सबसे ताकतवर मां काली का सुरक्षा घेरा मंत्र | काली कवच क्या है – maa kali ka suraksha ghera

Maa kali jaap mantra aur grah mantra kya hai kali kvch ? काली कवच मां काली का समर्पित कवच है जिसका पाठ करने से साधक के अंदर तेज उत्पन्न होता है और साधक को किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है माता काली के कवच का नियमित जाप और पाठ करने से साधक को किसी भी प्रकार के शत्रु से डर नहीं रह जाता है अर्थात यह शत्रु विनाशक कवच होता है।

mata kali shaktishali kali kavach ka path mahakali jaap mantraकाली मां का शाबर मंत्र मां काली का मंत्र क्या है श्री माँ काली कवच

काली कवच शत्रुओं से विजय दिलाने वाला और साधक को भयमुक्त करने वाला बहुत ही प्रभावशाली कवच है यह एक प्रकार का नियमित पाठ करने का कवच है जिसका पाठ करने से व्यक्ति के अंदर अभूतपूर्व तेज प्राप्त हो जाता है और व्यक्ति सभी प्रकार की आशक्तियों से मुक्त हो जाता है।

सबसे ताकतवर मां काली का सुरक्षा घेरा मंत्र

साबर काली सुरक्षा घेरा मंत्र

नित्य 108 बार इस मंत्र का जाप करने से समस्याओं का नाश होने लगता है और इस मंत्र के जाप करने वाले को अकस्मात् ही धन लाभ होने सुरु हो जाता है . यदि आप नित्य इस मंत्र का जाप करके माँ काली का आशिर्वाद ले रहे है तो आप को कहिये की हर 15 दिन में 1 बार माँ काली के मंदिर जा कर उन्हें मीठे का प्रसाद चढ़ाना चाहिए इससे आप पर माँ की कृपा निरंतर बनी रहेगी .

ओम नमो काली कंकाली महाकाली मुख सुंदर जिहा वाली,

चार वीर भैरों चौरासी, चार बत्ती पूजूं ए मिठाई,

अब बोलो काली की दुहाई

भूत प्रेत या सत्रु भय को मिटाने वाला काली साबर सुरक्षा घेरा मंत्र

इस मंत्र के दैनिक जाप से हर तरह के भूत प्रेत और बुरी शक्तियाँ आप से दूर रहती है साथ ही माँ काली के तेज से शत्रु भी आप से भय खाने लगते है और आप के मार्ग की बाधा नहीं बनते है . शारीरिक बीमारियाँ और मानसिक असान्ति भी इस मंत्र से दूर होती है .

ओम कलिका खडग खप्पर लिए ठाडी,

ज्योति तेरी है निराली,

पीती भर भर रक्त की प्याली,

कर भक्तो की रखवाली ,

ना करे रक्षा तो महाबली भैरव की दुहाई

काली कवच के अंतर्गत कई प्रकार के काली कवच आते हैं जिसमें से यहां पर नारायण और नारद द्वारा काली कवच का वर्णन किया जा रहा है इस कवच के अंतर्गत नारद ने नारायण से पूछा जो श्रीब्रह्मवैवर्ते के अंतर्गत काली कवच में आता है।

1. नारद उवाच |Narada Uvacha

कवचं श्रोतुमिच्छामि तां च विद्यां दशाक्षरीम् ।

नाथ त्वत्तो हि सर्वज्ञ भद्रकाल्याश्च सांप्रतम ।।

2. नारायण उवाच |Narayan Uvach

श्रुणु नारद वक्ष्यामि महाविद्यां दशाक्षरीम् ।

गोपनीयं च कवचं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् ।।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहेति च दशाक्षरीम् ।

