पृथ्वीराज चौहान का सच : वो गुप्त रहस्य जो सबसे छुपाया गया जाने असली कहानी | Prithviraj chauhan ka sach

❤ इसे और लोगो (मित्रो/परिवार) के साथ शेयर करे जिससे वह भी जान सके और इसका लाभ पाए ❤

पृथ्वीराज चौहान का सच | Prithviraj chauhan ka sach : आपने इतिहास के प्रमुख शासक पृथ्वीराज चौहान के बारे में तो सुना ही होगा पृथ्वीराज चौहान अपनी युद्ध गुणवत्ता और कुशल शासक होने की वजह से पहचाने जाते हैं जब पृथ्वीराज चौहान 11 वर्ष की आयु के थे तो इनके पिता की मृत्यु हो गई थी और तभी से इनके कंधों पर राज्य का भार आ गया था और इन्होने उसे बड़ी कुशलता और जिम्मेदारी पूर्वक निभाया महज 11 वर्ष की आयु में इन्होंने दिल्ली और अजमेर पर शासन किया.

ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान चौहान वंश के आखिरी शासक थे लेकिन इन्होंने अपना नाम शासनकाल के इतिहास में इस प्रकार दर्ज कराया कि आज भी इनके नाम की चर्चा होती है क्योंकि पृथ्वीराज चौहान सिर्फ एक योद्धा एवं शासक ही नहीं बल्कि एक अच्छे व्यक्ति थे.

पृथ्वीराज चौहान का सच, पृथ्वीराज चौहान का साम्राज्य, पृथ्वीराज चौहान का शासनकाल, पृथ्वीराज चौहान का इतिहास हिंदी में, पृथ्वीराज चौहान का इतिहास क्या है, पृथ्वीराज चौहान का राज, पृथ्वीराज चौहान का युद्ध, पृथ्वीराज चौहान का अंतिम युद्ध, पृथ्वीराज चौहान का इतिहास बताइए, पृथ्वीराज चौहान का इतिहास, पृथ्वीराज चौहान का जीवनी, prithviraj chauhan ka samrajya, prithviraj chauhan mughal empire, पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियां, पृथ्वीराज चौहान का युद्ध बताइए, पृथ्वीराज चौहान का वंशज, पृथ्वीराज चौहान का वंश, पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय, Prithviraj chauhan ka sach, prithviraj chauhan ka samrajya, prithviraj chauhan ka itihas, prithviraj chauhan samrajya, ,

जो अपनी प्रजा के लिए कुछ भी करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे इसलिए पृथ्वीराज चौहान को राय पिथौरा भी कहा जाता है पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाना जानते थे और उन्होंने बचपन से ही युद्ध के अनेक गुण सीखे थे जिस उम्र में बच्चे क्रीड़ा करते हैं उस उम्र में इन्हें राज भार संभालना पड़ा जिसकी वजह से यह उत्तम शासक बन सके.

चौहान वंश के प्रमुख एवं इतिहास के श्रेष्ठ शासक पृथ्वीराज चौहान के बारे में कौन नहीं जानता हमें बचपन से ही किताबों के माध्यम से पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बारे में पढ़ाया जाता है और पृथ्वीराज चौहान की वीरता के बारे में भी बताया जाता है लेकिन आज हम आपके लिए कुछ ऐसा लेकर आए हैं जिसे सुनने के बाद आप भी हैरान हो जाएंगे.

नमस्कार दोस्तों आज आपका इस नए लेख में बहुत-बहुत स्वागत है दोस्तों आज के इस लेख में हम आपको पृथ्वीराज चौहान का सच के बारे में बताने वाले हैं तो हमारे इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़े क्योंकि आपको पृथ्वीराज चौहान का सच इसी लेख में प्राप्त होगा.

पृथ्वीराज चौहान का सच | Prithviraj chauhan ka sach

पृथ्वीराज चौहान चौहान वंश के तृतीय शासक थे इनका शासनकाल 1178 से 1192 ईसवी तक था इन्होंने अपने शासनकाल में अनेक राजाओं को पराजित किया और युद्ध में विजय प्राप्त की अगर बात की जाए कि इन्होंने सबसे ज्यादा किस मुगल शासक से युद्ध किया तो उसका नाम मोहम्मद गौरी है मोहम्मद गौरी 11वीं शताब्दी का अफगानिस्तान शासक का सेनापति था जो 1112 ईस्वी में मुगल साम्राज्य का शासक बना.

