अपने क्रोध या गुस्से पर नियंत्रण कैसे करे ? – श्रीमद्भगवद्गीता How to control your anger in hindi

दोस्तों  क्रोध, Anger गुस्सा ये सभी हमारे अन्दर की एक ऐसी मनोवृत्ति है, जिसकी “अति” सदैव हमारे स्वास्थ्य और समाज के लिए घातक साबित होती है | क्योकि क्रोध में आया हुआ इंसान सही निर्णय नही कर पाता है, और उसी आवेश में कभी कभी वह कुछ ऐसे कदम उठा लेता है जो की उसकी पूरी जिंदगी भी बर्बाद कर देता है|

बहुत से अच्छे और प्यार से भरे रिश्ते केवल क्रोध वश ही टूट जाते है अथवा दरार आ जाती है , किन्तु कुछ परस्थितियों में क्रोध करना उचित भी है किन्तु वह परिस्थित सही है या गलत यह क्रोध आने के बाद तय करना मुश्किल हो जाता है , इसलिये क्रोध में कभी कोई कठोर निर्णय नही लेना चाहिये |

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इस लिए आज हम आप को बतायेंगे की श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने क्रोध के नियंत्रण के बारे में क्या बताया है , इसको जानने के बाद आप क्रोध के बारे में सही से जान और समझ पाओगे | आइये फिर जानते है की gusse aur krodh par kabu kaise paye ?

आज हम जिस विषय पर बात करेंगे वो है क्रोध | क्रोध वो भावना है जो हमारी सारे जीवन को घेरे रखता है | क्रोध को ना उम्र की मर्यादा है, और ना ही ज्ञान की | कब ,कहा और किस कारण से क्रोध पैदा हो जाये वो कोई नही जानता और जब क्रोध जन्म लेता है तब तुरंत विचार करने की शक्ति खो जाती है |

बुद्धि  पर  अंधकार छा  जाता  है | वर्षो के सम्बन्ध पलभर में टूट जाते है | सारा जीवन बिखर जाता है| किसी भी कारागार में जाकर देखिये अधिकतर अपराधी छड भर का आपराधिक दंड भुगतते  हुए दिखाई देंगे |

फिर भी हम क्रोध पर अंकुश नही लगा पाते | बार बार क्रोध ना करने का प्रण  तो लेते हैं, परन्तु बार बार क्रोध हम से हो ही जाता है |

यह क्रोध वास्तव में क्या है ? What exactly is this anger in hindi?

क्यों आता है? और क्यों अंकुश Control में नही रहता ?

उदाहरण के लिए आप एक बालक को देखिये उसे किसी वस्तु की इच्छा होती है और उस समय उसे ये नही मिलता या कोई उसे भयभीत करता है तो वो प्रतिक्रिया करता है |

बालक की प्रतिक्रिया क्रोध है |क्योकि बालक निर्बल है और निःसहाय है |बालक अपनों से बड़ों को अपने वजूद का अहसास , अपने अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करवाने का प्रयास करता है |

क्रोध के माध्यम से बड़े होनें पर भी हम क्या ऐसा नही करते? क्या क्रोध हमारे भीतर    बैठे बालक का प्रतिभाव नही जानता अर्थात क्या क्रोध वास्तव में केवल बालक जैसा व्यवहार नही करता ? जब हमारे अहंकार को घाव होता है वो वह ऐसा ही व्यवहार करता है |

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जब भय लगता है, जब कोई वस्तु हमें प्रप्त नही होती,  तब हमें क्रोध आता है |  ठीक किसी बालक की भांति हम जानते है कि आईने के सामने खड़े होकर मुंह बनाने का खेल बालको को शोभा देता है बड़ो को नही |

फिर भी हम बालक की भांति क्रोध करना बंद नही करते | हम अनुभव से जानते है , दूसरो को देख कर बता सकते है, कि क्रोध से कभी कुछ प्राप्त नही होता |

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सम्मान हो , सम्पति हो, प्रेम हो या सुरक्षा ही क्यों न हो ,  क्रोध से नही मिलता है |  मिलता है तो प्रयासों से कार्य करने से विधिपूर्वक विचार करने से मनुष्य मात्र अपनी आदतों से जीता रहता है|

क्रोध में मनुष्य यह जनता है की वह स्वयं का नाश कर रहा है , पर थोडा सा कारण मिलते ही हमारे भीतर का बालक क्रोध कर बैठता है अर्थात क्रोध वास्तव में और कुछ भी नही , हमारी बुधि स्वरूप  बालक का नाम है |

जैसे ही हम इतना स्मरण में रखे की हम बालक नही , बालक जैसा व्यवहार  हमें शोभा नही देता वैसे ही क्रोध स्वयं ही बंद हो जाता है | क्या ये सत्य नही इसपे विचार और मनन अवश्य कीजियेगा|

यद्यपि क्रोध आते ही आप कुछ समय के लिए रुक कर अपने अन्दर झांक कर अपने बालक को देखे जो की क्रोध से भर गया है , अगले ही पल क्रोध को स्वयं ही नष्ट कर देता है |

क्रोध आने के बाद कुछ देर रुकना सदैव हितकर शाबित होता है ! इसलिये उस पर काबू करने की जगह उसके आने पर बस थोड़ी देर के लिए स्वयं को रोक ले और अपने उस स्वभाव को देखे क्रोध अपने आप ही शांत हो जायेगा | राधे – राधे 🙂

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