भगवान को पाने के लिए क्या करें | Bhagwan ko kaise paye

Bhagwan ko kaise paye? ईश्वर एक ऐसा रहस्य जिसके विषय में किसी भी व्यक्ति महान से महान धर्मात्मा और योगी पुरुष ने जो भी वर्णन किया है वह कितना हकीकत है और कितना फसाना है इस विषय में कह पाना बड़ा मुश्किल होता है क्योंकि बहुत से योगी जन आध्यात्मिक दुनिया में ईश्वर की कल्पना करते हैं.

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वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ईश्वर को मात्र कल्पना मानते हैं फिर भी सभी जीव अंत समय में ईश्वर की उपस्थिति को अवश्य मान लेते हैं ईश्वर कहां है कैसा है यदि हम उसके रूप रंग ज्ञान आकार के रूप में देखने का प्रयास करते हैं तो उसका वास्तविक रूप हमारे सामने नहीं आ पाता है.

फिर भी लोग अध्यात्म की दुनिया में ईश्वर की उपस्थिति को प्राप्त करने के लिए कई तरीके साधन तंत्र मंत्र का सहारा लिया है और इन के माध्यम से वह कहां तक पहुंचते हैं किसान अंत में जाकर ईश्वर की खोज करते हैं शायद यह उनको भी पता नहीं होता है।

ऐसे में केवल यही कहा जा सकता है ईश्वर कण कण में उपस्थित है परंतु इस बात में भी कहीं ना कहीं कपोल कल्पित विडंबना भी छिपी हुई है क्योंकि यदि भगवान कण-कण में उपस्थित है तो मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों की जरूरत क्या है कहीं ऐसा तो नहीं है कि भगवान के नाम पर धार्मिक आध्यात्मिक ढोंग किया जाता है।

आज की दुनिया में बहुत से महात्मा संत सन्यासी धर्म के नाम पर और ईश्वर के नाम पर गोरख धंधा करते हैं लोगों को भगवान के प्रति प्रेरित करके मोटा पैसा कमा लेते हैं बड़े बड़े धर्मात्मा अपने भक्तों के माध्यम से पूरी ऐश्वर्य भरी जिंदगी जी रहे हैं.

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और भक्त गण उन साधु महात्माओं के पीछे अपना सर्वस्व निछावर कर देते हैं ऐसे में सबसे बड़ी विडंबना यह है कि वह ईश्वर की कल्पना अपने उसी महात्मा में देखने लगते हैं उसे ही सर्वस्व मान बैठते हैं और उसी की पूजा करके अंत में पश्चाताप ही करते हैं।

फिर भी हम अपने इस लेख के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त करने के कुछ संदेशों को कुछ बातों को स्पष्ट करेंगे इन संदेशों या विचारों से केवल आप अपने जीवन के सदाचार को अपनाकर एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते हैं.

एक अच्छे सद्भाव लेकर लोगों के बीच में अच्छे व्यक्ति बन सकते हैं परंतु ईश्वर मिले या ना मिले यह कह पाना संभव नहीं है आइए हम कुछ ईश्वर की प्राप्ति के कुछ उपाय स्पष्ट करते हैं.

कर्म योग क्या है ? | Bhagwan ko kaise paye

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में ईश्वर को प्राप्त की तीन मार्ग बताएं जिसमें से पहला मार्ग कर्म योग है। कर्मयोग ही वह योग है जिसके माध्यम से आत्मा और परमात्मा एक दूसरे से जुड़ते हैं और व्यक्ति की आत्मा जागृत होकर आत्मज्ञान प्राप्त कर देती है कर्म योग के माध्यम से जीवन के सभी उद्देश्य और उनकी गति को पूर्वाभास कर लेते हैं.

यक्षिणी

श्री कृष्ण ने गीता में कर्मयोग को सर्वश्रेष्ठ माना है कर्मयोग का तात्पर्य है कि जीवन के लिए समाज देश के लिए विश्व के लिए श्रेष्ठ कर्म करें एक कर्मठ व्यक्ति के लिए कर्मयोग ही सर्वोपरि है हालाँकि  यहां पर हर व्यक्ति कर्म में लगा हुआ है वह अपने अंदर की शक्तियों को नहीं जानता है बल्कि व्यर्थ में शक्तियों को खो देता है.

कर्म करने वाले व्यक्ति को दुख जरूर मिलता है क्योंकि यदि कोई व्यक्ति आसक्ति रहित होकर कर्म करता है तो जिसके प्रति कार्य करता है वह उसको उसके बदले में ही कुछ कार्य करेगा ऐसे में कष्ट होना स्वाभाविक है इसीलिए मनुष्य इस दुख और भय के कारण कर्म करने से दूर भागता है.

कर्म योग सिखाता है की आसक्ति रहित होकर कर्म करे एक कर्मयोगी कभी भी कर्म का त्याग नहीं करता है और वह कर्म फल को त्याग देता है अर्थात बिना फल के कर्म करता रहता है जिसके कारण वह दुखों से मुक्त हो जाता है वह किसी से किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं करता है जिससे चिंता रहित हो जाता है.