दुर्वासा हि ददौ राज्ञे पुष्करे सुर्यपर्वणि ।।

दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिः कृता पुरा ।

पञ्चलक्षजपेनैव पठन् कवचमुत्तमम् ।।

बभूव सिद्धकवचोSप्ययोध्यामाजगाम सः ।

कृत्स्रां हि पृथिवीं जिग्ये कवचस्य प्रसादतः ।।

3. नारद उवाच | Narada Uvacha

श्रुता दशाक्षरी विद्या त्रिषु लोकेषु दुर्लभा ।

अधुना श्रोतुमिच्छामि कवचं ब्रुहि मे प्रभो ।।

4. नारायण उवाच |Narayan Uvach

श्रुणु वक्ष्यामि विप्रेन्द्र कवचं परामाद्भुतम् ।

नारायणेन यद् दत्तं कृपया शूलिने पुरा ।।

त्रिपुरस्य वधे घोरे शिवस्य विजयाय च ।

तदेव शूलिना दत्तं पुरा दुर्वाससे मुने ।।

दुर्वाससा च यद् दत्तं सुचन्द्राय महात्मने ।

अतिगुह्यतरं तत्त्वं सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ।।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम् ।

क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रींमिति लोचने ।।

ॐ ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदावतु ।

क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दन्तं सदावतु ।।

ह्रीं भद्रकालिके स्वाहा पातु मेsधरयुग्मकम् ।

ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठं सदावतु ।।

ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा कर्णयुग्मं सदावतु ।

ॐ क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा स्कन्धं पातु सदा मम ।।

ॐ क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्षः सदावतु ।

ॐ क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदावतु ।।

ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पृष्टं सदावतु ।

रक्तबीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तौ सदावतु ।।

ॐ ह्रीं क्लीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदावतु ।

ॐ ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वाङ्गं मे सदावतु ।।

प्राच्यां पातु महाकाली आग्नेय्यां रक्तदन्तिका ।

दक्षिणे पातु चामुण्डा नैऋत्यां पातु कालिका ।।

श्यामा च वारुणे पातु वायव्यां पातु चण्डिका ।

उत्तरे विकटास्या च ऐशान्यां साट्टहासिनि ।।

ऊर्ध्वं पातु लोलजिह्वा मायाद्या पात्वधः सदा ।

जले स्थले चान्तरिक्षे पातु विश्वप्रसूः सदा ।।

इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ।

सर्वेषां कवचानां च सारभूतं परात्परम् ।।

सप्तद्वीपेश्वरो राजा सुचन्द्रोSस्य प्रसादतः ।

कवचस्य प्रसादेन मान्धाता पृथिवीपतिः ।।

प्रचेता लोमशश्चैव यतः सिद्धो बभूव ह ।

यतो हि योगिनां श्रेष्टः सौभरिः पिप्पलायनः ।।

यदि स्यात् सिद्धकवचः सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ।

महादानानि सर्वाणि तपांसि च व्रतानि च ।।

निश्चितं कवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ।

इदं कवचमज्ञात्वा भजेत् कालीं जगत्प्रसूम् ।।

शतलक्षप्रजप्तोSपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः ।

इति श्रीब्रह्मवैवर्ते कालीकवचं संपूर्णम् ।।

उपरोक्त काली कवच की तरह यहां पर जगन्मंगल काली कवच का भी वर्णन मिलता है जिसके अंतर्गत माता काली का कवच साधक को निर्भीक बनाता है इस काली कवच के अंदर माता पार्वती ने भगवान शिव से प्रश्न किया कि लोगों की रक्षा कैसे की जा सकती है।

इस प्रश्न के जवाब में भगवान शिव ने माता पार्वती के सभी प्रश्नों का उत्तर दिया जो एक काली कवच के रूप में साधक की रक्षा करता है इसका नित्य जाप करने से निर्भरता के साथ-साथ तेज भी आ जाता है जिसके जिसके अंदर अभूतपूर्व क्षमता प्राप्त हो जाती है।

आइए जानते हैं कि जगन्मंगल काली कवच क्या है ? | Jagan Mangala Kali Kavach

Maa kali

1. जगन्मंगल कालीकवचम्

भैरव्युवाच-
कालीपूजा श्रुता नाथ भावाश्च विविधः प्रभो।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि कवचं पूर्वसूचितम्।।
त्वमेव शरणं नाथ त्रापि मां दुःखसंकटात्।
त्वमेव स्त्रष्टा पाता च संहर्ता च त्वमेव हि।।

माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हे प्रभु मैंने काली पूजा और उसके विविध स्वरूप के भाव को सुना है अब इससे पहले व्यक्त किए गए कवच की सुनने की इच्छा है जो मेरे दुख संकट में रक्षा करता है पार्वती ने कहा कि आप ही श्रेष्ठ के रचनाकार हैं और आप ही रक्षा तथा आप ही संघार करते हो ऐसे में हे प्रभु तू ही मेरे आश्रय दाता

इस पर भगवान शिव ने पार्वती को उत्तर दिया

2. भैरव उवाच

रहस्यं शृणु वक्ष्यामि भैरवि प्राणवल्लभे।
श्रीजगन्मंगलं नाम कवचं मंत्रविग्रहम्।
पठित्वा धरयित्वा च त्रैलोक्यं मोहयेत् क्षणात् ।
भैरव ने कहा-हे प्राण वल्लभे!

भगवान भैरव ने कहा कि जो मैं कहता हूं उसे पाठ करने और धारण करने से आप जल्द ही त्रिलोकीनाथ को मोहित कर सकते है।

नारायणोऽपि यद्धृत्वा नारी भूत्वा महेश्वरम।
योगेशं क्षोभमनयद्यद्धृत्वा च रघूद्वहः।
वरवृप्तान् जघानैव रावणादिनिशाचरान्।

भगवान शिव ने कहा कि इसको धारण करने के बाद नारी रूप में योगेश्वर भगवान शिव को मोहित किया था और श्री राम इसी को जाप करके तथा धारण करके रावण आदि राक्षसों का संघार किया था

यस्य प्रसादादीशोऽहं त्रैलोक्यविजयी प्रभुः।
धनाधिपः कुबेरोऽपि सुरेशोऽभूच्छत्रीपतिः।
एवं हि सकला देवाःसर्वसिद्धीश्वराः प्रिये॥

कौन भैरव आगे कहते हैं कि हे पार्वती इसी के धारण करने से त्रिलोक विजेता बना और कुबेर धनकुबेर बने तथा शचीपति सुरेश्वर और अन्य देवता इसी से सर्व सिद्ध होकर ईश्वर को प्राप्त हुए

Maa kali

श्रीजगन्मंगलस्यास्य कवचस्य ऋषिश्शिवः।
छन्दोऽनुष्टुब्देवता च कालिका दक्षिणेरिता॥
जगतां. मोहने दुष्टानिग्रहे भक्तिमुक्तिषु ।
योषिदाकर्षणे चैव विनियोगः प्रकीर्तितः ॥

जगन्मंगल कालीकवच ऋषि शिव, छन्द अनुष्टुप्, देवता दक्षिण कालिका और मोहन, दुष्ट निग्रह, भुक्तिमुक्ति और योषिदाकर्षण के लिए विनियोग है।

शिरो मे कालिका पातु क्रींकारैकाक्षरी परा।
क्रीं क्रीं क्रीं मे ललाटञ्च कालिकाखंगधारिणी।।
हुं हुं पातु नेत्रयुग्मं ह्रीं ह्रीं पातु श्रुती मम।
दक्षिणा कालिका पातु घ्राणयुग्मं महेश्वरी।।
क्रीं क्रीं क्रीं रसनां पातु ह्रीं ह्रीं स्वाहा स्वरूपिणी।
वदनं सकलं पातु ह्रीं ह्रीं स्वाहा स्वरूपिणी।।

भगवान शिव कहते हैं कि कालिका और क्रींकारा मेरे मस्तक की, क्रीं क्रीं क्रीं और खंगधारिणी कालिका मेरे ललाट की, हुं हुं दोनों नेत्रों की ह्रीं ह्रीं कर्म की, दक्षिण कालिका दोनों नासिकाओं की, क्रीं क्रीं क्रीं मेरी जीभ की, हुं हुं कपोलों की और ह्रीं ह्रीं स्वाहा स्वरूपिणी महाकाली मेरी सम्पूर्ण देह की रक्षा करें।