मोहम्मद गोरी ने 1990 से 1991 ईस्वी के बीच पृथ्वीराज चौहान के क्षेत्रों पर आक्रमण करना प्रारंभ कर दिया और बंठीडा पर कब्जा कर लिया जब मोहम्मद गोरी ने बंठीडा पर कब्जा किया तो उस समय पृथ्वीराज चौहान दिल्ली में थे जब पृथ्वीराज चौहान को यह जानकारी मिली तो वह तुरंत तबरहिंदा जाने के लिए निकल पड़े.

जब मोहम्मद गोरी को यह जानकारी मिली कि पृथ्वीराज चौहान तबरहिंदा में है तो मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ क्योंकि मोहम्मद गौरी तबरहिंदा को जीतना चाहता था लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने अपनी सेना के बल पर मोहम्मद गौरी कि सेना को ध्वस्त कर दिया और मोहम्मद गौरी अपनी जान बचाकर वहां से भाग उठा.

तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई थी और तराइन के दूसरे युद्ध जोकि 1192 ईस्वी में हुआ था जिसमें पृथ्वीराज चौहान की सेना 3 लाख से अधिक थी और 300 से अधिक हाथी और घुड़सवार तीरंदाज थे और दूसरी तरफ मोहम्मद गौरी एक लाख बीस हजार सैनिक और 10000 तीरंदाज घुड़सवार उपस्थित थे.

अब यहां पर बात यह आती है कि 3 लाख सैनिकों के सामने एक लाख बीस हजार सैनिक कैसे टिक सकते हैं लेकिन हमारे इतिहासकारों ने इस युद्ध में मोहम्मद गौरी की जीत का दावा किया जो कि बिल्कुल गलत है यही पृथ्वीराज चौहान का सच है.

 

पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी का युद्ध | Prithviraj Chauhan aur Mohammed Gauri ka yuddh

अपमान के बदले की आग में जयचंद्र यह भूल गया कि पृथ्वीराज चौहान उसका जमाता है और उसने पृथ्वीराज चौहान की हत्या के लिए मुगल साम्राज्य के शासक मोहम्मद गौरी को संदेशा भेजा और उन्हें युद्ध के लिए आमंत्रित किया मोहम्मद गौरी तो पहले से ही पृथ्वीराज चौहान के राज्य को अपने राज्य में शामिल करना चाहता था इसलिए वह युद्ध के लिए तैयार हो गया और वह एक बड़ी सेना को अपने साथ लेकर पृथ्वीराज चौहान के राज्य की तरफ प्रस्थान करता है.

बंदी

जिसके बाद मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के राज्य पर आक्रमण किया लेकिन पृथ्वीराज चौहान एवं उनकी सेना ने उस युद्ध मे धैर्य एवं साहस के साथ युद्ध किया और मोहम्मद गौरी को पराजित कर दिया पराजित होने के पश्चात भी मोहम्मद गोरी ने हार नहीं मानी और एक पर एक युद्ध करता रहा पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच 17 बार युद्ध हुआ जिसमें से 16 बार मोहम्मद गौरी हार गया और पृथ्वीराज चौहान ने उसे क्षमा कर दिया यह पृथ्वीराज चौहान के जीवन की सबसे बड़ी गलती थी.

पृथ्वीराज चौहान की हार | Prithviraj Chauhan ki har

पृथ्वीराज चौहान को लगा कि उनका दुश्मन मोहम्मद गोरी अब कमजोर हो चुका है लेकिन ऐसा नहीं था मोहम्मद गौरी भी हार ना मानने वाला शासक था और उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य पृथ्वीराज चौहान की हत्या एवं उसके राज्य को अपने राज्य में शामिल करना था इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मोहम्मद गोरी ने एक बार पुनः पृथ्वीराज चौहान पर 17वीं बार आक्रमण किया.

जब पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच 17 बार युद्ध हुआ तो उस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान हार गए जिसके पश्चात मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया और गजनी लेकर आया.

war

जिसके बाद मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान पर तरह-तरह की यातनाएं की जो बहुत भीषण और दर्दनाक थी पृथ्वीराज चौहान की आंखें फोड़ दी गई और उन्हें तड़पने के लिए छोड़ दिया गया ऐसा कहा जाता है कि मोहम्मद गौरी को तीरंदाजी प्रतियोगिता कराने का शौक था और वह प्रत्येक वर्ष यह प्रतियोगिता कराता था.

इस बार जब यह प्रतियोगिता आयोजित हो रही थी तो इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पृथ्वीराज चौहान भी आगे आएं मोहम्मद गौरी को लगा कि एक अंधा इस प्रतियोगिता में भाग कैसे ले सकता है लेकिन मोहम्मद गौरी को यह ज्ञात नहीं था कि पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चला लेते हैं.