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जब कोई करनी होगी समान भाव से कर्म करता रहता है उसे किसी प्रकार के सुख दुख लाभ हानि संयोग वियोग जय पराजय की कोई अपेक्षा नहीं रह जाती है तो वह इस सांसारिक मोहमाया से विरक्त होकर ब्रह्म में विलीन हो जाता है उसके निष्काम कर्म ही ईश्वर के लिए समर्पित हो जाते हैं .

कर्मयोगी कहीं भी वासनाओं या अतृप्त आत्माओं का सही से नहीं करते इसीलिए वह पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त होकर परमात्मा में विलीन हो जाती है.

ज्ञान योग क्या है ? | What is Gyan Yoga

कर्मयोग क्या है? Bhagwan ko kaise paye ? इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है इस विषय को लेकर गीता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि मुझ को प्राप्त करने के लिए ज्ञान योग का सहारा लिया जाए तो निश्चित रूप से मैं उसे प्राप्त हो जाऊंगा ज्ञान योग का मतलब है कि ज्ञान की ऐसी अवस्था जिसको प्राप्त करने के बाद व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर हो जाता है उसे परमधाम प्राप्त हो जाता है ।

वैसे तो ज्ञान से लक्ष्य की प्राप्ति भी ज्ञान योग के अंतर्गत आती है परंतु गीता के अनुसार श्रीकृष्ण ने शांति ज्ञान को भी ज्ञान योग कहा है इसके अलावा सही मायने में वेदों का आध्यात्मिक ज्ञान जिसके माध्यम से व्यक्ति को संपूर्ण ब्रम्हांड का ज्ञान प्राप्त होता है यह ज्ञान योग कहलाता है।

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ज्ञान योग का तात्पर्य है कि ऐसा ज्ञान जिससे ज्ञान की अधिकतम उच्च सीमा प्राप्त करें इसके बाद ज्ञान के माध्यम से ब्रह्म में एकाकार हो जाए और परमधाम को प्राप्त हो। ज्ञान योग के सिद्धांतों पर चलकर व्यक्ति की आत्मा ज्ञान स्वरूप आनंद स्वरूप शुद्ध बुद्ध हो जाती है जिससे वह परम ज्ञानी तत्वदर्शी और शकलदर्शी हो जाता है।

संसार में ब्रह्मा जी एक सत्य है ब्रहम ही अखंड अनादि अविनाशी चेतन स्वरूप और आनंदमय है। एक ही अंत आत्मा ब्रह्म स्वरूप जो होती है वह विभिन्न रूपों में जन्म लेती है। इस ब्रह्म ज्ञान के हो जाने के बाद व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त हो जाती हैं इस प्रकार से कहा जा सकता है कि ज्ञान योग के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति होती हैं.

ज्ञान योग की धारा में व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त करने के लिए साधना की जरूरत होती है जिससे व्यक्ति को ब्रम्हांड का ज्ञान हो जाता है और वह ब्रह्म में विलीन हो जाता है।

ज्ञान योग की साधनाएं कितने प्रकार की होती हैं ? | What are the types of Sadhanas of Jnana Yoga

ज्ञान योग की साधनाएं प्रमुख रूप से अंतरंग बहिरंग दो प्रकार की होती हैं.

1. अंतरंग साधना 

ज्ञान योग की अंतरंग साधना के अंतर्गत तीन प्रकार की साधनाएं करनी पड़ती है जिसमें सेश्रवण मनन और निदिध्यासन साधनाएं होती हैं।

2. बहिरंग साधना 

इस साधना के अंतर्गत प्रारंभिक अवस्था में ही जिन बातों का पालन करना पड़ता है उसे बहिरंग साधना कहा जाता है इस साधना के अंतर्गत चार प्रमुख साधनाएं आती हैं जिन की साधना करने पर साधक एक सच्चा जिज्ञासु व्यक्ति बन जाता है चारों साधना इस प्रकार होती है। विवेक,वैराग्य,मुमुक्षुत्व षट संपत्ति.

षट संपत्तियां छह प्रकार की होती है .

  • शम
  • दम
  • तितिक्षा
  • उपरति
  • श्रद्धा
  • समाधान

भक्ति योग क्या है ?

भक्ति योग का सीधा तात्पर्य एक भक्त का अपने भगवान के प्रति जुड़ना होता है Bhagwan ko kaise paye ? अर्थात भक्ति मार्ग में जब तक यज्ञ हवन पूजा पाठ आदि के माध्यम से जब कोई भक्त अपनी भगवान को प्रसन्न करता है वह उससे जुड़ जाता है तो उसे भक्ति योग कह देते हैं.

