भैरवी साधना : Bhairavi sadhana के पूजा चरण और मंत्र की सम्पूर्ण जानकारी

bhairavi sadhana kya hai ? ब्रह्मांड में छिपी हुई तमाम प्रकार की शक्तियों को जानने और उन्हें प्राप्त करने के लिए अनेकों प्रकार के मार्ग वर्णित किए गए हैं इन शक्तियों को प्राप्त करने और जानने के लिए तंत्र मंत्र यंत्र भक्ति उपासना आराधना साधना आदि का उपयोग किया जाता है। bhairavi sadhana vidhi

किसी भी प्रकार की साधना करना इतना आसान नहीं है जितना कि लोग सोचते हैं समझते हैं दरअसल सभी प्रकार की साधनों में कहीं ना कहीं कठिनाई जरूर दिखाई देती है साधना ओं के दौरान व्यक्ति को अपने में काबू रखना जरूरी होता है तभी उसकी साधना सिद्ध हो सकती है।

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हमारी तंत्र मंत्र की साधनाओं में अनेकों प्रकार की विद्या भी सम्मिलित होती है और इन विद्याओं को सिद्ध करने के लिए मार्ग भी प्रशस्त किए गए हैं तंत्र-मंत्र और यंत्र की दुनिया में बहुत सारी महाविद्याए भी सम्मिलित की गई हैं जिनके अंतर्गत भैरवी साधना की विद्या की सम्मिलित हुई है।

तंत्र साधना में भैरवी साधना 10 महाविद्याओं में एक विद्या है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है भैरवी साधना करने से व्यक्ति के अंदर ब्रह्मांड में छिपी हुई अनेकों महा शक्तियों के विषय में व्यक्ति भी जानकार हो जाता है और वह एक प्रकार का त्रिकालदर्शी पुरुष या सिद्ध पुरुष बन जाता है।

भैरवी साधना या भैरवी पूजा एक ऐसी साधना का पूजा है जिसके माध्यम से यह स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री वासना के लिए नहीं बल्कि सत्य का एक उद्गम स्थान भी है यदि कोई भी व्यक्ति भैरवी साधना करना चाहता है तो उसको कोई योग गुरु है सिखा सकता है।

भैरवी साधना दसमहाविद्या में माता भैरवी और भैरव भगवान शिव और पार्वती के रूप होते हैं अर्थात भगवान शिव के भैरव और पार्वती के भैरवी रूप की साधना ही भैरवी साधना कहलाती है।

भैरवी साधना का रहस्य क्या है ? | Bhairavi sadhana ka rahasya

भैरवी साधना के वाममार्गी शाखा में देह को साधना को आधार मानकर तंत्र साधना की जाती है हमारे शरीर में स्थित देवताओं की संपूर्ण शक्तियां जिस ऊर्जा के साथ होती हैं उन को जागृत करने के लिए साधना प्रथम चरण होता है उसे भगवान के द्वारा प्राप्त शरीर से भगवान की शक्तियों को जाना जाता है.

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हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के संस्कारों और अनेक वासनाओं का होना पाया जाता है
भैरवी साधना के अंतर्गत शरीर में जितनी भी वासनाएं होती हैं उन्हें निर्वस्त्र होकर शरीर से बाहर किया जाता है।

भैरवी साधना का मुख्य उद्देश्य क्या है ?

भैरवी साधना का प्रमुख उद्देश्य हमारे शरीर में स्थित काम ऊर्जा की शक्ति के द्वारा संसार को विस्मृत करके परम आनंद की अनुभूति करना है भैरवी साधना कई चरणों में संपन्न होती है.

भैरवी साधना के चरण क्या है ? | Bhairavi sadhana ke charan

भैरवी साधना को कई चरणों में सिद्ध करने की प्रक्रिया है क्योंकि यह साधना स्त्री और पुरुष दोनों के सानिध्य में होती हैं या कोई पुरुष और स्त्री अकेले भी करता है ऐसे में साधना के कई चरण हो जाते हैं।

1. भैरवी साधना का पहला चरण

भैरवी साधना के पहले चरण में स्त्री पुरुष जो भी साधक हैं उनको एकांत और सुगंधित वातावरण में निर्वस्त्र होकर आमने-सामने कम से कम 3 फुट की दूरी पर सुखासन या पद्मासन लगाकर बैठे और एक दूसरे की ओर आंखों में देखते हुए मंत्र जाप करें.

