई हो तो प्रभु क्षमा करें। और मन ही मन में ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए उस फूल को और तुलसी को भगवान के चरणों में समर्पित कर दें।
- अपने हाथों में तुलसी की पत्ती ले और पूजा में जितने भी लोग शामिल हैं उन सब को तुलसी की पत्ती दें और उसके बाद सत्यनारायण भगवान की कथा पढ़ें
- कथा पढ़ते समय हाथों में तुलसी के पत्ते जरूर होने चाहिए। कथा समाप्त होने के बाद तुलसी के पत्ते को भगवान के सामने समर्पित कर दें।
मंत्र
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥
पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं
आसन
ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम् ॥
ग्रंथि बंधन
ॐ यदाबध्नन दाक्षायणा हिरण्य(गुं)शतानीकाय सुमनस्यमानाः ।
तन्म आ बन्धामि शत शारदायायुष्यंजरदष्टियर्थासम् ॥
आचमन
ॐ केशवाय नमः स्वाहा,
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा,3. माधवाय नमः
स्वाहा
ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।
सत्यनारायण भगवान की कथा पीडीऍफ़ डाउनलोड | Satyanarayan bhagwan ki katha pdf download
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PDF Book Name | सत्यनारायण व्रत कथा | Satyanarayan Vrat Katha PDF |
No. of Pages | 10 |
PDF Size | 7.82 MB |
Language | Hindi |
Category | Religion & Spirituality |
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सत्यनारायण भगवान की कथा | Satyanarayan bhagwan ki katha
अब हम आप को आगे श्री सत्यनारायण भगवान की कथा को सुनायेंगे इसे अंत तक पढ़े :
1. प्रथम अध्याय
आज हम आप लोगों को श्री सत्यनारायण भगवान की संपूर्ण कथा प्रस्तुत कर रही हूं आइए शुरू करते हैं भजमन नारायण नारायण हरि हरि एक समय की बात है नैमिषारण्य तीर्थ में सोनका दी अट्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूत जी से पूछा हे प्रभु इस कलयुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है.
तथा उनका उद्धार कैसे होगा हे मुनि श्रेष्ठ एक ऐसा तप बताइए जिससे थोड़े ही समय में पुण्य मिल सके और मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाए और हम इस प्रकार की कथा सुनने की इच्छा करते हैं सर्व शास्त्रों के ज्ञाता श्री सूत जी बोले हे वैष्णव में पूज्य ऋषियों आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है.
इसलिए मैं आप सभी को एक ऐसे श्रेष्ठ व्रत के बारे में बताऊंगा जिसे नारद जी ने लक्ष्मी नारायण भगवान से पूछा था और लक्ष्मी पति ने मुनि श्री नारद जी से कहा था आप सब इसे ध्यान पूर्वक सुने एक समय देवर्षि नारद दूसरों की हित की इच्छा के लिए अनेकों लोको में घूमते हुए मृत्यु लोक में आ पहुंचे.
यहां उन्होंने अन्य योनियों में जन्मे सभी मनुष्य को अपने कर्मों द्वारा अनेक दुखों से पीड़ित देखा उनका दुख देखकर नारद जी सोचने लगे कि कैसा यत्न किया जाए जिसको करने से मनुष्य के जीवन में निश्चित दुखों का अंत हो जाए किसी विचार पर मनन करते हैं.
वह विष्णु लोक में जा पहुंचे वहां पर देवों के देव भगवान नारद की स्तुति करने लगे जिनके हाथों में शंख चक्र गदा और पदम थे और गले में वैजयंती माला पहने हुए और नारद जी स्तुति करते हुए बोले हे भगवन अत्यंत शक्ति से संपन्न है मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती आपका आदि मध्य तथा अंत नहीं है.
निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुखों को दूर करने वाले हैं आप को मेरा नमस्कार है नारद जी की स्तुति सुनकर भगवान विष्णु बोले हे मुनी श्रेष्ठ आपके मन में क्या बात है आप किस काम के लिए यहां पधारे हैं.
उसे निसंकोच कहिए तब नारद मुनि बोले मृत्यु लोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा अनेकों दुखों से दुखित हैं हे नाथ यदि आप मुझ पर दया रखते हैं कि वह मनुष्य अनेकों दुखों से कैसे छुटकारा पाएं तब श्री हरि भगवान बोले नारद मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है.
