महा शिवरात्रि क्या है ? 12 ज्योतिर्लिंग के नाम क्या है ? जलाभिषेक कैसे करे ? What is the secret of Mahashivaratri?

Shivratri ka mahatav kya hai ? shivratri kya hai ? फागुन कृष्ण चतुर्थी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरंभ हुआ था।

दिन शिव जी के अग्नि लिंग का उदय हुआ इसी से सृष्टि की रचना हुई। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।
यूंतो प्रत्येक माह मे एक शिव रात्रि होती है ।

इस प्रकार साल में होने वाली 12 शिवरात्रियां होती है। परन्तु इन में से महा शिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

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भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है ।

कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर- रात्रि या बोलचाल में है हेरात कहां जाता है।

महाशिवरात्रि से संबंधित कई पौराणिक कथाएं हैं-

क्या है शिव रात्रि का रहस्य ?  What is the secret of Shiv Ratri?

समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित था। लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष में पैदा हुआ। हलाहल विष में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की क्षमता थी।

इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित हुए थे ।

उनका गला नीला पड़ गया है इसी कारण से भगवान शिव ‘नीलकंठ’ के नाम से प्रसिद्ध हुए । उपचार के लिए चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जगाते रहने की सलाह दी। इस प्रकार भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रही। शिव कोआनंद देने और जगाने के लिए देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाएं ।

जैसे सुबह हुई उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि भी इसी घटना का उत्सव है।

जिससे शिव ने दुनिया को बचाया तब से इस दिन भगवान के भक्त उपवास रखते हैं।

क्या है शिकारी की कथा ? What was the legend of the hunter?

एक बार पार्वती जी ने भगवान शंकर से पूछा ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत पूजन है जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं। शिवजी ने पार्वती को शिवरात्रि के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई-

एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था । पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुंब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था। लेकिन उसका ऋण समय पर ना चुका सका ।

क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिव मठ में बंदी बना लिया । संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यान मग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा ।

चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की ।

शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया । अपनी दिनचर्या के अनुसार वह जंगल में शिकार के लिए निकला।

लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण वह भूख प्यास से व्याकुल था। शिकारी शिकार करने के लिए एक तालाब के किनारे बेलवृक्ष पर पड़ाव डालने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्व पत्रों से ढका हुआ था।

शिकारी को उसका पता ना चला पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिन भर भूखे प्यासे शिकारी का व्रत भी पूरा हो गया। और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गया। एक रात बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची । शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची।

मृगी बोली- मैं गभर्वती हूं तुम एक साथ दो जीव की हत्या करोगे , जो ठीक नहीं है। मैं बच्चों को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी। तब मार लेना। शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई ।

कुछ देर बाद एक कामातुर मृगी उधर से निकली । शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा । समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रता पूर्वक निवेदन किया- हे! पारधी मैं थोड़ी देर पहले सेऋतु स्नान से निवृत्त हुई हूं ,अपने पति की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था।

उसने धनुष पर चढ़ाने में देर नहीं लगाई वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली हे ! पारधी मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले कर के लौट आयूंगी इस समय मुझे जाने दो।

शिकारी हंसा और बोला सामने आए शिकार को छोड़ दू मैं ऐसा मूर्ख नहीं इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं । मेरे बच्चे भूख प्यास से तड़प रहे होंगे । उत्तर में मुर्गी ने फिर कहा जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है ठीक वैसे ही मुझे भी।

इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं , हे ! पारधी मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं। मृगी का दिन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई । उसने उस मृगी को भी जाने दिया।

शिकार के अभाव में बेल वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़ तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया । शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा।

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला हे!पारधी भाई यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली 3 मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब ना करो। ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े।

मैं उन मृगियों का पति हूं । यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है। तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन दान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा ।

उसकी बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना चक्र घूम गया। उसने सारी कथा को सुना दी तब मृग ने कहा मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई है मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाऐगी।

अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ दिया । वैसे ही मुझे भी जाने दो मैं उन सब के साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं । उपवास, रात्रि जागरण, तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया ।

उसमें भगवत शक्ति का वास हो गया। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हृदय करूणा से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा ।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उत्पन्न हो गया । ताकि वह उनका शिकार कर सके किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता सात्विकता एवं सामूहिक प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई ।

उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस परिवार को मारने का इरादा त्याग दिया। तथा शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा , सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।

देवलोक से समस्त देवी एवं देवता समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवताओं ने पुष्प वर्षा की। महाशिवरात्रि के अनुष्ठान – महाशिवरात्रि पर्व पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान किए जाते हैं । इस अवसर पर भगवान शिव का अभिषेक अनेक प्रकार से किया जाता है –

जलाभिषेक कैसे किया जाता है ? How is Jalabhishek done?

