सम्पूर्ण पूर्णिमा व्रत विधि और पूजन विधि, मंत्र और नियम | Purnima vrat vidhi

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पूर्णिमा व्रत विधि | purnima vrat vidhi : हेलो मित्रों नमस्कार आज मैं आप लोगों को इस लेख के माध्यम से purnima vrat vidhi टॉपिक से संबंधित जानकारी प्रदान करूंगी जिसमें मैं आप लोगों को यानी कि जो लोग पूर्णिमा व्रत को रखना चाहते हैं उन लोगों को पूर्णिमा व्रत की शुरुआत से लेकर संपन्न तक इस व्रत को किस तरह से किया जाता है इसके विषय में संपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे.

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क्योंकि हिंदू के कई धार्मिक ग्रंथों में हर एक व्रत के लिए अलग-अलग दिन और उस व्रत को करने के लिए अलग-अलग प्रकार की विधियां बताई गई है. जिनको लेकर ऐसी व्याख्या की गई है कि जो भी व्यक्ति इन विधियों के माध्यम से व्रत को रखते हैं, तो उन लोगों का व्रत पूर्ण रूप से सफल होता है तथा उन्हें उस देवी देवता से आशीर्वाद प्राप्त होता है. जिसका वह लोग व्रत रखते हैं.

इसीलिए किसी भी व्रत को करने से पहले उस व्रत के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए. जैसे कि यह व्रत किस देवी देवता का है, इस व्रत को किस दिन करना चाहिए, कितने समय के लिए करना चाहिए, इस व्रत में क्या खाना चाहिए, क्या नहीं खाना चाहिए ? इस व्रत में कौन कौन सी पूजा सामग्री लगती है और इस व्रत को करने की क्या विधि है ? इन सारी चीजों की जानकारी होने के बाद ही आप किसी व्रत को रखने की शुरुआत करें.

इस तरह से आप लोगों को उस व्रत को करने का शुभ फल प्राप्त होगा. इसीलिए आज हम हर प्रकार के धार्मिक ग्रंथों में हर व्रत के लिए बताए गए महत्व को ध्यान में रखते हुए पूर्णिमा व्रत को रखने की संपूर्ण विधि बताएंगे. ऐसे में अगर आप लोग पूर्णिमा व्रत करने की सोच रहे हैं और आप लोगों को इस व्रत को करने की संपूर्ण विधि नहीं मालूम है, तो यह लेख आप लोगों के लिए उपयोगी साबित हो सकता है. इसीलिए आप लोग पूर्णिमा व्रत की संपूर्ण विधि जानने के लिए कृपया करके इस लेख को शुरू से अंत तक अवश्य पढ़ें.

पूर्णिमा व्रत विधि | purnima vrat vidhi

यहां पर मैं कई प्रकार के धार्मिक ग्रंथों में बताई गई पूर्णिमा व्रत को करने की जो विधि बताई गई है उसी विधि को आप लोगों एक क्रम वाइज से बता रही हूं इसीलिए आप लोग इस विधि को ध्यान पूर्वक अंत तक पढ़े.

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  1. पूर्णिमा व्रत के दिन प्रातकाल उठकर घर की अच्छे से साफ सफाई कर दें.
  2. उसके बाद कपड़े लेकर अपने आसपास के किसी पवित्र नदी के पास जाकर उस नदी में स्नान करें.
  3. अगर आपके आस पास कोई नदी नहीं है या फिर आप नदी में स्नान नहीं करना चाहते हैं तो घर में जो किसी भी तीर्थ यात्रा से लाया हुआ गंगाजल हो उस गंगाजल को आप अपने नहाने के पानी में मिलाकर घर में ही स्नान कर ले.
  4. स्नान आदि से निवृत होने के पश्चात हाथ जोड़कर इस व्रत को संपूर्ण करने आप मन ही मन संकल्प लें और चंद्रमा से प्रार्थना करें कि हे माता रानी हमारे अंदर इतनी सकारात्मक उर्जा विद्यमान करो कि हम इस व्रत को बिना किसी कष्ट के सफल कर सकें.
  5. उसके पश्चात आप अपने घर की उत्तर दिशा की तरफ चौकी सजाकर माता पार्वती और भोलेनाथ की प्रतिमा स्थापित करें.
  6. प्रतिमा स्थापित करने के पश्चात आप माता रानी के सामने फल फूल अक्षत यह सब कुछ अर्पित करें.
  7. उसके बाद आप माता रानी को खीर पूरी हलवा आज चीजों का भोग लगाएं और भोलेनाथ को कच्चे दूध का भोग लगाएं.
  8. भोग लगाने के पश्चात आप देसी घी से माता पार्वती और भोलेनाथ की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं.
  9. दीपक जलाने के पश्चाताप विष्णु भगवान और माता पार्वती की आरती करने के लिए आरती की थाल सजा ले, आरती की थाल में आप रोली, कपूर ,धूपबत्ती ,अगरबत्ती, आदि चीजों को शामिल करें.
  10. थाली में धूपबत्ती अगरबत्ती और कपूर जलाने के पश्चात आप इनकी आरती प्रारंभ करें

भोलेनाथ की आरती

शिवजी का चाँद

ॐ जय शिव ओंकारा,
स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,
अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

एकानन चतुरानन
पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

दो भुज चार चतुर्भुज
दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते
त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

अक्षमाला वनमाला,
मुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै,
भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर
बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक
भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

कर के मध्य कमंडल
चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी
जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित
ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति
जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी
सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

लक्ष्मी व सावित्री
पार्वती संगा ।
पार्वती अर्द्धांगी,
शिवलहरी गंगा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