यक्षिणी
इस प्रकार की साधना के दौरान साधक के अंदर धीरे धीरे निरंतर काम भाव ऊर्ध्वगामी होकर दिव्य ऊर्जा के रूप में सहस्त्रदल का भेदन कर देता है।

2. भैरवी साधना का दूसरा चरण 

भैरवी साधना का दूसरा चरण स्त्री पुरुष जो साधक हैं एक दूसरे के करीब आकर अंग प्रत्यंगो को स्पर्श करते हुए उत्तेजित काम भावना को स्थाई बनाते हैं।

 

साधना के दौरान बीच-बीच में मंत्रों का उच्चारण करते रहने से कामोत्तेजना की बाहरी क्रियाओं को करना होता है परंतु काम उत्तेजना के दौरान स्खलन होने को रोकते हुए आत्म संयम रखें

3. भैरवी साधना का अंतिम चरण 

भैरवी साधना के अंतिम चरण में साधक स्त्री या पुरुष परस्पर संभोग की क्रिया करते हैं परंतु समान भाव समान श्रद्धा और उत्साह तथा संयम से शारीरिक भूख थी साधना करते हैं। ना कि इस चरण में साधक स्त्री पुरुष निसंकोच होकर संभोग की क्रिया मंत्र जाप करते हुए करें।

 

साधना के दौरान जब संभोग किया कर रहे हैं तो आप संयम रखते हुए प्रयास करें कि दोनों का इस खनन एक साथ हो यदि एक साथ नहीं हो रहा है तो लगभग एक साथ संपन्न हो।

भैरवी साधना की विधि | Bhairavi sadhana ki vidhi 

भैरवी साधना करने के लिए साधक को नवरात्रि के दिनों में शुक्ल पक्ष के सोमवार या शुक्रवार से प्रारंभ करना चाहिए। इसके अलावा इस साधना को करने के लिए रात्रि के 9 बजे के बाद समय ज्यादा उचित है।

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साधना में लाल वस्त्र धारण करके लाल आसन पर अपनी पूजा कक्ष या एकांत स्थान पर पूर्व की ओर मुंह करके बैठे। उसके बाद अपने सामने लाल आसन पर एक चौकी बनाएं और उस पर भगवान शिव तथा अपने गुरु का फोटो लगाएं इसके बाद रोली से कमला यंत्र स्थापित करें घी का दीपक जलाकर यंत्र की पूजा अर्चना करें। पूजा अर्चना करने के बाद क्रमशः संकल्प नियोग करें।

भैरवी साधना के दौरान संकल्प विनियोग किस प्रकार से पढ़े ?

भैरवी साधना के दौरान संकल्प विनियोग पढ़ना जरूरी है अतः ऐसे में आप भैरवी साधना के संकल्प विनियोग इस प्रकार से पढ़ें.

ॐ अस्य श्री त्रिपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि: पंक्तिश्छ्न्द: त्रिपुर भैरवी देवता वाग्भवो बीजं शक्ति बीजं शक्ति: कामराज कीलकं श्रीत्रिपुरभैरवी प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:

1. ऋष्यादि न्यास

इस संकलन में बाएं हाथ से जल लेकर दाहिने हाथ से संबंध पांचों उंगलियों से नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए अंगों को स्पर्श करें

  • दक्षिणामूर्तये ऋषये नम: शिरसि ( सर को स्पर्श करें )
  • पंक्तिच्छ्न्दे नम: मुखे ( मुख को स्पर्श करें )
  • श्रीत्रिपुरभैरवीदेवतायै नम: ह्रदये ( ह्रदय को स्पर्श करें )
  • वाग्भवबीजाय नम: गुहे ( गुप्तांग को स्पर्श करें )
  • शक्तिबीजशक्तये नम: पादयो: ( दोनों पैरों को स्पर्श करें )
  • कामराजकीलकाय नम: नाभौ ( नाभि को स्पर्श करें )
  • विनियोगाय नम: सर्वांगे ( पूरे शरीर को स्पर्श करें )

2. कर न्यास 

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अपने दोनों हाथों के अंगूठे से हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करते हुए चेतना को प्राप्त करें और यह मंत्र जाप करें

  1. हस्त्रां अंगुष्ठाभ्यां नम: ।
  2. ह्स्त्रीं तर्जनीभ्यां नम: ।
  3. ह्स्त्रूं मध्यमाभ्यां नम: ।
  4. हस्त्रैं अनामिकाभ्यां नम: ।
  5. ह्स्त्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।
  6. हस्त्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।

3. ह्र्दयादि न्यास

  1. हस्त्रां ह्रदयाय नम: ।
  2. हस्त्रां शिरसे स्वाहा ।
  3. ह्स्त्रूं शिखायै वषट् ।
  4. हस्त्रां कवचाय हुम् ।
  5. ह्स्त्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
  6. हस्त्र: अस्त्राय फट् ।

भैरवी की पूजा कैसे करें ? 

