संपूर्ण कनकधारा स्तोत्र शंकराचार्य pdf हिंदी अर्थ सहित पाठ-विधि और लाभ | Kanakadhara stotram shankaracharya pdf

कनकधारा स्तोत्र शंकराचार्य pdf | Kanakadhara stotram shankaracharya pdf : हेलो दोस्तों नमस्कार स्वागत है आपका हमारे आज के इस नए लेख में आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से कनकधारा स्त्रोत शंकराचार्य pdf के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले हैं सर्वप्रथम इस कनकधारा स्त्रोत की रचना गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी उन्होंने सर्वप्रथम इस कनकधारा स्त्रोत को माता लक्ष्मी की स्तुति करने के लिए बनाया था.

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ऐसा कहा जाता है कि इस स्त्रोत से उन्होंने स्वर्ण की बारिश कराई थी। स्त्रोत का पाठ करने से धन की प्राप्ति होती है हमारे पुराणों के अनुसार ऐसा कहा गया है कि कनकधारा स्त्रोत का विधि विधान पूर्वक पाठ करने से सुख समृद्धि और धन्य धन्य की कभी भी कमी नहीं होती है इसीलिए आज हम आप लोगों को इस लेख के माध्यम से कनकधारा स्त्रोत शंकराचार्य पीडीएफ के बारे में जानकारी देने वाले हैं.

अगर आप लोग कनकधारा स्त्रोत और कनकधारा स्त्रोत का जाप कैसे किया जाता है करने के फायदे क्या है इन सारे विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें ताकि आप लोगों को शंकराचार्य कनकधारा स्त्रोत के बारे में पता हो सके।

कनकधारा स्तोत्र क्या है ? | Kanakadhara stotram kya hai ?

कनकधारा स्त्रोत माता लक्ष्मी की स्तुति के लिए बनाया गया था कनकधारा स्त्रोत की रचना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने की थी कनकधारा का अर्थ होता है स्वर्ण की धारा इस कनकधारा स्त्रोत से माता लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होकर सोने की वर्षा की थी या कनकधारा स्त्रोत बहुत ही प्रभावशाली है क्योंकि इस कनकधारा स्त्रोत से आर्थिक व्यवस्था ठीक हो जाती है.

कनकधारा स्तोत्र

अगर इस स्त्रोत का प्रतिदिन पाठ किया जाए तो इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर अद्भुत चमत्कार दिखाती हैं इस स्त्रोत का पाठ करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निश्चिंत होने के बाद एकाग्रता पूर्वक माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए इस स्त्रोत का पाठ किया जाता है.

कनकधारा स्तोत्र शंकराचार्य pdf | Kanakadhara stotram shankaracharya pdf

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कनकधारा स्तोत्र शंकराचार्य pdf | Kanakadhara stotram shankaracharya pdf Download PDF 

कनकधारा स्तोत्र शंकराचार्य pdf | Kanakadhara stotram shankaracharya pdf

॥ श्री कनकधारा स्तोत्र ॥ 

अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥

अर्थ – जैसे भौंरा आधे खिले हुए कुसुम से सुशोभित तमाल वृक्ष की शरण में रहता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे श्री हरि के रोमांच से सुशोभित श्री अंग पर गिरता रहता है उसमें सारे ऐश्वर्या निवास करते हैं और वह अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी का कटाक्ष है. मंगल की सभी देवी देवता मेरे लिए धन्य हो

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

अर्थ – भौंरा के जैसे आता जाता रहता है या फिर कमल के पुष्प पर मँडराता रहता है उसी भांति मोर शत्रु बार-बार प्रेम से श्रीहरि के मुख पर जाता है और लज्जा के कारण वहां से वापस आ जाता है समुद्र के उस सुंदर नेत्रों की सुंदर माला कन्या लक्ष्मी मुझे धन और धन प्रदान करें।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

अर्थ – जैसे हम सभी समस्त देवी देवता के अधिपति इंद्रदेव के पद का ऐश्वर्या प्रदान करने में समर्थ है उसी प्रकार जो मुरारी श्री हरि को अधिकाधिक आनंद प्रदान करता है, और वह नीलकमल के आन्तरिक भाग के समान सुन्दर है। वह लक्ष्मीजी की अधखुले नयन मुझ पर भी एक पल के लिए अवश्य रहें।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द – मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

अर्थ – शेषशायी भगवान विष्णु की पत्नी श्री लक्ष्मी जी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करे, जिसकी आंखे और भौहें प्रेम से आधी खुली हैं, लेकिन साथ ही, आनंदकांड श्रीमुकुंद को, जो स्पष्ट आंखों से देखता है, उसके पास थोड़ा तिरछा हो जाता है।

