सम्पूर्ण शिव महिम्न स्तोत्र pdf कथा, पाठ करने की विधि और लाभ | Shiv mahimna stotra pdf : शिवमहिम्न स्तोत्र के लाभ

शिव महिम्न स्तोत्र | shiv mahimna stotra : वैसे तो सभी लोग भगवान शिव की शक्तियों के बारे में और भगवान शिव के बारे में जानते ही होंगे हिंदू धर्म के अनुसार 5 देवों में प्रसिद्ध एकमात्र भगवान शिव ही ऐसे भगवान है जो अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं तो फोन करते हैं लेकिन उनकी प्रसन्नता के लिए आपको कुछ ऐसे मंत्र और स्त्रोत का सहारा लेना होगा जैसे कि shiv mahimna stotra यह स्त्रोत संस्कृत भाषा में लिखा गया है.

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शिव भक्तों का यह प्रिय स्त्रोत है जिसमें 43 छंद है इस स्त्रोत के द्वारा भगवान शिव के दिव्य रूप और उनकी सादगी के बारे में बताया गया है अगर भगवान शिव के भक्त इस स्त्रोत को गाकर शिव को सुनाते हैं तो वह जल्द ही प्रसन्न हो जाएंगे और आपकी खोई हुई दिव्य शक्तियों को वापस कर देंगे। भगवान शिव की हर स्थिति बहुत ही सुंदर वर्णित की गई है.

उसी में से शिव महिम्न स्त्रोत को भी शामिल किया गया है ऐसा कहा जाता है कि शिव महिम्न स्त्रोत का पाठ करने से सभी प्रकार के सुख की प्राप्ति होती है और पापों का नाश हो जाता है और आपका हृदय निर्मल हो जाता है। तो आइए आज हम इस लेख के माध्यम से shiv mahimna stotra pdf के बारे में जानते हैं और उसके साथ शिव महिम्न स्त्रोत का पाठ करने की विधि और उसके लाभ कौन से हैं.

इन सभी विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं अगर आप हमारे इस लेख को शुरू से अंत तक ध्यान पूर्वक पढ़ते हैं तो आपको इन सभी विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त हो जाएगी।

शिवमहिम्न स्तोत्र | Shiv Mahimna Stotra

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शिवमहिम्न स्तोत्र संस्कृत भाषा में रचित किया गया है इस स्त्रोत पर भगवान शिव की महिमा प्राप्त होती है यह शिवमहिम्न स्तोत्र एक ऐसा अत्यंत मनमोहक स्त्रोत है जिसके द्वारा भगवान शिव को आसानी से प्रश्न किया जा सकता है यह स्त्रोत भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है। आगे इस लेख मे हमने आप लोगो के लिये सम्पूर्ण शिवमहिम्न स्तोत्र बताया है इसलिए लेख आगे तक पढ़े .

शिव महिम्न स्तोत्र pdf | shiv mahimna stotra pdf

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शिवमहिम्न स्तोत्र की कथा | shiv mahimna stotra ki katha

शिवमहिम्न स्तोत्र के पीछे एक अत्यंत रोचक कथा कही गई है जो कि हम आपको यहां पर शार्ट में बताएंगे ऐसा कहा जाता है कि जब चित्ररथ नामक शिवभक्त राजा बना था उसने अपने राज्य में कई प्रकार के पुष्पों का एक बगीचा बनाया था वह सभी पुष्प वह अपने शिव की पूजा में लगाता था महान् शिवभक्त गंधर्व पुष्पदंत देवराज इंद्र की सभा के मुख्य गायक थे,

अर्थात एक दिन उनकी नजर उस सुंदर बगीचे पर पड़ी तभी वह अपने मन में ही मुस्कुराने लगे उन्होंने उसी बगीचे से पुष्पा तोड़े तथा प्रस्थान किया। ऐसा कहते हैं कि उस मायावी गंधर्व पर किसी की भी नजर नहीं पड़ी थी लेकिन जिस समय राजा को इस बात का पता चला तो राजा ने उस चोर को पकड़ने के लिए असफल प्रयास किए लेकिन तभी राजा को एक ऐसी तरकीब सूची तो उसने शिव पर अर्पित पोस्ट आदि उद्यान के पथ पर बिछा दिए लेकिन जैसे ही अगले दिन वह पुष्पदंत वहां आया.