 

  1. उधदभानुसहस्त्रकान्तिमरूणक्षौमां शिरोमालिकां,
  2. रक्तालिप्रपयोधरां जपवटी विद्यामभीतिं परम् ।
  3. हस्ताब्जैर्दधतीं भिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं,
  4. देवी बद्धहिमांशुरत्नस्त्रकुटां वन्दे समन्दस्मिताम् ।।

भैरवी ध्यान

हं हं हं हंस हंसी स्मित कह कह चामुक्त घोर अट्टहासा।

खं खं खं खड्गहस्ते त्रिभुवन निलये कालभैरवी कालधारी।।

रं रं रं रंगरंगी प्रमुदित वदने पिर्घैंकेषी श्मशाने।
यं रं लं तापनीये भ्रकुटि घट घटाटोप, टंकार जापे।।

हं हं हंकारनादं नर पिषितमुखी संधिनी साध्रदेवी।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं कुष्माण्ड मुण्डी वर वर ज्वालिनी पिंगकेषी कृषांगी।।
खं खं खं भूत नाथे किलि किलि किलिके एहि एहि प्रचण्डे।

ह्रुम ह्रुम ह्रुम भूतनाथे सुर गण नमिते मातरम्बे नमस्ते।।
भां भां भां भावैर्भय हन हनितं भुक्ति मुक्ति प्रदात्री।

भीं भीं भीं भीमकाक्षिर्गुण गुणित गुहावास भोगी सभोगी।।

भूं भूं भूं भूमिकम्पे प्रलय च निरते तारयन्तं स्व नेत्रे।
भें भें भें भेदनीये हरतु मम भयं भैरव्ये त्वां नमस्ते।।

हां हां हाकिनी स्वरूपिणी भैरवी क्षेत्रपालिनी।
कां कां कां कानिनी स्वरूपा भैरवी व्याधिनाशिनी।।

रां रां रां राकिनी स्वरूपा भैरवी शत्रुमर्द्दिनी।
लां लां लां लाकिनी स्वरूपा भैरवी दुःख दारिद्रनाषिनी।।

भैं भैं भैं भ्रदकालिके क्रूर ग्रह बाधा निवारिणी।
फ्रैं फ्रैं फ्रैं नवनाथात्मिके गूढ़ ज्ञानप्रदायिनि।।

ईं ईं ईं रूद्रभैरवी स्वरूपा रूद्रग्रंथिभेदिनि।
उं उं उं विश्णुवामांगे स्थिता विष्णु ग्रंथि भेदिनी।

च्लूं च्लूं च्लूं नीलपताके सर्वसिद्धि प्रदायिनी ।
अं अं अं अंतरिक्षे सर्वदानव ग्रह बंधिनी।।

स्त्रां स्त्रां स्त्रां सप्तकोटि स्वरूपा आदिव्याधि त्रोटिनी।

क्रों क्रों क्रों कुरूकुल्ले दुष्ट प्रयोगान नाशिनी।।

ह्रीं ह्रीं ह्रीं अंबिके भोग मोक्ष प्रदायिनी।
क्लीं क्लीं क्लीं कामुके कामसिद्धि दायिनी।।

उपरोक्त मंत्रों के साथ पूजन करने के बाद मूंगा की माला लेकर 11 दिनों तक 23 माला जाप करें और एक 23 दिनों तक 63 माला जाप करें

इस मंत्र को पढ़ते हुए जाप करें

॥ ह सें ह स क रीं ह सें ॥

॥ ॐ हसरीं त्रिपुर भैरव्यै नम: ॥

त्रिपुर भैरवी मंत्र

‘ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:’

उपरोक्त मंत्रों के बाद इस मंदिर का भी जाप कर सकते हैं

  1. ।। ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:।।
  2. ।। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः।।
  3. ।। ॐ ह्रीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै नमो नम:।।

भैरवी साधना से सिद्ध होने के बाद क्या होता है ?

bhairavi sadhana सिद्ध हो जाने के बाद साधक त्रिकालदर्शी की तरह ब्रह्मांड का ज्ञाता हो जाता है और ब्रह्मांड में भूलने वाले सभी प्रकार के मंत्र उसे सुनाई देने लगते हैं दिव्य प्रकाश दिखाई देता है और आजीवन कामवासना से मुक्त हो जाता है मन स्थिर होकर शांत हो जाता है तथा चेहरे पर एक अलौकिक तेज दिखाई देता है .

 

भैरवी-साधना सिद्ध होे जाने पर साधक को ब्रह्माण्ड में गूँज रहे दिव्य मंत्र सुनायी पड़ने लगते हैं, दिव्य प्रकाश दिखने लगता है तथा साधक के मन में दीर्घ अवधि तक काम-वासना जागृत नहीं होती । साथ ही उसका मन शान्त व स्थिर हो जाता है तथा उसके चेहरे पर एक अलौकिक आभा झलकने लगती है।

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