मोहम्मद गौरी की मृत्यु | Mohammed Gauri ki mrityu

प्रतियोगिता में पृथ्वीराज चौहान का राजदरबारी चंद्रवरदाई आया हुआ था लेकिन यह किसी को ज्ञान नहीं था कि चंद्रवरदाई पृथ्वीराज चौहान का दरबारी है प्रतियोगिता के पहले चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज चौहान से कहा कि मोहम्मद गोरी जिस स्थान पर बैठा हुआ है मैं उस स्थान को शब्दों में बयां करूंगा और आप तीर चला देना और जब पृथ्वीराज चौहान के तीर चलाने की बारी आई तो चंद्रवरदाई ने ऊंचे स्वरों में एक श्लोक बोला.

war

चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।।

इस श्लोक को सुनते ही पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी के बैठे होने की सटीक स्थान की जानकारी मिल गई और उसने तीर चला दिया वह तीर मोहम्मद गौरी के हृदय को चीरता हुआ निकल गया और उसी क्षण मोहम्मद गौरी की मृत्यु हो गई.

जैसे ही मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई मोहम्मद गौरी के सैनिकों ने पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया लेकिन योजना के अनुसार चंद्रवरदाई ने एक तलवार पृथ्वीराज चौहान के हाथ में पकड़ा दी और स्वयं दूसरी तलवार से युद्ध करने लगे दोनों ने हजारों सैनिकों को मृत्यु के घाट उतार दिया क्योंकि पृथ्वीराज चौहान को दुश्मनों के हाथ मृत्यु पसंद नहीं थी.

दोस्तों यह है पृथ्वीराज चौहान का सम्पूर्ण सच जो अब तक बहुत कम लोग जानते हैं इस सच का प्रमाण आपको इतिहास में मिल जाएगा इसे लिखने वाले स्वयं पृथ्वीराज चौहान के राजदरबारी चंद्रवरदाई थे चंद्रवरदाई पृथ्वीराज चौहान के मित्र एवं विश्वासी दरबारी थे.

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी | Prithviraj Chauhan aur Sanyogita Ki Prem Kahani

सभी राज्यों पर अपना प्रभाव डालने के लिए उत्तर भारत के गढ़वाल वंश के राजा जयचंद्र ने जयसूय यज्ञ किया लेकिन जयचंद पृथ्वीराज चौहान से घृणा करते थे और वह उनकी प्रमुखता को मानने से इनकार करते थे इसीलिए उन्होंने इस यज्ञ में शामिल होने के लिए पृथ्वीराज चौहान को निमंत्रण नहीं भेजा जिसकी वजह से पृथ्वीराज चौहान और जयचंद के बीच की दुश्मनी युद्ध का रूप लेने लगी.

propose girl

ऐसा कहा जाता है कि एक बार जयचंद्र के दरबार में नामी-गिरामी चित्रकार आया था जो अपनी चित्र कला का प्रदर्शन दरबार में जयचंद्र के सामने कर रहा था उन चित्रों में अनेक राज्यों के सुंदर, नौजवान राजकुमारों की तस्वीरें थी और वह चित्रकार इन सभी तस्वीरों को राजा और राजकुमारी को दिखा रहा था और उन सभी तस्वीरों में से एक तस्वीर राजकुमारी संयोगिता को बहुत पसंद आई.

वह नौजवान राजकुमार कोई और नहीं बल्कि स्वयं पृथ्वीराज चौहान थे कुछ समय पश्चात चित्रकार वहां से चला गया उसके पश्चात संयोगिता ने अपनी सहेलियों से उस तस्वीर के बारे में जिक्र किया और राजकुमारी संयोगिता की सहेलियों ने संयोगिता से पृथ्वीराज चौहान की वीरता के बारे में बताया.

जिसे सुनने के पश्चात संयोगिता को पृथ्वीराज चौहान का स्वभाव और उनकी वीरता बहुत भायी और उन्हें पृथ्वीराज चौहान से प्रेम हो गया और संयोगिता ने 1 दिन जाकर उस चित्रकार से पृथ्वीराज चौहान की तस्वीर ले आती है और अपने प्रेम के विषय में किसी से चर्चा नहीं करती है.

कुछ समय पश्चात वही चित्रकार पृथ्वीराज चौहान के दरबार में भी अपने चित्रों की व्याख्या करने के लिए जाता है और पृथ्वीराज चौहान के समक्ष अनेक राज्यों की राजकुमारियों की तस्वीर रखता है लेकिन उन सभी तस्वीरों में से पृथ्वीराज चौहान को कोई भी तस्वीर पसंद नहीं आती इसके पश्चात उस चित्रकार ने जब पृथ्वीराज चौहान को संयोगिता की तस्वीर दिखाई.