इसको करने से मनुष्य मोक्ष से छूट जाता है आज मैं वह बात बताता हूं स्वर्ग लोक और मृत्यु लोक में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है जो आज तुम्हें पुण्य देने वाला है
तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर आज मैं तुम्हें वह व्रत बताता हूं श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत पूरे विधि से करके मनुष्य तुरंत ही सुख भोग कर मृत्यु के समय मोह को प्राप्त करता है.
भगवान श्री हरि के वचन सुनकर श्री नारद जी ने कहा इस व्रत का फल क्या है और इसका विधान क्या है सर्वप्रथम इस व्रत को किसने किया था और यह व्रत कब करना चाहिए हे भगवान मुझे विस्तार से कहें नारद जी की बात सुनकर श्री हरि विष्णु जी बोले दुख तथा सोक को दूर कर के यह सत्यनारायण व्रत अन्य स्थानों पर विजय दिलाने वाला हैं.
मनुष्य को भक्ति और श्रद्धा के साथ शाम के समय श्री सत्यनारायण भगवान का पूजा धर्म परायण होकर ब्राह्मणों तथा बंधुओं के साथ करनी चाहिए भक्ति भाव से ही नैवेद्य केले का फल , दूध और गेहूं का आटा सवाया में गेहूं के अस्थान पर साठी का आटा चीनी तथा गुड़ लेकर पोषण योग्य पदार्थ लेकर भगवान को भोग लगाएं.
ब्राह्मणों सहित बंधु बंधुओं को लेकर भोजन करवाएं उसके बाद स्वयं भोजन करें भजन कीर्तन के साथ भगवान की भक्ति में लीन हो जाए इस तरह से सत्यनारायण भगवान की पूजा करने से मनुष्य की सारी इच्छाएं निश्चित रूप से पूरी हो जाती हैं। इसी तरह से श्री सत्यनारायण भगवान का पहला अध्याय संपूर्ण हुआ।
2. दूसरा अध्याय
अब शुरू करते हैं श्री सत्यनारायण भगवान का दूसरा अध्याय श्री सूत जी कहने लगे फिर हे ऋषियों पहले समय में इस व्रत को जिसने किया था। अब मैं उसका इतिहास कहता हूं ध्यान से सुनो काशीपुरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था भूख प्यास से व्याकुल वह धरती पर घूमता रहता था.
ब्राह्मणों से प्रेम करने वाले भगवान ने एक दिन ब्राह्मण का वेश धारण कर उनके पास जाकर पूछा हे विप्र नित्य दुखी होकर तुम पृथ्वी पर क्यों घूमते हो तब दीन ब्राह्मण ने उत्तर दिया मैं निर्धन हूं भिक्षा के लिए धरती पर घूमता हूं यदि आप कोई ऐसा उपाय जानते हैं.
तो जिससे मेरे दुखों का निवारण हो जाए तू कृपा करके मुझे बताइए तब ब्राह्मण रूप धारी बोले कि सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल प्रदान करने वाले हैं इसलिए तुम उनका पूजन करो सत्यभगवान के पूजन से आप सभी दुखों से मुक्त हो जाएंगे.
ब्राह्मण बनकर आए सत्यनारायण भगवान उस निर्धन ब्राह्मण को व्रत का सारा विधान बताकर अंतर्ध्यान हो गए वह ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा कि जिस व्रत को वृत्त ब्राह्मण करने को कहा गया है.
मैं उसे जरूर करूंगा उसे सोच कर उसे रात भर नींद नहीं आई वह सुबह उठकर सत्यनारायण भगवान का व्रत करने का निश्चय लेकर भिक्षा के लिए चला गया उस दिन निर्धन ब्राह्मण को भिक्षा में बहुत धन मिला जिससे उसने बंधु और बंधुओं के साथ मिलकर.
श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न किया भगवान सत्यनारायण का व्रत करने के बाद वह निर्धन आदि दुखों से छूट गया और अनेक प्रकार की संपत्तियों से खो गया उसी समय से यह ब्राह्मण और मास इस व्रत को करने लगे इस तरह से सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगा.