शिवजी का चाँद

तो उसकी नजर उस शिव निर्मला वस्तुओं पर नहीं पड़ी जिससे उसके पद ही उन पर पड़ गए लेकिन तभी ही गंधर्व राज को शिव के क्रोध का सामना करना पड़ा तथा उसकी सारी शक्तियां समाप्त हो गई जैसे ही गंधर्व राजा को अपनी भूल का अभ्यास हुआ तो उसने शिवलिंग का निर्माण किया उसकी पूजा तथा प्रार्थना की कुछ क्षणों को बोलकर भगवान शिव को प्रसन्न करके अपनी शक्तियों को वापस लिया.

भगवान शिव का आशीर्वाद ग्रहण किया गंधर्व राज द्वारा रचित छंद समूह भविष्य में शिवमहिम्नस्तोत्र के नाम से जाने जाना लगा। इस स्त्रोत का पाठ करने से भगवान शिव के हृदय में स्थान प्राप्त होगा पुष्पदंत द्वारा बनाए गए इस शिवलिंग पुष्पदंतेश्वर देव के नाम से ही प्रसिद्ध है इस के दर्शन करने से ही आधे से ज्यादा पाप नष्ट हो जाते हैं।

शिव महिम्न स्तोत्र | Shiv mahimna stotra

भगवान शिव का सबसे बड़ा मंत्र

महिम्न: पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी
स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिर: ।
अथावाच्य: सर्व: स्वमतिपरिणामावधि गृणन्
ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवाद: परिकर: ।।1।।

अतीत: पन्थानं तव च महिमा वाड्मनसयो –
रतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि ।
स कस्य स्तोतव्य: कतिविधगुण: कस्य विषय:
पदे त्वर्वाचीने पतति न मन: कस्य न वच: ।।2।।

मधुस्फीता वाच: परमममृतं निर्मितवत –
स्तव ब्रह्मन् किं वागपि सुरगुरोर्विस्मयपदम् ।
मम त्वेतां वाणीं गुणकथनपुण्येन भवत:
पुनामीत्यर्थेsस्मिन् पुरमथन बुद्धिर्व्यवसिता ।।3।।

तवैश्चर्यं यत्तज्जगदुदयरक्षाप्रलयकृत्
त्रयीवस्तुव्यस्तं तिसृषु गुणभिन्नासु तनुषु ।
अभव्यानामस्मिन् वरद रमणीयामरमणीं
विहन्तुं व्याक्रोशीं विदधत इहैके जडधिय: ।।4।।

किमीह: किंकाय स खलु किमुपायस्त्रिभुवनं
किमाधारो धाता सृजति किमुपादान इति च ।
अतर्क्यैश्वर्ये त्वय्यनवसरदु:स्तो हतधिय:
कुतर्कोsयं कांश्चिन्मुखरयति मोहाय जगत: ।।5।।

अजन्मानो लोका: किमवयववन्तोsपि जगता
मधिष्ठातारं किं भवविधिरनादृत्य भवति ।
अनीशो वा कुर्याद् भुवनजनने क: परिकरो
यतो मन्दास्त्वां प्रत्यमरवर संशेरत इमे ।।6।।

त्रयी सांख्यं योग: पशुपतिमतं वैष्णवमिति
प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमद: पथ्यमिति च ।
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषां
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।।7।।

महोक्ष: खट्वांगं परशुरजिनं भस्म फणिन:
कपालं चेतीयत्तव वरद तन्त्रोपकरणम् ।
सुरास्तां तामृधिं दधति च भवद्भ्रूप्रणिहितां
न हि स्वात्मारामं विषयमृगतृष्णा भ्रमयति ।।8।।

ध्रुवं कश्चित् सर्वं सकलमपरस्त्वध्रुवमिदं
परो ध्रौव्याध्रौव्ये जगति गदति व्यस्तविषये ।
समस्ते sप्येतस्मिन् पुरमथन तैर्विस्मित इव
स्तुवंजिह्रेमि त्वां न खलु ननु धृष्टा मुखरता ।।9।।

तवैश्चर्यं यत्नाद् यदुपरि विरिंचो हरिरध:
परिच्छेत्तुं यातावनलमनलस्कन्धवपुष: ।
ततो भक्तिश्रद्धाभरगुरुगृणद्भ्यां गिरिश यत्
स्वयं तस्थे ताभ्यां तव किमनुवृत्तिर्न फलति ।।10।।