तस्वीर को देखते ही पहली नजर में ही पृथ्वीराज चौहान को भी संयोगिता से प्रेम हो जाता है अब संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान एक दूसरे से प्रेम करने लगे थे जैसा कि आपने सुना है कि हर प्रेम कहानी में एक विलन जरूर होता है उसी प्रकार इस प्रेम कहानी में भी विलन संयोगिता का पिता यानी कि जयचंद्र था.

आइए आगे इस लेख के माध्यम से पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं कि कैसे उन दोनों का विवाह हुआ.

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता का विवाह | Prithviraj Chauhan aur Sanyogita ka Vivah

इसी बीच संयोगिता के स्वयंबर की तैयारी हो रही थी स्वयंबर के दिन आसपास के सभी राज्यों के राजकुमार आए थे लेकिन जयचंद्र और पृथ्वीराज चौहान की दुश्मनी के कारण जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान को निमंत्रण ना देकर उनकी मूर्ति द्वारपाल के रूप में स्थापित कर दी ताकि वह अन्य सभी राजाओं और राजकुमारों के समक्ष पृथ्वीराज चौहान को जलील कर सके.

राज दरबार में जब संयोगिता आई तो जयचंद्र ने संयोगिता से किसी एक राजकुमार के गले में वरमाला पहनाने को कहा लेकिन संयोगिता तो पृथ्वीराज चौहान से प्रेम करती थी तो वह किसी और को वरमाला कैसे पहना देती इसी कारण संयोगिता ने किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालने से इनकार कर दिया.

जब संयोगिता को यह ज्ञात हुआ कि उनके पिता जयचंद्र ने पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति द्वारपाल के रूप में स्थापित की है तो संयोगिता ने उसी मूर्ति को वरमाला पहना दी और उधर जब यह बात पृथ्वीराज चौहान को ज्ञात हुई तो वह स्वयंवर में आए और संयोगिता से विवाह करके उन्हें अपने साथ राज्य लेकर चले गए इस घटना ने जयचंद्र के हृदय को चीर दिया था और वह पृथ्वीराज चौहान से बदला लेना चाहता था.

पृथ्वीराज चौहान का शासन कहां तक फैला हुआ था ? | Prithviraj chauhan ka shasan kaha tak faila hua tha ?

पृथ्वीराज चौहान का शासन राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, दिल्ली तक फैला हुआ था जैसा कि हमने आपको बताया है कि पृथ्वीराज चौहान 11 वर्ष की आयु से ही शासन कर रहे थे तो जब इन्होंने राज्यभार संभालना प्रारंभ किया तो इनके आसपास के राज्यों के राजाओं ने इनके राज्य को अपने राज्य में शामिल करने के लिए इन पर अनेकों बार आक्रमण किया लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने कभी भी हार नहीं मानी और बुद्धिपूर्वक युद्ध करके अपने राज्य को विजय दिलाई इसीलिए पृथ्वीराज चौहान को इतिहास का प्रमुख शासक भी कहा जाता है.

FAQ: पृथ्वीराज चौहान का सच

पृथ्वीराज चौहान कौन थे?

पृथ्वीराज चौहान चौहान वंश के तृतीय शासक थे इन्होंने अपने जीवन काल में अनेक युद्ध किए और विजय प्राप्त की और यह एक क्षमाशील व्यक्ति थे इनकी यही क्षमाशीलता मोहम्मद गौरी से युद्ध में पराजित होने का कारण बनी.

पृथ्वीराज चौहान की प्रेमिका का क्या नाम था?

ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान की प्रेमिका का नाम संयोगिता था जो गढ़वाल वंश के राजा जयचंद्र की पुत्री थी.

मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के साथ क्या किया?

जब पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी से युद्ध में हार गए तो मोहम्मद गौरी उन्हें बंदी बना कर गजनी ले गया था और उसने पृथ्वीराज चौहान की आंखें फोड़ दी थी और उन पर तरह-तरह की यातनाएं की थी.

निष्कर्ष :

दोस्तों इस लेख में हमने आपको पृथ्वीराज चौहान का सच और पृथ्वीराज चौहान एवं संयोगिता का विवाह तथा पृथ्वीराज चौहान एवं मोहम्मद गौरी के बीच कितने युद्ध हुए एवं किस युद्ध में मोहम्मद गौरी की विजय हुई यह सभी जानकारी आपको इस लेख में दी है एवं आपको पृथ्वीराज चौहान की जिंदगी का वह सच जो अक्सर लोगों को ज्ञात नहीं है वह भी बताया है आशा करते हैं आपको यह जानकारी पसंद आई होगी हमारे इस लेख को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.

❤ इसे और लोगो (मित्रो/परिवार) के साथ शेयर करे जिससे वह भी जान सके और इसका लाभ पाए ❤

Leave a Comment