वास्तु शास्त्र में दिशाओं के महत्व का सम्पूर्ण ज्ञान | घर के निर्माण में वास्तु प्रयोग सीखे | ब्रह्म स्थान या मध्य केंद्र क्या होता है?

Vastu Shasta me disha ka mahatva ? संपूर्ण वास्तुशास्त्र दिशाओं पर आधारित है। दिशाओं के शुभ-अशुभ परिणामों को ध्यान में रखकर भवन का निर्माण कराना चाहिए। उस में निवास करने वालों को सुख संपदा तथा सफलता प्रदान करता है।

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वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन निर्माण building construction के समय दिशाओं Directions और भी विदिशाओं Kiddish का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। वास्तुशास्त्र में कुल 9 दिशाओं का उल्लेख किया गया है। इन सभी दिशाओं के स्वामी और तत्व अलग-अलग होते हैं ।

1. वास्तु शास्त्र के मुताबिक पूर्व दिशा का महत्व : east direction

वास्तु शास्त्र में पूर्व दिशा अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह सूर्य उदय की दिशा है । इस दिशा के स्वामी इंद्रदेव हैं । यह चित् भाव की दिशा मानी गई है। भवन निर्माण के समय इसे अधिक से अधिक खुला रखना आवश्यक है। इसे बंद करने या दक्षिण पश्चिम से अधिक ऊंचा करने से मान सम्मान को हानि, कर्ज ना उतरना जैसी परेशानियां हो सकती हैं।

वास्तु सिद्धांत कहता है कि घर के पूर्व दिशा में स्थित दीवार जितनी कम ऊंची होगी उतनी ही भवन के मालिक को यश प्रतिष्ठा मान सम्मान प्राप्त होगी। तथा आयु और आरोग्य की प्राप्ति होगी। पूर्व दिशा की ओर कम ऊंचाई का बरामदा बनाना अत्यंत लाभकारी होता है। शास्त्र में पूर्व दिशा की ओर कुआँ पानी की टंकी की उपस्थिति को शुभ फलदाई माना गया है।

2. वास्तु शास्त्र के मुताबिक पश्चिम दिशा का महत्व : West direction 

West direction 

जब सूर्य अस्ताचल की ओर होता है तो यह दिशा पश्चिम कहलाती हैं। इस दिशा के देवता वरुण देव हैं जिन्हें जल का स्वामी कहा जाता है ।यह दिशा चंचलता प्रदान करती है। शनि देव इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते है । इस दिशा को प्रदूषित करने से जीवन में रुकावट और अधिक खर्च होने का डर बना रहता है |

पश्चिम मुखी घर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर होना अति आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं होता तो इस में निवास करने वाले लोग धन हानि और अकाल मृत्यु का ग्रास बन सकते हैं । इसलिए अगर भूखंड पश्चिम मुखी है तो इसका मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर होना आवश्यक है।! यह पोस्ट आप OSir.in वेबसाइट पर पढ़ रहे है !

3. वास्तु शास्त्र के मुताबिक उत्तर दिशा का महत्व : North direction

east direction

वास्तु शास्त्र में पूर्व के समान उत्तर दिशा को भी खाली और भार मुक्त रखना शुभ माना गया है। इस दिशा के स्वामी कुबेर हैं जो धन के देवता है । इसलिए अधिकांश लोगों के उत्तर मुखी घर होते हैं। इस दिशा का दोष मुक्त होना आवश्यक है । उत्तर दिशा में शौचालय रसोईघर इत्यादि नहीं बनाना चाहिए, इससे हानि होती है।

आर्थिक पक्ष कमजोर होता है ।उत्तर दिशा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है।उत्तर दिशा को धन से जुड़ा हुआ माना गया है। इस दिशा के दूषित होने से धन और सुख की कमी जीवन में बनी रहती है इस दिशा का खुला और हल्का होना आवश्यक है ।

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4. दक्षिण दिशा : South direction

दक्षिण दिशा के स्वामी यम है। यह दिशा धैर्य एवं स्थिरता का प्रतीक है। यह दिशा हर प्रकार की बुराई को नष्ट करता है। वास्तु सिद्धांतों और नियमों के अनुसार इस दिशा को भारी सामान तथा निर्माण सामग्री को रखने का स्थान बताया गया है। दिशा का खुला और हल्का रहना दोषपूर्ण है।

West direction 

इस दिशा में दरवाजे और खिड़कियां होने से रोग एक साथ मानसिक स्थिरता एवं निर्णय लेने में कमी जैसी परेशानियां होने लगती हैं। दक्षिण मुखी भवन का निर्माण कराते समय यह ध्यान देना आवश्यक होगा |