जल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है |

दुग्ध अभिषेक कैसे करें ? How to anoint milk?

दूध से बहुत जल्दी सुबह सुबह भगवान शिव के मंदिरों पर भक्तों जवान और बूढ़ों का तांता लग जाता है । वह सभी पारंपरिक शिवलिंग पूजा करने के लिए जाते हैं। और भगवान से प्रार्थना करते हैं।

भक्त सूर्योदय के समय पवित्र स्थानों पर स्नान करते हैं, जैसे- गंगा, शिव सागर या किसी अन्य पवित्र जल स्रोत में जो शुद्धि के अनुष्ठान है जो सभी हिंदू त्योहारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पवित्र स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र वस्त्र पहने जाते हैं ।

भक्त शिवलिंग स्नान करने के लिए मंदिर में पानी का बर्तन ले जाते हैं। महिलाओं और पुरुषों दोनों सूर्य,विष्णु और शिव की प्रार्थना करते हैं ।

भक्त शिवलिंग की तीन या सात बार परिक्रमा करते हैं । और फिर शिवलिंग पर पानी या दूध चढ़ाते हैं ।

शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि पूजा में 6 वस्तुओं को अवश्य शामिल करना चाहिए ।

1- शिवलिंग का पानी, दूध, शहद के साथ अभिषेक |

2- बेर या बेलपत्र जो आत्मा की शुद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं |

3- सिंदूर का पेस्ट स्नान के बाद शिवलिंग को लगाया जाता है जो पुण्य का प्रतिनिधित्व करता है । जो दीर्घायु और इच्छाओं की संतुष्ट को दर्शाते हैं।

4- जलती धूप, धूप दीपक जो ज्ञान की प्राप्ति के अनुकूल हैं |

5- पान के पत्ते जो सांसारिक सुखों के साथ संतोष का अंकन करते हैं।

अभिषेक में निम्न वस्तुओं का प्रयोग नहीं किया जाता |

1- तुलसी के पत्ते |

2- हल्दी |

3-चंपा और केतकी के फूल।

” 12 ज्योतिर्लिंग की पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं । वह स्वयंभू के रूप में जाने जाते हैं। 12 स्थानों पर 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं

12 ज्योतिर्लिंग के नाम क्या है ? ज्योतिर्लिंग कंहा पर स्थित है ? What is the name of 12 Jyotirlinga? Where is the Jyotirlinga located?

चलिये फिर जान लेते है की ये ज्योतिर्लिंग का क्या नाम है और कंहा पर स्थिर है :

1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Somnath 

यह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थित है ।

2. श्री शैल ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Shree Shaili 

मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थित है ।

3. महाकाल ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Maha Kall 

उज्जैन के अनंत नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था ।

4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Aukareshvar 

मध्य प्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदान देने हेतु यहां प्रकट हुए थे ।

5. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Nageshvar 

गुजरात के द्वारका धाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है ।

यह भी पढ़े :

6. बैजनाथ धाम ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Baijanath Dhaam 

बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग स्थित है।

7. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Bheema shanker 

महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग है ।

8. त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Trayanbakeshvar 

नासिक से 25 किलोमीटर दूर त्रयंबकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग है।

9. घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Ghushmeshvar 

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप बेलगांव में स्थापित घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग है ।

10. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Kedarnath 

हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग हरिद्वार से 150 किलोमीटर दूर है।

11. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Kashi vishvnath 

बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग है।

12. रामेश्वर ज्योतिर्लिंग कंहा पर है ? Raameshvar 

रामेश्वरम त्रिचनापल्ली समुद्र तट पर भगवान श्री राम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग है।

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