यही योग भगवान को प्राप्त करने का सबसे सुगम साधन माना जाता है हालांकि भक्ति करना और उसका पालन करना कठिन होता है लेकिन जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा और सच्ची लगन के साथ भगवान के प्रति आस्था रखते हैं उनसे मिलने की कामना करता है तो एक न एक दिन भगवान का दर्शन से अवश्य प्राप्त होता है।

 

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जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ अपने को भगवान के साथ समर्पित कर देता है उस व्यक्ति की आराधना भगवान से मिलाने के लिए सफल हो सकती है।

 

एक भक्त जब अपनी साधना आराधना पूजा-पाठ जब तक आदि के माध्यम से किसी मंदिर में घर में या उपासना गृह में पूजा पाठ करता है और पूरी चिंतन श्रद्धा के साथ ईश्वर से प्रार्थना करता है तो यही साधना उसकी भक्ति बन जाती है और वह ईश्वर प्राप्ति की ओर उन्मुख हो जाता है।

भक्ति के प्रकार कितने हैं ? | How many types of devotion are there

भक्ति योग  तीन प्रकार से होती है.

  1. नवधा भक्ति
  2. रागात्मिका भक्ति
  3. पराभक्ति

1. नवधा भक्ति क्या है ? | What is Navadha Bhakti

भगवत पुराण के अनुसार नवधा भक्ति का विशेष महत्व है जिसमें 9 प्रकार से भगवान की भक्ति की जाती है.

श्रवणं, कीर्तनं, विष्णो स्मरणं पादसेवनम् ।
अर्चनं वन्दनं दास्य साख्यमात्मैनिवेदनम् ।।

श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चना दास्य, साख्य और आत्मानिवेदन ये भक्ति के नौ भेद है।

a. श्रवण भक्ति

किसी भक्त द्वारा अपने आराध्य परमेश्वर के दिव्य गुणों और उनकी लीलाओं आदि के विषय में सुनना श्रवण भक्ति होती हैं.

b. कीर्तन भक्ति

जब भगवान की लीला और गुणों का वर्णन गीत काव्य के द्वारा कहीं जाती है तो वह भक्ति कीर्तन भक्ति कहलाती है।

c. स्मरण भक्ति 

स्मरण भक्त के अंतर्गत जब कोई भक्त अपने आराध्य को उसकी लीलाओं गुणों को निरंतर स्मरण करता रहता है और उन्हीं के चरणों में समर्पित रहता है तो वह स्मरण भक्ति बन जाती है।

d. अर्चना भक्ति 

जब अपने आराध्य देवी या देवता की आराधना पूजा पाठ के माध्यम से करते हैं तो वह हमारी भक्ति अर्चना भक्ति कहलाती है .

e. वन्दन भक्ति

एक भक्तों द्वारा अपनी भगवान की वैदिक विचारों के माध्यम से स्तुति करना और उसकी वंदना करना वंदना भक्ति कहलाती है.

f. दास्य भक्ति 

भक्त जब कोई भी अपने आराध्य की साधना दासता पूर्वक करता है वह अपने को सेवक समझता है और भगवान की भक्ति करता रहता है तो इससे दास्य भक्ति कहते है।

g. साख्य भक्ति 

बहुत से भक्त ऐसे होते हैं जो अपने आराध्य को शाखा या मित्र मान लेते हैं और उनकी सेवा में लगे रहते हैं जैसे कृष्ण और सुदामा एक दूसरे के मित्र थे या फिर कृष्ण और अर्जुन एक दूसरे के प्रति साख्य भाव रखते थे।

h. आत्म निवेदन भक्ति

हाथ निवेदन भक्ति ऐसी भक्ति होती है जब भक्त भगवान के स्वरुप में अपने को पूरी तरह से अर्पित कर देता है.

2. रागात्मिका भक्ति क्या है ? | What is Ragatmika Bhakti

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भगवान के प्रति जब कोई भी भक्तों नवधा भक्ति के माध्यम से चरम अवस्था में पहुंचता है तो वह वक्त हमारी रागात्मिका भक्ति की ओर उन्मुख होती है भक्तों के अंदर अंतः करण में भगवान के प्रति अलौकिक प्रेम उत्पन्न हो जाता है. और भगवान की झलक देखने लगता है राग आत्मिका भक्ति में भक्तों को अपने आराध्य की झलक सभी जगह सजीव रूप में दिखाई देने लगती है.

3. पराभक्ति क्या है ?  | What is devotion

पराभक्ति रागात्मिका भक्ति की चरम अवस्था है। इस भक्ति में साधक अपनी साधना की अंतिम पराकाष्ठा में होता है जिससे भगवान और भक्त एक हो जाते हैं भक्तों को ब्रह्म तत्व का ज्ञान हो जाता है वह उनसे साक्षात्कार हो जाता है.

Vigyan Bhairav

 

यदि हम अपने जीवन में ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं तो निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि यही वह मार्ग हैं जिनके माध्यम से एक भक्त अपने आराध्य तक पहुंच जाता है अर्थात ईश्वर को पाने के सही और सटीक मार्ग भक्ति मार्ग ज्ञान मार्ग और कर्म मार्ग ही सर्वोत्तम है।

व्यक्ति के कर्म ज्ञान और भक्ति उसके जीवन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण होते हैं. Bhagwan ko kaise paye ? इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण श्रद्धा और लगन होती हैं क्योंकि कोई भी मार्ग पर चलने से पहले उसको पूर्ण रूप से समझना और अनुसरण करना होता है।