इसके पीछे किसी भी प्रकार से जगह न छूटे तथा चार दिवारी से सटाकर भवन का निर्माण कराना आवश्यक होता है । इस प्रकार के मकान में जल निकासी का मार्ग उत्तर ईशान दिशा में होना चाहिए। तथा पश्चिम दक्षिण दिशा की ओर कम से कम खुला स्थान छोड़ें।

5. दक्षिण पूर्व : Southeast

दिशा आग्नेय कोण के रूप में अग्नि तत्व को प्रभावित करते हैं। इस दिशा के स्वामी अग्निदेव हैं । इस दिशा के दूषित होने से स्वास्थ्य समस्या आती है तथा आग लगने से जान एवं माल को नुकसान पहुंचने का भय बना रहता है। इस दिशा में रसोई घर बनाना अति उत्तम होता है ।क्योंकि अग्नि का स्थान रसोई में ही होता है।

यह दिशा भी अग्नि प्रधान है इस दिशा के स्वामी शुक्र अति प्रसन्न होते हैं जिससे घर में सकारात्मक वातावरण बना रहता है इस दिशा में दोष होने पर घर का वातावरण तनावपूर्ण रहता है तथा धन हानि होती है। इस दिशा के मुख्य द्वार पर श्री गणेश जी की प्रतिमा अवश्य लगानी चाहिए। इस भवन का मुख्य द्वार कभी भी नैऋत्य कोण में ना बनाएं इससे घर में चोरी व धन हानि का भय सदा बना रहता है।

6. दक्षिण पश्चिम दिशा : South west direction

इस दिशा को ऊंचा एवं भारी रखना आवश्यक होता है क्योंकि यह दिशा राहु देवता के निर्देश पर रहतीहैं । इस दिशा का शुभ अशुभ दोष गृहस्वामी उसकी पत्नी और बड़ी संतान पर पड़ता है। इसमें दुर्घटना, रोग, मानसिक अशांति ,भूत-प्रेत आदि का भय भी उठता है  |

West direction 

इस दिशा में भवन का निर्माण कराते समय उसकी नीव में चांदी या सोने की दो नागों की प्रतिमा गाड़नी चाहिए जिससे इन से शांति मिलती है। पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाली इस दिशा को नैऋत्य भी कहा जाता है । इसके दूषित होने से व्यक्ति के साथ आकस्मिक दुर्घटना एवं चरित्र पर लांछन जैसी समस्याएं आती हैं ।

7. उत्तर पश्चिम दिशा : North west direction

वायव्य वायु तत्व और वायु देवता से जुड़ी हुई है। इस दिशा के बंद या दूषित होने से लोग मे शारीरिक शक्ति में कमी और आक्रामक व्यवहार देखने को मिलता है। इस दिशा में गौशाला ,बैडरूम बनाना अति उत्तम होता है ।

वायव्य कोण में कभी भी रसोई का निर्माण नहीं कराना चाहिए। इस दिशा में सेप्टिक टैंक एवं शौचालय का निर्माण कराना अति उत्तम है। क्योंकि यह दिशा दूषित जल के निकासी के लिए उपयुक्त होती है। अतः इस दिशा में दूषित जल निकासी के लिए नाली का निर्माण करवा सकते हैं। ! यह पोस्ट आप OSir.in वेबसाइट पर पढ़ रहे है !

8. उत्तर पूर्व दिशा : North west direction

North west direction

यह दिशा धैर्य ,बुद्धि विकास, उन्नति, यश, मान सम्मान में वृद्धि वाली होती है। वास्तु शास्त्र में ईशान कोण के नाम से जानी जाती है । अत्यंत पवित्र माने जाने वाली इसी दिशा में पूजा घर वास्तु सम्मत है। इसके दोषपूर्ण होने से साहस की कमी अस्त-व्यस्त जीवन काल एवं बुद्धि भ्रमित होने का अंदेशा रहता है। इस दिशा में मंदिर या अध्ययन कक्ष बनवाना शुभ होता है।

9. वास्तु शास्त्र के मुताबिक ब्रह्म स्थान या मध्य केंद्र क्या होता है ? | Brahman place or center

आवास- भवन के मध्य भाग को ब्रह्म स्थान कहा जाता है । ईशान की तरह इस क्षेत्र को भी स्वस्थ और पवित्र रखना आवश्यक है। अन्यथा जीवन में कष्ट बाधा एवं तनाव चोरी आदि समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यहां भारी भरकम सामान रखने या निर्माण से बचना चाहिए।

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