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

अर्थ – जो मधुसूदन भगवान के कौस्तुभमणि में सुशोभित हैं, इंद्र-निलमयी हरावली की तरह भगवान मधुसूदन की छाती में सुशोभित हैं और जो भगवान मधुसूदन मन में प्रेम का संचार करते हैं, कमलकुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मुझे आशीर्वाद दे

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे 
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति 

अर्थ – जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के समान श्यामसुन्दर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती हैं, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनन्दित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी हैं, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥

अर्थ – समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझपर पड़े।

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा 
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥

अर्थ –  भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद में पड़े हुए मुझ दीनरूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र 
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

अर्थ – वह विशेष बुद्धि वाला व्यक्ति, जो प्रेम का प्रेमी बन जाता है और उसकी दया के प्रभाव में आसानी से स्वर्गीय स्थान प्राप्त कर लेता है, पद्मासन पद्मा की वह उज्ज्वल दृष्टि मुझे वांछित पुष्टि दे।

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

अर्थ – जो सृष्टि-लीला के समय ब्रह्म शक्ति के रूप में स्थित हैं, लीला करते हुए वैष्णवी शक्ति के रूप में विराजमान हैं और प्रलय-लीला के समय में रुद्रशक्ति के रूप में स्थित हैं, जो उनमें से एकमात्र गुरु हैं। त्रिभुवन भगवान नारायण प्रिय श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥

अर्थ – हे माता लक्ष्मी मेरे अच्छे कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में मैं तुझे प्रणाम करती हूं रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार।  कमल वन में निवास करने वाली माता लक्ष्मी और पुरुषोत्तमप्रिय पुष्टि को नमस्कार।

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥

अर्थ –  आज मैं कमल वंदना कमल को प्रणाम करती हूं क्षीरसिंधु संभूता श्रीदेवी को नमन। चंद्र और सुधा की सगी बहन को नमस्कार। मैं भगवान नारायण के बल्लभ को नमस्कार करती हूं।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥ 

अर्थ – मैं उन कमल के समान नेत्रों वाली आदरणीय माता के चरणों में की गई पूजा धन प्रार्थना करती हूं मैं सभी इन इंद्रियों को सुख देती हूं मैं राज्य के समक्ष अपने सभी पापों को हरने के लिए पूरी तरह तैयार हूं मैं हमेशा आपके चरणों में प्रणाम करने का शुभ अवसर लेती रहूंगी.

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै 
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

अर्थ – मैं मन, वचन और शरीर से उसी लक्ष्मीदेवी की पूजा करता हूं, जो श्री हरि की हृदयेश्वरी हैं, जिनकी कृपा के लिए की गई पूजा से सभी इच्छाओं और संपत्तियों का विस्तार होता है।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

अर्थ – भगवति हरिप्रिये ! तुम कमलवन में निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ।

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट 
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष 
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

अर्थ – मैं सुबह-सुबह भगवान विष्णु की गृहिणी जगज्जननी लक्ष्मी को, जो सभी लोकों के अधीक्षक और क्षीरसागर की पुत्री हैं, उन्हें आकाशगंगा के शुद्ध और सुंदर जल से नमन करता हूं, जिसे दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलश के मुंह से गिराया गया था।

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

अर्थ – कमलनयन केशव की प्यारी कामिनी कमले! मैं गरीब लोगों में सबसे आगे हूं, इसलिए मैं आपकी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूं। तुम मुझे करुणा की बाढ़ की बहती लहरों की तरह व्यंग्य से देखते हो।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥

अर्थ – जो लोग प्रतिदिन त्रिभुवनजननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति इन स्तोत्रों से वेदत्रयी के रूप में करते हैं, वे इस धरती पर महान गुणी और बहुत भाग्यशाली हैं, और विद्वान पुरुष भी उनकी भावनाओं को जानने के लिए उत्सुक हैं।

कनकधारा स्त्रोत शंकराचार्य का पाठ | Kanakadhara stotram shankaracharya ka paath

दोस्तों अगर आप लोग कनकधारा स्त्रोत का पाठ करना चाहते हैं तो हम आप लोगों को बता दें कि जो आदि शंकराचार्य जी का कनकधारा स्त्रोत है इस स्त्रोत से आप अपने सभी दुखों को दूर कर सकते हैं सभी प्रकार के आर्थिक सहायता का वरदान प्राप्त करने के लिए माता देवी लक्ष्मी के 21 मधुर भजन करने चाहिए.