द्वाविंशत्यक्षरी स्कन्धौ महाविद्या सुखप्रदा।
खंगमुण्डधरा काली सर्वांगमभितोऽवतु॥
क्रीं हुं ह्रीं त्र्यक्षरी पातु चामुण्डा हृदयं मम।
हे हुं ओं ऐं स्तनद्वन्द्वं ह्रीं फट् स्वाहा ककुत्स्थलम्॥
अष्टाक्षरी महाविद्या भुजौ पातु सकर्तृका।
क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रींकरौ पातु षडक्षरी मम॥

बाईस अक्षर की गुह्य विद्या रूप सुखदायिनी महाविद्या मेरे दोनों स्कन्धों की, खंगमुण्डधारिणी काली मेरे सर्वांग की, क्रीं हुं ह्रीं चामुण्डा मेरे हृदय की, ऐं हुं ओं ऐं मेरे दोनों स्तनों की, ह्रीं स्वाहा मेरे कन्धों की एवं अष्टाक्षरी महाविद्या मेरी दोनों भुजाओं की और क्रीं इत्यादि षडक्षरी विद्या मेरे दोनों हाथों की रक्षा करें।

क्रीं नाभिं मध्यदेशञ्च दक्षिणा कालिकाऽवतु।
क्रीं स्वाहा पातु पृष्ठन्तु कालिका सा दशाक्षरी॥
ह्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके हूं ह्रीं पातु कटीद्वयम्।
काली दशाक्षरी विद्या स्वाहा पातूरुयुग्मकम्।।
ॐ ह्रीं क्रीं मे स्वाहा पातु कालिका जानुनी मम।

कालीहनामविद्येयं चतुर्वर्गफलप्रदा।।
क्रीं ह्रीं ह्रीं पातु गुल्फ दक्षिणे कालिकेऽवतु।
क्री हूँ ह्रीं स्वाहा पदं पातु चतुर्दशाक्षरी मम॥

बगलामुखी
त्रिपुर भैरवी कवच
कालीहनामविद्येयं चतुर्वर्गफलप्रदा।।
क्रीं मेरी नाभि की, दक्षिण कालिका मेरे मध्य, क्रीं स्वाहा और दशाक्षरी विद्या मेरी पीठ की, ह्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके हूं ह्रीं मेरी कटि की, दशाक्षरीविद्या मेरे ऊरुओं की और ओ३म् ह्रीं क्रीं स्वाहा मेरी जानु की रक्षा करें। यह विद्या चतुर्वर्गफलदायिनी है।
क्रीं ह्रीं ह्रीं पातु गुल्फ दक्षिणे कालिकेऽवतु।
क्री हूँ ह्रीं स्वाहा पदं पातु चतुर्दशाक्षरी मम॥
क्रीं ह्रीं ह्रीं मेरे गुल्फ की, क्रीं हूँ ह्रीं स्वाहा और चतुर्दशाक्षरीविद्या मेरे शरीर की रक्षा करें।
खंगमुण्ड धरा काली वरदा भयवारिणी।
विद्याभिःसकलाभिः सा सर्वांगमभितोऽवतु॥

खंग मुण्डधरा वरदा भवहारिणी काली सब विद्याओं सहित मेरी सभी प्रकार से रक्षा करें।

काली कपालिनी कुल्वा करुकुल्ला विरोधिनी।
विप्रचित्ता तथोग्रोग्रप्रभा दीप्ता घनत्विषः॥
नीला घना बालिका च माता मुद्रामिता च माम्
एताः सर्वाः, खंगधरा मण्डमालाविभूषिताः॥

रक्षन्तु मां दिक्षु देवी ब्राह्मी नारायणी तथा।
माहेश्वरी च चामुण्डा कौमारी चापराजिता।।
वाराही नारसिंही च सर्वाश्चामितभूषणाः ।
रक्षन्तु स्वायुधैर्दिक्षु मां विदिक्षु यथा तथा॥

ब्राह्मी, नारायणी, माहेश्वरी, चामुण्डा, कुमारी, अपराजिता, नृसिंही आज देवियां सभी प्रकार से मेरी दिग दिगंत में सदैव रक्षा करें ।