अयत्नादापाद्य त्रिभुवनमवैरव्यतिकरं
दशास्यो यद् बाहूनभृत रणकण्डूपरवशान् ।
शिर:पद्मश्रेणीरचितचरणाम्भोरुहबले:
स्थिरायास्त्वद्भक्तेस्त्रिपुरहर विस्फूर्जितमिदम् ।।11।।

अमुष्य त्वत्सेवासमधिगतसारं भुजवनं
बलात् कैलासेsपि त्वदधिवसतौ विक्रमयत: ।
अलभ्या पातालेsप्यलसचलितांगुष्ठशिरसि
प्रतिष्ठा त्वय्यासीद् ध्रुवमुपचितो मुह्यति खल: ।।12।।

यदृद्धिं सुत्राम्णो वरद परमोच्चैरपि सती –
मधश्चक्रे बाण: परिजनविधेयत्रिभुवन: ।
न तच्चित्रं तस्मिन् वरिवसितरि त्वच्चरणयो –
र्न कस्याप्युन्नत्यै भवति शिरसस्त्वय्यवनति: ।।13।।

अकाण्डब्रह्माण्डक्षयचकितदेवासुरकृपा –
विधेयस्यासीद्यस्त्रिनयनविषं संहृतवत: ।
स कल्माष: कण्ठे तव न कुरुते न श्रियमहो
विकारोsपि श्लाघ्यो भुवनभयभंगव्यसनिन: ।।14।।

असिद्धार्था नैव क्वचिदपि सदेवासुरनरे
निवर्तन्ते नित्यं जगति जयिनो यस्य विशिखा: ।
स पश्यन्नीश त्वामितरसुरसाधारणमभूत्
स्मर: स्मर्तव्यात्मा नहि वशिषु पथ्य: परिभव: ।।15।।

मही पादाघाताद् व्रजति सहसा संशयपदं
पदं विष्णोर्भ्राम्यद्भुजपरिघरुग्णग्रहगणम् ।
मुहुर्द्यौर्दौ:स्थ्यं यात्यनिभृतजटाताडिततटा
जगद्रक्षायै त्वं नटसि ननु वामैव विभुता ।।16।।

वियद्व्यापी तारागणगुणितफेनोद्ग्मरुचि:
प्रवाहो वारां य: पृषतलघुदृष्ट: शिरसि ते ।
जगद् द्वीपाकारं जलधिवलयं तेन कृतमि –
त्यनेनैवोन्नेयं धृतमहिम दिव्यं तव वपु: ।।17।।

रथ: क्षोणी यन्ता शतधृतिरगेन्द्रो धनुरथो
रथांगे चन्द्रार्कौ रथचरणपाणि: शर इति ।
दिधक्षोस्ते कोsयं त्रिपुरतृणमाडम्बरविधि –
र्विधेयै: क्रीडन्त्यो न खलु परतन्त्रा: प्रभुधिय: ।।18।।

हरिस्ते साहस्त्रं कमलबलिमाधाय पदयो –
र्यदेकोने तस्मिन् निजमुदहरन्नेत्रकमलम् ।
गतो भक्त्युद्रेक: परिणतिमसौ चक्रवपुषा
त्रयाणां रक्षायै त्रिपुरहर जागर्ति जगताम् ।।19।।

क्रतौ सुप्ते जाग्रत्त्वमसि फलयोगे क्रतुमतां
क्व कर्म प्रध्वस्तं फलति पुरुषाराधनमृते ।
अतस्त्वां सम्प्रेक्ष्य क्रतुषु फलदानप्रतिभुवं
श्रुतौ श्रद्धां बद्ध्वा दृढपरिकर: कर्मसु जन: ।।20।।

क्रियादक्षो दक्ष: क्रतुपतिरधीशस्तनुभृता –
मृषीणामार्त्विज्यं शरणद सदस्या: सुरगणा: ।
क्रतुभ्रेषस्त्वत्त: क्रतुफलविधानव्यसनिनो
ध्रुवं कर्तु: श्रद्धाविधुरमभिचाराय हि मखा: ।।21।।

प्रजानाथं नाथ प्रसभमभिकं स्वां दुहितरं
गतं रोहिद्भूतां रिरमयिषुमृष्यस्य वपुषा ।
धनुष्पाणेर्यातं दिवमपि सपत्राकृतममुं
त्रसन्तं तेsद्यापि त्यजति न मृगव्याधरभस: ।।22।।