वह सभी प्रकार के पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा सूत जी बोले श्री नारायण भगवान द्वारा नारद जी को बताए गए श्री सत्यनारायण व्रत को मैंने तुम्हें बताया है हे विप्रो अब मैं तुम्हें क्या बताऊं तब ऋषियों ने कहा हे मुनिवर संसार में उस विप्र से सुनकर और किस-किस ने इस व्रत को किया हम इस बात को सुनना चाहते हैं.
इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा भाव है सूत जी बोले हे मुनियों जिस जिस ने इस व्रत को किया है वह सब सुनो एक समय वही ब्राह्मण अपने बंधु बंधुओं के साथ श्री सत्यनारायण भगवान की व्रत की तैयारी कर रहा था.
उसी समय एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया और लकड़ियां रखकर अंदर ब्राह्मण के घर में गया प्यास से दुखी वह लकड़हारा उन सभी को व्रत करते देख ब्राह्मण को नमस्कार करके पूछने लगा कि आप यह क्या कर रहे हैं.
इसको करने से क्या फल मिलेगा कृपा करके मुझे भी बताएं तब ब्राह्मण ने बताया सब मनोकामना को पूर्ण करने वाला यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है इनकी कृपा से हमारे घर में धन धान की वृद्धि हुई है ब्राह्मण से सत्यनारायण भगवान की महिमा को जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ.
फिर वह चंदा मृत और प्रसाद लेकर अपने घर गया लकड़हारे ने मन ही मन संकल्प लिया कि आज लकड़ी बेचने से जो भी धन मुझे मिलेगा उसी से मैं श्री सत्यनारायण भगवान का उत्तम व्रत करूंगा वह यह विचार ले वह बूढ़ा आदमी सिर पर लकड़िया रख के उस नगर में बेचने गया जहां धनी लोग ज्यादा रहते थे.
इस नगर में उसे अपनी लकड़ियों का दाम ज्यादा मिला वह प्रसन्न होकर केला , शक्कर , घी , दूध, दही, गेहूं का आटा, और सत्यनारायण भगवान के व्रत की सारी सामग्री लेकर अपने घर गया.
वहां उसने अपने बंधु बंधुओं को बुलाकर वहां पर उसने पूरे विधि विधान से सत्यनारायण भगवान का व्रत किया इस व्रत के प्रभाव से वह लकड़हारा धनधान्य पुत्र आदि दुखो से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को चला गया इसी श्री सत्यनारायण भगवान की कथा के द्वारा द्वितीय अध्याय समाप्त हुआ।
3. तीसरा अध्याय
आइए अब शुरू करते हैं श्री सत्यनारायण भगवान का तीसरा अध्याय सूत जी बोले हे श्रेष्ठ मुनियों अब मैं आगे की कथा कहता हूं पुराने समय में उल्का मुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था वह सत्य वक्ता और जितेंद्रिय था वह प्रतिदिन देव स्थानों पर जाता और निर्धनों को धन देकर उनके कष्ट दूर करता था.
उसकी पत्नी कमल के समान मुख वाली सती सति थी अध्य शीला तट की नदी पर उन्होंने श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत किया उसी समय साधु नाम का एक वैश्य आ गया उसके पास व्यापार करने के लिए उसके पास बहुत सा धन भी था.
राजा को व्रत करते देख वह विनय से पूछने लगा हे राजन भक्ति भाव से पूरण होकर आप यह सभी क्या कर रहे हैं कृपा करके मुझे भी बताएं राजा बोला हे साधु मैं अपने बंधु बंधुओं के साथ संतान की प्राप्ति के लिए महा श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत व पूजन करवा रहा हूं.
राजा के वचन सुनकर वह आदर पूर्वक बोला हे राजन मुझे एक व्रत का विधान बताइए आपके कहे अनुसार मैं भी इस व्रत को करूंगा मेरी भी कोई संतान नहीं है और इस व्रत को करने से निश्चित रूप से मुझे संतान की प्राप्ति होगी.
राजा से सारा विधान सुनकर वह अपने व्यापार से निर्मित होकर वह अपने घर गया और घर जाकर उसने अपनी पत्नी को संतान देने वाले इस महान व्रत का वर्णन सुनाया कहा कि जब मेरी संतान होगी तब मैं भी इस व्रत को करूंगा.