इत्येवं कथितं दिव्यं कवचं परमाद्भुतम्।
श्रीजगन्मंगलं नाम महामंत्रौघविग्रहम॥
त्रैलोक्याकर्षणं ब्रह्मकवचं मन्मुखोदितम्।
गुरुपूजां विधायाथ गृहीयात कवचं ततः।
कवचं त्रिःसकृद्वापि यावज्जीवञ्च वा पुनः॥

एक दिन की साधना बिना माला मंत्र के, माँ काली साधना विधि, मां काली को प्रसन्न करने का मंत्र, महाकाली के मंत्र, माँ काली को बुलाने का मंत्र, महाकाली शाबर मंत्र साधना, मां काली की पूजा कैसे करें, गुप्त काली मंत्र, mahakali satta sadhna, kali sadhana pdf, shri mahakali mantra, मां काली की पूजा कैसे करें, mahakali janjira, maa kali sadhna, man kali sadhna, महाकाली बंगाली मंत्र, काली की सिद्धि कैसे प्राप्त करें?, काली माता का प्रसाद क्या है?, मां काली का आवाहन कैसे करें?, काली माता का दिन कौन सा होता है?, ,

जगन्मंगलनामक अद्भुत और दिव्य कवच है जिसको नित्य पाठ करने से संपूर्ण त्रिभुवन अपनी और आकर्षित होता है इसे आप दिन में एक बार या फिर जीवन में प्रतिदिन करने से जीवन सकुशल बीत जाता है तथा जीवन में किसी भी प्रकार का भय संकट नहीं आता है

एतच्छतार्द्धमावृत्य त्रैलोक्यविजयो भवेत्।
त्रैलोक्यं क्षोभयत्येव कवचस्य प्रसादतः।
महाकविर्भवेन्मासात्सर्वसिद्धीश्वरो भवेत॥

महाकाली कवच को यदि प्रतिदिन किया जाता है तो व्यक्ति त्रिलोक विजेता के रूप में शोभित हो जाता है।

पुष्पाञ्जलीन् कालिकायैमूलेनैव पठेत् सकृत्।
शतवर्षसहस्त्राणां पूजायाः फलमाप्नुयात्॥

इस मूल मंत्र का जाप करने से सैकड़ों वर्ष की पूजा का फल प्राप्त होता है।

भूर्ज्जै विलिखित्तञ्चैव स्वर्णस्थं धारयेद्यदि।
शिखायां दक्षिणे बाहौ कण्ठे वा धारयेद्यदि॥
त्रैलोक्यं मोहयेत् क्रोधात् त्रैलोक्यं चूर्णयेत्क्षणात्।
बह्वपत्या जीवत्सा भवत्येव न संशयः॥

इसे भोजपत्र समस्त स्वर्ण पत्र पर लिखकर सिर के दाएं हाथ या कंठ में धारण करने से व्यक्ति को मोहित होगा क्रोधित होने पर अच्छा प्रभाव दिखाता है यदि नारी से धारण करती है तो उसको संतान सुख प्राप्त होता है और बच्चों की प्रति बहुत ही प्रेम करती है।

न देयं परशिष्येभ्यो ह्यभक्तेभ्यो विशेषतः।
शिष्येभ्यो भक्तियुक्तेभ्यम्चान्यथा मृत्युमाप्नुयात॥
स्पर्धामुद्धूय कमला वाग्देवी मंदिरे-मुखे।
पात्रान्तस्थैर्यमास्थाय निवसत्येव निश्चितम॥

मां काली कवच किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं प्रदान करना चाहिए जो अधम हो तथा ईश्वर में भक्ति भावना नहीं रखता है इसी केवल ईश्वर भक्त लोगों को ही दिया जा सकता है इस कवच को धारण करने के बाद लक्ष्मी का का वास होता है और सरस्वती का वास होता है।

इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेत्कालिदक्षिणाम्।
शतलक्षं प्रजप्यापि तस्य विद्या न सिध्यति।
स शस्त्रघातमाप्नोति सोऽचिरान्मृत्युमाप्नुयात्॥

जगन्मंगल कालीकवचम् को अज्ञान पुरुष यह धारण करता है तो उसे किसी प्रकार की सिद्धि प्राप्त नहीं होती और यदि वह धारण करता है तो उसे बहुत ही जल्द मृत्यु प्राप्त होती है|