पर्वत सोहैं पार्वती,
शंकर कैलासा ।
भांग धतूर का भोजन,
भस्मी में वासा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

जटा में गंग बहत है,
गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत,
ओढ़त मृगछाला ॥
जय शिव ओंकारा…॥

काशी में विराजे विश्वनाथ,
नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत,
महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

ॐ जय शिव ओंकारा,
स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,
अर्द्धांगी धारा ॥

  • इस तरह से आप शिव भगवान या फिर माता पार्वती किसी एक की आरती करें.
  • आरती करने के पश्चात आप भोलेनाथ और माता पार्वती की प्रतिमा के सामने आसन लगाकर सत्यनारायण भगवान की कथा का पाठ करें.
  • सत्यनारायण भगवान की कथा का पाठ करने के पश्चात आसन लगाकर इस मंत्र का 180 बार जप करें.

मंत्र जाप नियम

mata parvati

ऊँ सों सोमाय नम:

  1. मंत्र का जाप 108 बार करें।
  2. इतना सब कुछ करने के पश्चात पूर्णिमा की पूजा पूर्ण रूप से सफल हो जाती हैं. पूजा करने के पश्चात आप खीर, ड्राई फूड्स, इन सब का सेवन कर सकते हैं मगर आप को भोजन नहीं करना है.
  3. क्योंकि इस व्रत को शाम तक जब तक चंद्रमा को दूध न अर्पित कर दिया जाए तब तक रखा जाता है. खीर को सूर्यास्त होने के बाद किसी कटोरी में छत पर रख दें. क्योंकि चंद्रमा को दूध अर्पित करने के पश्चात वही खीर खाकर आप व्रत तोड़ेंगे.
  4. इस तरह से आप सारा दिन इस व्रत को करें जब शाम को चंद्रमा नजर आए तो आप गाय के दूध को पीतल के लोटे में या फिर चांदी के लोटे से ऊं चंद्राय नमः मंत्र का जाप करते हुए चंद्रमा को दूध अर्पित करें.
  5. चंद्रमा को दूध अर्पित करने के पश्चात आप अपनी मनोकामना पूर्ति की अपने शब्दों में चंद्रमा को देखकर प्रार्थना करें.
  6. दूध अर्पित करने के पश्चात आप खुले आसमान के नीचे आसन लगाकर इन मंत्रों का जाप करें.

ॐ चं चंद्रमस्यै नम:

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम। नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।

ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:।

ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:।

ॐ भूर्भुव: स्व: अमृतांगाय विद्महे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्।

महामृत्युंजय मन्त्र

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

  • अगर हो सके तो सभी मंत्रों का 21, 21 बार जाप करें, अगर आपको सभी मंत्र जाप करने में कोई समस्या हो तो आप इन सभी मंत्रों में से किसी एक मंत्र को 180 बार जाप कर सकते हैं.
  • मंत्र जाप प्रक्रिया पूरी होने के पश्चात यह व्रत पूर्ण रूप से सफल हो जाता है.
  • इस तरह से इस पूर्णिमा के व्रत को सफल करने के पश्चात आप छत पर शीतलता से भरपूर होने के लिए बनाकर रखी गई खीर को आसपास के लोगों में बांटे तथा स्वयं उस खीर को खाकर व्रत को तोड़े.

ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है जो भी जातक जातिका इस विधि के माध्यम से पूर्णिमा के व्रत को करते हैं तो उस व्यक्ति को सदैव दीर्घायु प्राप्त होती है तथा उसे कभी भी धन की कमी का भाव नहीं होता है.

FAQ : purnima vrat vidhi

पूर्णिमा व्रत में किस देवी देवता की पूजा करनी चाहिए ?

पूर्णिमा के व्रत में माता पार्वती भोलेनाथ और इनके दूसरे लोग विष्णु भगवान और लक्ष्मी मां के रूप में कर सकते हैं.

पूर्णिमा के व्रत में खीर छत पर क्यों रखा जाता है ?

शास्त्र के अनुसार बताया गया है खीर बनाकर छत पर इसलिए रखा जाता है, क्योंकि जब चंद्रमा रात को निकलती है तो उसकी किरणों से खीर अमृत बन जाती है जिसे खाने से 36 प्रकार के रोगों से छुटकारा प्राप्त होता है.

पूर्णिमा का व्रत कब आता है ?

हर महीने की शुक्ल पक्ष तिथि को पूर्णिमा का व्रत आता है और जो भी जातक जातिका इस व्रत को करते हैं उस व्यक्ति के समस्त कष्ट और किसी भी प्रकार की शारीरिक पीड़ा हमेशा के लिए दूर हो जाती है.

निष्कर्ष

मित्रों जैसा कि आज हमने इस लेख में आप सभी लोगों को purnima vrat vidhi टॉपिक से संबंधित जानकारी प्रदान की है जिसमें हमने आप लोगों को पूर्णिमा व्रत के दौरान किस देवी देवता की पूजा करनी चाहिए, कैसे करनी चाहिए ? इस व्रत के दौरान कब चंद्रमा को दूध अर्पित करना चाहिए ,कब अपना व्रत तोड़ना चाहिए ,यह सारी जानकारी एक विस्तारपूर्वक से बताई है .

अगर आप लोगों ने इस लेख को शुरू से अंत तक पढ़ा होगा तो आप लोगों को purnima vrat vidhi की संपूर्ण जानकारी अच्छे से प्राप्त हो गई होगी ऐसे में अगर आप लोग इस व्रत को करना चाहते हैं तो इस विधि को अपना सकते हैं.

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