साधु ने इस तरह के वचन अपनी पत्नी लीलावती से कहें सत्यनारायण भगवान की कृपा से लीलावती गर्भवती हो गई और दसवें महीने में उसने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया वह कन्या चंद्रमा की कलाओं की तरह दिन-ब-दिन ऐसे बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है.
माता पिता ने अपनी कन्या का नाम कलावती रखा एक दिन लीलावती ने बड़े ही मधुर शब्दों में अपने पति को याद दिलाया कि आपने सत्यनारायण भगवान के जिस व्रत को करने का संकल्प किया था उसे करने का समय आ गया है अब आप इस व्रत को कीजिए साधु बोला हे प्रिय मैं इस व्रत को पुत्री के विवाह पर करूंगा.
इस प्रकार अपनी पत्नी को आश्वासन देकर वह नगर में चला गया अब कलावती विवाह के योग्य हुई तो उसके पिता ने तुरंत ही दूत को बुलाया कहा मेरी कन्या के योग्य वर देख कर आओ साधु की बात सुनकर दूत कंचन नगर में पहुंच गया.
वहां देखभाल कर लड़की के सुयोग्य एक मणीक के पुत्र को ले आया सुयोग्य लड़के को देखकर साधु ने बंधु बंधुओं को बुलाकर अपनी पुत्री का विवाह करवा दिया लेकिन दुर्भाग्य की बात थी कि अभी तक सत्यनारायण भगवान का व्रत नहीं किया था .
तब श्री सत्यनारायण भगवान क्रोधित हो गए और तब उन्होंने श्राप दिया कि साधु को अत्यधिक दुख मिले अपने कार्य में कुशल साधु बनिया अपने दामाद को लेकर समुद्र के पास स्थित रतन सारपुर नगर में गया वहां जाकर दामाद और ससुर दोनों मिलकर चंद्रकेतु राजा के नगर में व्यापार करने लगे 1 दिन भगवान सत्यनारायण की माया से एक चोर राजा का धन चुरा कर भाग रहा था उसने राजा के सिपाहियों को अपना पीछा करते देख चुराया हुआ.
धन वहां रख दिया जहां पर साधु नामक बनिया अपने दामाद के साथ ठहरे हुए थे राजा के सिपाहियों ने साधु के पास उनका धन पड़ा हुआ देखा तो वह ससुर और दामाद दोनों को बांधकर राजा के पास ले गए और कहा हम दोनों चोरों को पकड़ लाए हैं अब आप आगे की कार्यवाही की आज्ञा दें राजा की आज्ञा से उन दोनों को कारावास में डाल दिया गया और उनका सारा धन भी छीन लिया गया श्री सत्यनारायण भगवान के श्राप से उनकी पत्नी और पुत्री बहुत दुखी हुई.
उन्होंने जो धन रखा था उसे चोर चुरा ले गए शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा और भूख प्यास से व्याकुल हो अन्य की चिंता में कलावती एक ब्राह्मण के घर गई और उसने श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत होते देखा और कथा भी सुनी वह प्रसाद ग्रहण कर रात को घर वापस आई लीलावती ने कलावती से पूछा हे पुत्री तुम अब तक कहां थी और तुम्हारे मन में क्या है.
तभी लीलावती ने कलावती से कहा हे माता मैंने एक ब्राह्मण के घर में श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत देखा है कन्या के वचन सुनकर लीलावती को भूली हुई बात याद आ गई और उसने भगवान के पूजन की तैयारी शुरू कर दी लीलावती ने परिवार तथा बंधुओं सहित श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और उन से वरदान मांगा कि मेरे पति और दामाद शीघ्र ही घर वापस आ जाए और साथ ही यह प्रार्थना कि हम सबका अपराध क्षमा करें.
श्री सत्यनारायण भगवान लीलावती के व्रत से संतुष्ट हो गए और राजा चंद्रकेतु को सपने में दर्शन देकर कहा हे राजन तुम उन दोनों वैश्य को छोड़ दो और तुमने जो उनका धन लिया है उसे वापस कर दो अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम्हारा धन राज्य तथा संतान सब कुछ नष्ट हो जाएगा.