स्वलावण्याशंसाधृतधनुषमह्नाय तृणवत्
पुर: प्लुष्टं दृष्ट्वा पुरमथन पुष्पायुधमपि ।
यदि स्त्रैणं देवी यमनिरतदेहार्धघटना –
दवैति त्वामद्धा बत वरद मुग्धा युवतय: ।।23।।

श्मशानेष्वाक्रीडा स्मरहर पिशाचा: सहचरा ।
श्चिताभस्मलेप: स्त्रगपि नृकरोटीपरिकर: ।
अमंगलल्यं शीलं तव भवतु नामैवमखिलं
तथापि स्मर्तृणां वरद परमं मंगलमसि ।।24।।

मन: प्रत्यक्चित्ते सविधमवधायात्तमरुत:
प्रहृष्यद्रोमाण: प्रमदसलिलोत्संगितदृश: ।
यदालोक्याह्लादं हृद इव निमज्यामृतमये
दधत्यन्तस्तत्त्वं किमपि यमिनस्तत् किल भवान् ।।25।।

त्वमर्कस्त्वं सोमस्त्वमसि पवनस्त्वं हुतवह –
स्त्वमापस्त्वं व्योम त्वमु धरणिरात्मा त्वमिति च ।
परिच्छिन्नामेवं त्वयि परिणता बिभ्रतु गिरं
न विद्मस्तत्तत्त्वं वयमिह तु यत्त्वं न भवसि ।।26।।

त्रयीं तिस्त्रो वृत्तीस्त्रिभुवनमथो त्रीनपि सुरा –
नकाराद्यैर्वर्णैस्त्रिभिरभिदधत् तीर्णविकृति ।
तुरीयं ते धाम ध्वनिभिरवरुन्धानमणुभि:
समस्तं व्यस्तं त्वं शरणद गृणात्योमिति पदम् ।।27।।

भव: शर्वो रुद्र: पशुपतिरथोग्र: सहमहां –
स्तथा भीमेशानाविति यदभिधानाष्टकमिदम् ।
अमुष्मिन् प्रत्येकं प्रविचरति देव श्रुतिरपि
प्रियायास्मै धाम्ने प्रविहितनमस्योsस्मि भवते ।।28।।

नमो नेदिष्ठाय प्रियदव दविष्ठाय च नमो
नम: क्षोदिष्ठाय स्मरहर महिष्ठाय च नम: ।
नमो वर्षिष्ठाय त्रिनयन यविष्ठाय च नमो
नम: सर्वस्मै ते तदिदमिति शर्वाय च नम: ।।29।।

बहुलरजसे विश्वोत्पत्तौ भवाय नमो नम।।
प्रबलतमसे तत्संहारे हराय नमो नम: ।
जनसुखकृते सत्त्वोद्रिक्तौ मृडाय नमो नम:
प्रमहसि पदे निस्त्रैगुण्ये शिवाय नमो नम: ।।30।।

कृशपरिणति चेत: क्लेशवश्यं क्व चेदं।
क्व च तव गुणसीमोल्लंघिनी शश्वदृद्धि: ।
इति चकितममन्दीकृत्य मां भक्तिराधाद्
वरद चरणयोस्ते वाक्यपुष्पोपहारम् ।।31।।

असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे
सुरतरुवरशाखा लेखनी पत्रमुर्वी ।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति ।।32।।

असुरसुरमुनीन्द्रैरर्चितस्येन्दुमौले –
र्ग्रथितगुणमहिम्नो निर्गुणस्येश्वरस्य ।
सकलगणवरिष्ठ: पुष्पदन्ताभिधानो
रुचिरमलघुवृत्तै: स्तोत्रमेतच्चकार ।।33।।

अहरहरनवद्यं धूर्जटे: स्तोत्रमेतत्
पठति परमभक्त्या शुद्धचित्त: पुमान् य: ।
स भवति शिवलोके रुद्रतुल्यस्तथात्र
प्रचुरतरधनायु: पुत्रवान् कीर्तिमांश्च ।।34।।

महेशान्नापरो देवो महिम्नो नापरा स्तुति: ।
अघोरान्नापरो मन्त्रो नास्ति तत्त्वं गुरो: परम् ।।35।।

दीक्षा दानं तपस्तीर्थं ज्ञानं यागादिका: क्रिया: ।
महिम्न: स्तवपाठस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ।।36।।