इसके अलावा कनकधारा स्त्रोत एक ऐसा शक्तिशाली संस्कृत भजन है इस कनकधारा स्त्रोत का पाठ करने से हमें देवी लक्ष्मी , समृद्धि की देवी , धन, उर्वरता, सौभाग्य और साहस को समर्पित है। वैसे तो अधिकतर लोगों को पता होगा कि माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की दिव्य पत्नी है ऐसा माना जाता है कि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु अपने भक्तों के जीवन में सभी प्रकार के कष्ट और धन संबंधित दुखों से दूर कर देते हैं।

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वैसे हम आप लोगों को बता दें कि कनकधारा स्त्रोत गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा रचित किया गया है शंकराचार्य को एक महान भारतीय दार्शनिक के रूप में माना जाता है गुरु शंकराचार्य ने अपने गुरु की आज्ञा से अद्वैत वेदांत दर्शन शुरू हो जाते हैं हमारे हिंदू शास्त्र के अनुसार ऐसा माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने माता लक्ष्मी की स्तुति के लिए ही इस कनकधारा स्त्रोत को बनाया था.

क्योंकि देवी से एक गरीब महिला ने धन की बारिश की प्रार्थना की थी और उसी समय माता लक्ष्मी ने गुरु शंकराचार्य जी से यह कहा था कि इसकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए महाशक्तिशाली कनकधारा स्त्रोत को स्थापित किया था।

कनकधारा स्त्रोत लाभ | Kandahar Strot labh

  1. वैसे क्या आप लोग जानते हैं कि कनकधारा का अर्थ क्या होता है कनकधारा का अर्थ स्वर्ण की धारा होता है और इस कनकधारा स्त्रोत की रचना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने की थी.
  2. ऐसा कहा जाता है कि माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने सोने की वर्षा कराई थी और इसी के कारण कनकधारा स्त्रोत का पाठ शीघ्र फल देने लगा था
  3. कनकधारा स्त्रोत से दरिद्रता का नाश हो जाता है।
  4. अगर कोई भी व्यक्ति कनकधारा स्त्रोत का नियमित रूप से पाठ करता है तो उस व्यक्ति की धन संबंधित परेशानियां दूर हो जाती हैं और माता लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।

FAQ : कनकधारा स्तोत्र शंकराचार्य pdf

कनकधारा स्त्रोत का पाठ कितनी बार करना चाहिए?

अगर कोई भी व्यक्ति कनकधारा स्त्रोत का प्रतिदिन पाठ करना चाहता है तो उसके लिए उस व्यक्ति को कनकधारा स्त्रोत का लगभग 3,5,7 या फिर 11 दिन तक इसका जाप करना चाहिए कनकधारा स्त्रोत हिंदी में नित्य एक बार पाठ करने से अत्यधिक लाभ प्राप्त होते हैं।

कनकधारा स्त्रोत का पाठ कैसे करते हैं?

कनकधारा स्त्रोत बहुत ही शक्तिशाली स्त्रोत है अगर आप प्रतिदिन कनकधारा यंत्र के सामने धूप दीप जलाकर कनकधारा स्त्रोत का पाठ करते हैं तो आपको अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है अगर आप चाहे तो अपनी सुरक्षा के अनुसार आप सुबह और शाम भी इस स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं लेकिन हमारी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा गया है कि शंकराचार्य भोजन की तलाश में भटक रहे थे तभी इन्होंने कनकधारा स्त्रोत की रचना की थी.

कनकधारा यंत्र क्या है?

आज हम आप लोगों को कनकधारा यंत्र के बारे में बताएंगे कनकधारा यंत्र एवं स्त्रोत एक चमत्कारी यंत्र है हमारे पुराणों के अनुसार इस यंत्र से धन प्राप्ति और धन संचय का रास्ता मिलता है इस यंत्र की विशेषता यही है कि किसी भी प्रकार से इस यंत्र का विशेष माला जाप पूजन विधि विधान की मांग नहीं की जाती है सिर्फ दिन में एक ही बार इस यंत्र की पूजा पाठ की जाती है.

निष्कर्ष

दोस्तों जैसा कि आज हमने आप लोगों को इस लेख के माध्यम से कनकधारा स्तोत्र शंकराचार्य pdf के बारे में बताया इसके अलावा कनकधारा स्त्रोत शंकराचार्य का पाठ कैसे करें कनकधारा स्त्रोत के लाभ क्या है इन सारे विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है अगर आपने हमारे लिए को अच्छे से पढ़ा है तो आपको कनकधारा स्त्रोत शंकराचार्य के बारे में पता चल गया होगा उम्मीद करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित हुई होगी.

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