सुबह उठकर राजा ने सभा में अपना सपना सुनाया और बोली दोनों बनियों को कैद से मुक्त करके सभा में लेकर आओ सभा में आते ही दोनों ने राजा को प्रणाम किया तब राजा ने मीठी वाणी से कहा हे महानुभावों कितना कठिन दुख तुम्हें प्राप्त हुआ है लेकिन अब तुम्हें कोई भय नहीं है.
राजा ने उन दोनों को नए वस्त्र आभूषण भी पहनाए और जितना धन लिया था उससे दुगना धन वापस कर दिया और वह दोनों अपने घर की ओर चल दिए इसी तरह श्री सत्यनारायण भगवान का तीसरा अध्याय समाप्त हुआ बोलो सत्यनारायण भगवान की जय
4. चौथा अध्याय
तब श्री सूत जी बोले उसने श्री मंगल 4 करके अपनी यात्रा शुरू की और अपने दामाद के साथ घर की ओर चल दिया घर आकर पूर्णिमा और संक्रांति को सत्यव्रत का जीवन पर्यन्त आयोजन करता रहा, फलत: सांसारिक सुख भोगकर उसे मोक्ष प्राप्त हुआ.
साधु के कुछ दूर जाने पर भगवान सत्यनारायण की उसकी सत्यता की परीक्षा के विषय में जिज्ञासा हुई – ‘साधो! तुम्हारी नाव में क्या भरा है?’ तब धन के मद में चूर दोनों महाजनों ने अवहेलनापूर्वक हंसते हुए कहा – ‘दण्डिन! क्यों पूछ रहे हो? क्या कुछ द्रव्य लेने की इच्छा है? हमारी नाव में तो लता और पत्ते आदि भरे हैं।’
ऐसी निष्ठुर वाणी सुनकर – ‘तुम्हारी बात सच हो जाय’ – ऐसा कहकर दण्डी संन्यासी को रूप धारण किये हुए भगवान कुछ दूर जाकर समुद्र के समीप बैठ गये। दण्डी के चले जाने पर नित्यक्रिया करने के पश्चात उतराई हुई अर्थात जल में उपर की ओर उठी हुई नौका को देखकर साधु अत्यन्त आश्चर्य में पड़ गया और नाव में लता और पत्ते आदि देखकर मुर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ा।
सचेत होने पर वणिकपुत्र चिन्तित हो गया। तब उसके दामाद ने इस प्रकार कहा – ‘आप शोक क्यों करते हैं? दण्डी ने शाप दे दिया है, इस स्थिति में वे ही चाहें तो सब कुछ कर सकते हैं, इसमें संशय नहीं। अतः उन्हीं की शरण में हम चलें, वहीं मन की इच्छा पूर्ण होगी।’ दामाद की बात सुनकर वह साधु बनिया उनके पास गया और वहां दण्डी को देखकर उसने भक्तिपूर्वक उन्हें प्रणाम किया तथा आदरपूर्वक कहने लगा – आपके सम्मुख मैंने जो कुछ कहा है,
असत्यभाषण रूप अपराध किया है, आप मेरे उस अपराध को क्षमा करें – ऐसा कहकर बारम्बार प्रणाम करके वह महान शोक से आकुल हो गया। दण्डी ने उसे रोता हुआ देखकर कहा – ‘हे मूर्ख! रोओ मत, मेरी बात सुनो।
मेरी पूजा से उदासीन होने के कारण तथा मेरी आज्ञा से ही तुमने बारम्बार दुख प्राप्त किया है।’ भगवान की ऐसी वाणी सुनकर वह उनकी स्तुति करने लगा। साधु ने कहा – ‘हे प्रभो! यह आश्चर्य की बात है कि आपकी माया से मोहित होने के कारण ब्रह्मा आदि.