कुसुमदशननामा सर्वगन्धर्वराज:।
शिशुशशिधरमौलेर्देवदेवस्य दास: ।
स खलु निजमहिम्नो भ्रष्ट एवास्य रोषात्
स्तवनमिदमकार्षीद् दिव्यदिव्यं महिम्न: ।।37।।

सुरवरमुनिपूज्यं स्वर्गमोक्षैकहेतुं
पठति यदि मनुष्य: प्रांजलिर्नान्यचेता: ।
व्रजति शिवसमीपं किन्नरै: स्तूयमान:
स्तवनमिदममोघं पुष्पदन्तप्रणितम् ।।38।।

आसमाप्तमिदं स्तोत्रं पुण्यं गन्धर्वभाषितम् ।
अनौपम्यं मनोहारि शिवमीश्वरवर्णनम् ।।39।।

इत्येषा वाड्मयी पूजा श्रीमच्छंकरपादयो: ।
अर्पिता तेन देवेश: प्रीयतां मे सदाशिव: ।।40।।

तव तत्त्वं न जानामि कीदृशोsसि महेश्वर ।
यादृशोsसि महादेव तादृशाय नमो नम: ।।41।।

एककालं द्विकालं वा त्रिकालं य: पठेन्नर: ।
सर्वपापविनिर्मुक्त: शिवलोके महीयते ।।42।।

श्रीपुष्पदन्तमुखपंकजनिर्गतेन
स्तोत्रेण किल्बिषहरेण हरप्रियेण ।
कण्ठस्थितेन पठितेन समाहितेन
सुप्रीणितो भवति भूतपतिर्महेश: ।।43।।

।।इति गन्ध्र्वराजपुष्पदन्तकृतं शिवमहिम्न: स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने की विधि | Shiv mahimna stotra ka path karne ki vidhi

भगवान शिव का सबसे बड़ा मंत्र

  1. शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने के लिए सोमवार के दिन सुबह प्रातः काल उठना है।
  2. उसके पश्चात सोमवार के दिन प्रातः काल स्नानादि से निश्चिंत होने के बाद स्वच्छ वस्त्र हो सके तो सफेद रंग के वस्त्र धारण करें
  3. इस स्त्रोत का पाठ करने के लिए अपने घर के मंदिर में भगवान शिव की फोटो को रखकर या फिर अपने घर के आस-पास किसी शिव मंदिर में जाना है।
  4. उसके बाद शिवलिंग के सामने बैठकर शिव महिम्न स्तोत्र का जाप करें।
  5. उसके पश्चात कच्चे दूध , और जल से अभिषेक करें।
  6. उसके बाद शिवलिंग के सामने धूप ,दीप, पुष्प , नौवेध , आदि लगाएं।
  7. इसके पश्चात ही शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ विधिवत रूप से श्रद्धा पूर्वक सच्चे मन से करें।

शिव महिम्न स्तोत्र के लाभ | Shiv mahimna stotra ke labh

  1. अगर आप में से कोई भी व्यक्ति शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करता है तो वह व्यक्ति डर को अपने काबू में कर लेता है।
  2. शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है।
  3. अगर कोई भी मनुष्य अपने सभी पापों को नष्ट करना चाहता है तो उसके लिए उस व्यक्ति को शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
  4. शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव की पूजा में अनंत ध्यान लगता है।
  5. शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने से सुख की प्राप्ति होती है।

FAQ : shiv mahimna stotra pdf

शिव जी का महामंत्र क्या है?

ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

 

शिव के लिए कौन सा मंत्र शक्तिशाली है?

ओम तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।

भगवान शिव का यह शक्तिशाली मंत्र है इस मंत्र को गायत्री मंत्र के नाम से जाना जाता है सावन के सोमवार में प्रतिदिन इस मंत्र का जाप करने से सभी प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं।

भगवान शिव का गुप्त मंत्र क्या है?

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

निष्कर्ष

दोस्तों जैसा कि आज हमने आप लोगों को इस लेख के माध्यम से shiv mahimna stotra pdf के बारे में बताया इसके अलावा शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करने की विधि क्या है शिव महिम्न स्तोत्र स्त्रोत पाठ करने के लाभ क्या है इन सभी विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है अगर आपने हमारे इस लेख को अच्छे से पढ़ा है.

तो आपको इन सभी विषयों के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो गई होगी उम्मीद करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित हुई ।