देवता भी आपके गुणों और रूपों को यथावत रूप से नहीं जान पाते, फिर मैं मूर्ख आपकी माया से मोहित होने के कारण कैसे जान सकता हूं! आप प्रसन्न हों। मैं अपनी धन-सम्पत्ति के अनुसार आपकी पूजा करूंगा। मैं आपकी शरण में आया हूं। मेरा जो नौका में स्थित पुराा धन था,
उसकी तथा मेरी रक्षा करें।’ उस बनिया की भक्तियुक्त वाणी सुनकर भगवान जनार्दन संतुष्ट हो गये। भगवान हरि उसे अभीष्ट वर प्रदान करके वहीं अन्तर्धान हो गये। उसके बाद वह साधु अपनी नौका में चढ़ा और उसे धन-धान्य से परिपूर्ण देखकर ‘भगवान सत्यदेव की कृपा से हमारा मनोरथ सफल हो गया’ – ऐसा कहकर स्वजनों के साथ उसने भगवान की विधिवत पूजा की।
5. पांचवा अध्याय
श्रीसूत जी बोले – श्रेष्ठ मुनियों! अब इसके बाद मैं दूसरी कथा कहूंगा, आप लोग सुनें। अपनी प्रजा का पालन करने में तत्पर तुंगध्वज नामक एक राजा था। उसने सत्यदेव के प्रसाद का परित्याग करके दुख प्राप्त किया। एक बाद वह वन में जाकर और वहां बहुत से पशुओं को मारकर वटवृक्ष के नीचे आया।
वहां उसने देखा कि गोपगण बन्धु-बान्धवों के साथ संतुष्ट होकर भक्तिपूर्वक भगवान सत्यदेव की पूजा कर रहे हैं। राजा यह देखकर भी अहंकारवश न तो वहां गया और न उसे भगवान सत्यनारायण को प्रणाम ही किया।
पूजन के बाद सभी गोपगण भगवान का प्रसाद राजा के समीप रखकर वहां से लौट आये और इच्छानुसार उन सभी ने भगवान का प्रसाद ग्रहण किया। इधर राजा को प्रसाद का परित्याग करने से बहुत दुख हुआ। उसका सम्पूर्ण धन-धान्य एवं सभी सौ पुत्र नष्ट हो गये।
राजा ने मन में यह निश्चय किया कि अवश्य ही भगवान सत्यनारायण ने हमारा नाश कर दिया है। इसलिए मुझे वहां जाना चाहिए जहां श्री सत्यनारायण का पूजन हो रहा था।
ऐसा मन में निश्चय करके वह राजा गोपगणों के समीप गया और उसने गोपगणों के साथ भक्ति-श्रद्धा से युक्त होकर विधिपूर्वक भगवान सत्यदेव की पूजा की। भगवान सत्यदेव की कृपा से वह पुनः धन और पुत्रों से सम्पन्न हो गया तथा इस लोक में सभी सुखों का उपभोग कर अन्त में सत्यपुर वैकुण्ठलोक को प्राप्त हुआ।
श्रीसूत जी कहते हैं – जो व्यक्ति इस परम दुर्लभ श्री सत्यनारायण के व्रत को करता है और पुण्यमयी तथा फलप्रदायिनी भगवान की कथा को भक्तियुक्त होकर सुनता है, उसे भगवान सत्यनारायण की कृपा से धन-धान्य आदि की प्राप्ति होती है। दरिद्र धनवान हो जाता है, बन्धन में पड़ा हुआ बन्धन से मुक्त हो जाता है,
डरा हुआ व्यक्ति भय मुक्त हो जाता है – यह सत्य बात है, इसमें संशय नहीं। इस लोक में वह सभी ईप्सित फलों का भोग प्राप्त करके अन्त में सत्यपुर वैकुण्ठलोक को जाता है। हे ब्राह्मणों! इस प्रकार मैंने आप लोगों से भगवान सत्यनारायण के व्रत को कहा, जिसे करके मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है।
कलियुग में तो भगवान सत्यदेव की पूजा विशेष फल प्रदान करने वाली है। भगवान विष्णु को ही कुछ लोग काल, कुछ लोग सत्य, कोई ईश और कोई सत्यदेव तथा दूसरे लोग सत्यनारायण नाम से कहेंगे। अनेक रूप धारण करके भगवान सत्यनारायण सभी का मनोरथ सिद्ध करते हैं।
कलियुग में सनातन भगवान विष्णु ही सत्यव्रत रूप धारण करके सभी का मनोरथ पूर्ण करने वाले होंगे। हे श्रेष्ठ मुनियों! जो व्यक्ति नित्य भगवान सत्यनारायण की इस व्रत-कथा को पढ़ता है, सुनता है, भगवान सत्यारायण की कृपा से उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
हे मुनीश्वरों! पूर्वकाल में जिन लोगों ने भगवान सत्यनारायण का व्रत किया था, उसके अगले जन्म का वृतान्त कहता हूं, आप लोग सुनें।महान प्रज्ञासम्पन्न शतानन्द नाम के ब्राह्मण सत्यनारायण व्रत करने के प्रभाव से दूसे जन्म में सुदामा नामक ब्राह्मण हुए और उस जन्म में भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
लकड़हारा भिल्ल गुहों का राजा हुआ और अगले जन्म में उसने भगवान श्रीराम की सेवा करके मोक्ष प्राप्त किया। महाराज उल्कामुख दूसरे जन्म में राजा दशरथ हुए, जिन्होंने श्रीरंगनाथजी की पूजा करके अन्त में वैकुण्ठ प्राप्त किया।
इसी प्रकार धार्मिक और सत्यव्रती साधु पिछले जन्म के सत्यव्रत के प्रभाव से दूसरे जन्म में मोरध्वज नामक राजा हुआ। उसने आरे सेचीरकर अपने पुत्र की आधी देह भगवान विष्णु को अर्पित कर मोक्ष प्राप्त किया।
महाराजा तुंगध्वज जन्मान्तर में स्वायम्भुव मनु हुए और भगवत्सम्बन्धी सम्पूर्ण कार्यों का अनुष्ठान करके वैकुण्ठलोक को प्राप्त हुए। जो गोपगण थे, वे सब जन्मान्तर में व्रजमण्डल में निवास करने वाले गोप हुए और सभी राक्षसों का संहार करके उन्होंने भी भगवान का शाश्वत धाम गोलोक प्राप्त किया।
श्री सत्यनारायणजी की आरती
जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा ॥ जय लक्ष्मी… ॥
रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे ।
नारद करत नीराजन, घंटा वन बाजे ॥ जय लक्ष्मी… ॥
प्रकट भए कलिकारन, द्विज को दरस दियो ।
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो ॥ जय लक्ष्मी… ॥
दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी ।
चंद्रचूड़ इक राजा, तिनकी विपति हरी ॥ जय लक्ष्मी… ॥
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्ही ।
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति किन्हीं ॥ जय लक्ष्मी… ॥
भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धर्यो ।
श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरो ॥ जय लक्ष्मी… ॥
ग्वाल-बाल संग राजा, बन में भक्ति करी ।
मनवांछित फल दीन्हो, दीन दयालु हरि ॥ जय लक्ष्मी… ॥
चढ़त प्रसाद सवायो, कदलीय फल मेवा ।
धूप-दीप-तुलसी से, राजी सत्यदेवा ॥ जय लक्ष्मी… ॥
सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे ।
ऋषि-सिद्ध सुख-संपत्ति सहज रूप पावे ॥ जय लक्ष्मी… ॥
FAQ: Satyanarayan bhagwan ki katha
लीलावती किसकी बेटी थी?
लीलावती की बेटी का नाम गणितज्ञ भास्कराचार्य की एक पुत्री थी लीलावती।
सत्यनारायण कथा का अर्थ क्या है?
सत्यनारायण भगवान की कथा श्री विष्णु की भागवत है इसको नारायण के नाम से जाना जाता है यह शाश्वत सत्य प्रतीक माना जाता है सत्यनारायण भगवान का अवतार केवल सत्य और सत्य का प्रतीक माना जाता है इसीलिए झूठ छलि या घृणा को सत्यनारायण के सामने नजरअंदाज नहीं कर सकता है।
लीलावती के पति का नाम क्या था ?
लीलावती के पति का नाम भास्कराचार्य था अवती ग्रंथ का अंतिम श्लोक तो किसी बात का प्रमाण है।
निष्कर्ष
हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा satyanarayan bhagwan ki katha का लेख जरूर पसंद आया होगा वैसे मैंने इसमें और भी चीज़ लिखी है जैसे कि सत्यनारायण भगवान की आरती, सत्यनारायण भगवान की पूजा विधि मैंने इसमें यह सारी चीजें बताइए जिन को पढ़ने के बाद आप भी सत्यनारायण भगवान की पूजा कथा आरती कर सकते हैं।